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अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले का आयोजन इस साल नहीं होगा, कोरोना महामारी के कारण नहीं होगा आयोजन

Pushkar Mela 2020पर्यटन विभाग व अजमेर जिला प्रशासन ने मेले की तैयारियों पर ब्रेक लगा दिया है। प्रतिवर्ष पुष्कर मेला भव्य तरीके से आयोजित होता है। पहले हिस्से में पशु मेले का आयोजन होता दूसरे हिेस्से में कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पंचतीर्थ स्नान का आयोजन होता।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 10:44 AM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 10:44 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले का आयोजन इस साल नहीं होगा, कोरोना महामारी के कारण नहीं होगा आयोजन
इस साल नहीं होगा अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले का आयोजन

जयपुर, जागरण संवाददाता। कोरोना महामारी के कारण इस बार अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले का आयोजन नहीं होगा । देश-विदेश में विख्यात पुष्कर मेेले का आयोजन नहीं करने को लेकर राज्य सरकार ने अपना मानस बना लिया है।

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पर्यटन विभाग व अजमेर जिला प्रशासन ने मेले की तैयारियों पर ब्रेक लगा दिया है। प्रतिवर्ष पुष्कर मेला भव्य तरीके से आयोजित होता है। इसके तहत पहले हिस्से में पशु मेले का आयोजन होता है और दूसरे हिेस्से में कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पंचतीर्थ स्नान का आयोजन होता है । इस साल 22 से 30 नवंबर के बीच मेले का आयोजन होना था।

राज्य के प्रमुख पर्यटन सचिव आलोक गुप्ता ने बताया कि कोविड-19 की गाइडलाइन के कारण पुष्कर मेले का आयोजन नहीं होगा। पुष्कर नगर पालिका के चेयरमैन कमल पाठक का कहना है कि कई दशकों में पहली बार मेले का आयोजन इस बार नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि मेले के दौरान बड़े पैमाने पर पशु मेला भी आयोजित होता है । मेले में बड़े पैमाने पर पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है । इस मेले को कैमल फेयर के नाम से भी जाना जाता है ।

कादेश  एकमात्र ब्रहमा मंदिर पुष्कर में है

पुष्कर देश का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान ब्रहमा का मंदिर है । ऐसा माना जाता है कि मंदिर के चारों तरफ सरोवर को 33 मिलियन हिंदू देवताओं द्वारा कार्तिक पूर्णिमा की रात को पवित्र किया जाता है । यही खासियत पुष्कर को हिंदू अनुयायियों के लिए पांच धामों में से एक बनाता है। स्थानीय लोगों का दावा है कि पुष्कर मेला 100 साल से भी अधिक पुराना है। शुरू में इस मेले का आयोजन हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक के चंद्र माह मे कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता था।

तीन दशक पहले तक आसपास के गांवों के लोग यहां लोक संगीत और नृत्य के साथ धार्मिक अनुष्ठान कर के हिंदू संस्कृति का जश्न मनाते थे । पिछले तीन दशक से यह मेला विदेशी पर्यटकों में काफी लोकप्रिय हो रहा है ।हर साल बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक इसमें शामिल होते हैं । 


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