वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी को दिया जाएगा प्रतिष्ठित बिहारी पुरस्कार
लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी को केके बिड़ला फाउन्डेशन की ओर से वर्ष 2014 के बिहारी पुरस्कार से नवाजा जाएगा। उन्हें यह पुरस्कार उनके यात्रा संस्मरण मुअनजोदड़ो के लिए दिया जाएगा।
जयपुर। लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी को केके बिड़ला फाउन्डेशन की ओर से वर्ष 2014 के बिहारी पुरस्कार से नवाजा जाएगा। उन्हें यह पुरस्कार उनके यात्रा संस्मरण मुअनजोदड़ो के लिए दिया जाएगा।
पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने बताया कि उन्हें पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपए की राशि नकद प्रदान की जाएगी।
चयन समित में भारद्वाज के अलावा गिरधर राठी, प्रो. माधव हाड़ा, हेमंत शेष, डॉ. लता शर्मा सदस्य तथा फाउंडेशन के निदेशक डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण सदस्य सचिव हैं। यह पुरस्कार राजस्थान में पिछले दस वर्ष से रहकर साहित्य साधना करने वालों को दिया जाता है।
ओम थानवी और उनका यात्रा वृत्तांत
ओम थानवी का जन्म 1 अगस्त, 1957 में जोधपुर के फलोदी कस्बे में हुआ। पत्रकारिता में आने से पहले ओम रंगमंच की गतिविधियों में संलग्न रहे। 1980 में पत्रकारिता से जुड़े। 1989 में राष्ट्रीय दैनिक जनसत्ता से जुड़े। आजकल वो इसी अखबार के कार्यकारी संपादक हैं। पुरस्कृत कृति मुअनजोदड़ो सामान्य यात्रा वृत्तांतों से एकदम अलग है।
इस वृत्तांत में यात्रा के क्षणों में उपजी अनंत जिज्ञासाओं के साथ साथ लेखक की एक बौद्धिक यात्रा भी समानान्तर चलती है। चयन समिति का मानना है कि मानव सभ्यता के इस सबसे बड़े तीर्थ को अब तक अनेक भारतीय और पाश्चात्य विचारकों ने उनके द्वारा प्रस्तुत मिथकों से रहस्यमय और अकारक बनाया है, लेकिन थानवी ऐसे पहले लेखक हैं जिन्होंने इस पुस्तक को सहज, सरस भाषा और बेहतरीन वर्णन से रोचक बनाया है।
ये है बिहारी पुरस्कार का सफर
डॉ. जयसिंह नीरज के काव्य संकलन ढाणी का आदमी को पुरस्तकृत किए जाने के साथ 1991 में बिहारी पुरस्कार का सफर शुरू हुआ। इसके बाद नंद चतुर्वेदी, हरीश भादानी, नंद किशोर आचार्य, हमीदुल्लाह, बिजयेंद्र, ऋतुराज, विश्वंभरनाथ उपाध्याय, प्रभा खेतान, बशीर अहमद मयूख, कल्यामण लोढा, विजयदान देथा, मरुधर मृदुल, अलका सरावगी, यशवंत व्यास, नंद भारद्वाज, हेमंत शेष, गिरधर राठी, अर्जुन देव चारण, हरिराम मीणा और चंद्रप्रकाश देवल को यह अवार्ड प्रदान किया जा चुका है।
दो बार नहीं दिया गया अवार्ड
चौबीस वर्ष के इस सफर में वर्ष 2003 और 2005 में दो बार ऐसे मौके आए जब यह पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया। राज्य के साहित्यकारों के लिए तो इस पुरस्कार का विशेष महत्व है ही, देशभर के साहित्यकारों में भी इसे लेकर दिलचस्पी रहती है कि इस साल किसे यह पुरस्कार दिया जाएगा।
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