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    राजस्थान में जातियों के गणित में उलझी भाजपा, संगठन की कम सक्रियता व कांग्रेस की एकजुटता का भी परिणाम पर दिखा असर

    Updated: Wed, 05 Jun 2024 07:34 PM (IST)

    प्रदेश में लोकप्रिय चेहरे का अभाव एवं संगठन की कम सक्रियता का नुकसान भी हुआ है। प्रदेश की 14सीटों पर भाजपा शेष 11 सीटों पर कांग्रेस और आइएनडीआइए में शामिल दलों के प्रत्याशियों की जीत हुई है। इनमें आठ सीट पर कांग्रेस और एक-एक सीट पर माकपा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी)और भारत आदिवासी पार्टी (बाप)के प्रत्याशियों ने विजय पाई है।2014 में सभी 25 सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी।

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    भाजपा 25 लोकसभा सीटें जीतने की हैट ट्रिक नहीं बना सकी (फाइल फोटो)

    नरेंद्र शर्मा, जयपुर। करीब छह महीने पहले राजस्थान में सरकार बनाने वाली भाजपा को लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने उसी तरह का समर्थन नहीं दिया है। भाजपा 25 लोकसभा सीटें जीतने की हैट ट्रिक नहीं बना सकी। जातियों के गणित, प्रत्याशियों के चयन और अपने ही नेताओं को ठिकाने लगाने में उलझी रही भाजपा को 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।

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    प्रदेश में लोकप्रिय चेहरे का अभाव एवं संगठन की कम सक्रियता का नुकसान भी हुआ है। प्रदेश की 14 सीटों पर भाजपा, शेष 11 सीटों पर कांग्रेस और आइएनडीआइए में शामिल दलों के प्रत्याशियों की जीत हुई है। इनमें आठ सीट पर कांग्रेस और एक-एक सीट पर माकपा, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) और भारत आदिवासी पार्टी (बाप) के प्रत्याशियों ने विजय पाई है। 2014 में सभी 25 सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी।

    संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी के पद खाली

    2019 में 24 सीटों पर भाजपा और एक सीट पर एनडीए के ही घटक दल रहे आरएलपी प्रत्याशी की जीत हुई थी। प्रदेश संगठन एकजुट नजर नहीं आया। प्रदेशा अध्यक्ष सीपी जोशी खुद के निर्वाचन क्षेत्र चित्तौड़गढ़ से एक दिन भी बाहर नहीं निकल सके। संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी के पद खाली है। पहली बार विधायक और मुख्यमंत्री बने भजनलाल शर्मा ने सभी सीटों के दौरे अवश्य किए, लेकिन करिश्माई चेहरे के अभाव में वह मतदाताओं में पकड़ नहीं बना सके।

    पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपने बेटे तक रहीं सीमित 

    पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपने बेटे दुष्यंत सिंह के संसदीय क्षेत्र झालावाड़ तक सीमित रहीं। लोकसभा अध्यक्ष ओेम बिरला, केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल व गजेंद्र सिंह शेखावत अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ही फंस कर रह गए । वे पड़ोस की सीट पर भी प्रचार करने नहीं जा सके । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक भी इस बार अधिक दिलचस्पी लेते नहीं दिखे। दूसरी तरफ कांग्रेस एकजुट दिखी। उसने जातिगत समीकरणों को साधकर टिकट तय किए।

    तीन सीटें आइएनडीआइए में शामिल घटक दलों के लिए छोड़ीं

    गठबंधन को प्राथमिकता देते हुए तीन सीटें आइएनडीआइए में शामिल घटक दलों के लिए छोड़ीं । पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने पूरे चुनाव अभियान की कमान संभाली। कांग्रेस के जो आठ सांसद चुनाव जीते हैं, उनमें से छह के टिकट की पैरवी पायलट ने की थी। वे पायलट के कट्टर समर्थक हैं। डोटासरा ने सीकर में माकपा से गठबंधन करवाया। डोटासरा ने शेखावाटी व मारवाड़ के जाट वोट बैंक को साधने में पूरा जोर लगाया।

    राहुल कस्वा का टिकट कटने से जाट मतदाता नाराज

    पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नागौर सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल से गठबंधन करवाया। हालांकि, गहलोत के खुद के पुत्र वैभव गहलोत जालौर-सिरोही सीट से चुनाव हार गए। इन समीकरणों का हुआ असर यह माना जा रहा है कि डोटासरा की जाटों में पकड़, राज्य मंत्रिमंडल में जाटों को उम्मीद के मुताबिक महत्व नहीं मिलने और चूरू से दो बार भाजपा के टिकट पर सांसद रहे राहुल कस्वा का टिकट कटने से जाट मतदाता नाराज हो गए।

    गुर्जर पायलट के कारण पूरी तरह से कांग्रेस के साथ रहे

    भाजपा के दिग्गज नेता किरोड़ी लाल मीणा को मंत्रिमंडल में कम महत्व का विभाग मिलने से पूर्वी राजस्थान के मीणा नाराज थे। इसका लाभ पायलट ने उठाया। उन्होंने दौसा, टोंक-सवाईमाधोपुर, करौली-धौलपुर एवं भरतपुर में गुर्जर और मीणा वोटों का ध्रुवीकरण करवा दिया। गुर्जर पायलट के कारण पूरी तरह से कांग्रेस के साथ रहे। केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला की राजाओं को लेकर की गई टिप्पणी से राजपूत समाज नाराज हो गया। कांग्रेस ने चुनाव अभियान में भाजपा के सत्ता में आने पर अनुसूचित जाति व जनजाति का आरक्षण खत्म करने का मुद्दा जोरशोर से उठाया, जिसका लाभ उसे मिला। ऐसे में अधिकांश प्रमुख जातियां भाजपा से दूर हो गईं।

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