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    किरोड़ी सिंह बैंसला एक ऐसी शख्सियत जिनके एक इशारे पर रुक जाता था पूरा राजस्थान

    By Priti JhaEdited By:
    Updated: Thu, 31 Mar 2022 01:59 PM (IST)

    किरोड़ी सिंह बैंसला बचपन से ही काफी कुशाग्र थे इसलिए माता-पिता ने उन्हें करोड़ों में से एक नाम दिया किरोड़ी। वे जाति से बैंसला हैं यानि गुर्जर। गुर्जर आरक्षण के पुरोधा किरोड़ी सिंह बैंसला ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वो लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे।

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    गुर्जर आरक्षण के पुरोधा किरोड़ी सिंह बैंसला जिनके एक इशारे पर रुक जाता था पूरा राजस्थान

    नोएडा, आनलाइन डेस्‍क। दो दशकों में कई बार गुर्जर आरक्षण आंदोलन समय-समय पर सरकारों की धड़कनें बढ़ाता रहा। बैंसला गुर्जर आरक्षण का बड़ा चेहरा थे। गुरुवार सुबह गुर्जर आरक्षण के पुरोधा किरोड़ी सिंह बैंसला ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वो लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष बैंसला के नेतृत्व में 2007 में राजस्थान में गुर्जरों ने बड़ा आंदोलन किया था। राजस्थान में जब भी बड़े आंदोलनों की बात होगी तो इस खास शख्सियत किरोरी सिंह बैंसला का नाम जरूर आएगा। 

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    बैंसला का जीवन परिचय

    12 सितंबर 1940 को राजस्थान के करौली जिले के गांव मुंडिया में बच्चू सिंह के घर जन्मे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला सेना में कर्नल थे। गुर्जर के कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में हुआ। किरोरी सिंह बैंसला की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई इसके बाद वह भरतपुर और जयपुर के महाराजा कॉलेज में पढ़ाई की। वे बचपन से ही काफी कुशाग्र थे इसलिए माता-पिता ने उन्हें करोड़ों में से एक नाम दिया किरोड़ी। वे जाति से बैंसला हैं यानि गुर्जर। बचपन में काफी कम उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। बैंसला के चार बच्चे हैं। बैसला के तीन पुत्र और एक पुत्री है। बड़े पुत्र दौलत सिंह सेना में कर्नल पद से सेवानिवृत हो गए। दूसरे पुत्र जय सिंह मेजर जनरल तीसरे पुत्र विजय बैंसला सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं। उनकी पुत्री सुनीता राजस्व सेवा की अधिकारी है। उनकी पत्नी का निधन हो चुका है। गुर्जर समुदाय से आने वाले किरोरी सिंह ने अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के तौर पर ही थी लेकिन पिता के फौज में होने के कारण उनका रुझान फौज की तरफ थी। उन्होंने भी सेना में जाने का मन बना लिया। वह सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हो गए। बैंसला सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे और सेना में रहते हुए 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी से वतन के लिए जौहर दिखाया।

    कर्नल बैंसला का सेना में सफर

    कर्नल बैंसला ने 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी अपनी बहादुरी का जौहर दिखाया। वे राजपूताना राइफल्स में थे और पाकिस्तान के युद्धबंदी भी रहे। उनके सीनियर्स उन्हें 'जिब्राल्टर का चट्टान' कहते थे और साथी कमांडो 'इंडियन रेम्बो' कहा करते थे। उनकी बहादुरी और कुशाग्रता का ही नतीजा था कि वे सेना में एक मामूली सिपाही से तरक्की पाते हुए कर्नल के रैंक तक पहुंचे और फिर रिटायर हुए।

    लंबे संघर्ष के बाद दिलवाया आरक्षण

    देश की सेवा के बाद कर्नल बैंसला ने अपने जीवन में दूसरी बड़ी लड़ाई लड़ी अपने गुर्जर समुदाय के लिए। सार्वजनिक जीवन में आने के बाद उन्होंने गुर्जर आरक्षण समिति की अगुवाई की। उल्लेखनीय है कि कर्नल बैंसला ने 2004 से गुर्जर समाज को अलग से आरक्षण देने की मांग करते हुए आरक्षण आन्दोन की कमान अपने हाथ में ली थी। आरक्षण के लिए वह समाज के लोगों के साथ कई दिनों तक ट्रेन की पटरी और सड़क पर बैठे। उनके आंदोलन के बाद तत्कालीन वसुंधरा राजे की सरकार ने कमेटी बनाई, जिसने गुर्जरों की हालत पर रिपोर्ट तैयार की। लंबे चले आरक्षण आंदोलन के बाद गुर्जर सहित पांच जातियों को अन्य पिछला वर्ग के साथ पहले स्पेशल बैक वर्ड क्लास और फिर मोस्ट बैक वर्ड क्लास(एमबीसी) में अलग से आरक्षण मिला।

    गुर्जरों को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने के लिए रेल और सड़क मार्ग जाम करने लगे। आरक्षण के लिए उनका आंदोलन इतना तेज़ चला कि अदालत को बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा। 2008 में गुर्जर आरक्षण के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में 70 लोगों की जान चली गई थी। आरक्षण के लिए गुर्जर समाज के लोग कई माह तक रेलवे ट्रेक और हाईवे जाम करके बैठे रहे थे।

    बैंसला गुर्जर आरक्षण के पुरोधा

    देशसेवा के बाद बैंसला ने गुर्जर समुदाय के हक के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी और वो राजस्थान के गुर्जरों के लिए अलग से एमबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत गुर्जरों को सरकारी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण दिलाने में कामयाब भी रहे थे। वो गुर्जर आरक्षण के पुरोधा कहलाते थे।

    बैंसला का राजनीति में सफर

    इसके बाद बैंसला ने राजनीति में प्रवेश किया। साल 2019 में बैंसला और उनके बेटे भाजपा में शामिल हुए थे। बैंसला भाजपा के टिकट पर टोंक- सवाई माधोपुर लोकसभा से सीट से चुनाव लड़े लेकिन वो कांग्रेस के नमोनारायण मीणा से चुनाव हार गए थे।

    पैतृक गांव में अंतिम संस्कार

    बताया जा रहा है कि कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव टोडाभीम तहसील के मुंडिया गांव में किया जाएगा। बैंसला का पार्थिव देह हिंडौन के लिए रवाना होगा, जहां उनके समर्थक और समाज के लोग उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन करेंगे।