राजस्थान के आदिवासी इलाके में रोक के बावजूद पुलिस 'मौताणे' जैसी कुप्रथा में कराती है मध्यस्थता
पुलिस की मध्यस्थता में मंगलवार शाम डेढ़ लाख रुपए का मौताणा तय हुआ और ससुराल पक्ष के डेढ़ लाख रुपए सौंपने के बाद ही मृतका का पोस्टमार्टम कराया गया। मौताणे की रकम दिए जाने के बाद मृतका का शव परिजनों के हवाले किया तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। मौताणा यानी मौत के बदले आणा (राशि)राजस्थान के आदिवासी इलाके में ऐसी कुप्रथा है जिस पर आजादी के बाद से ही कानूनन रोक है लेकिन पुलिस 75 साल बाद भी आज भी इस प्रथा में आदिवासियों को सहयोग करती आई है। ताजा मामला उदयपुर संभाग के डूंगरपुर जिले का है, जहां पुलिस की मध्यस्थता में डेढ़ लाख रुपए में मौताणे के मामले का पटाक्षेप किया गया। हुआ यूं कि डूंगरपुर जिले के सदर थाना क्षेत्र के देवल फला कोलरा गांव में सोमवार रात नर्मदा मीणा की मौत कुएं में गिरने से हो गई थी। जिसको लेकर पीहर पक्ष से आपत्ति जताई और बदले में मौताणे की मांग रखी। जिसको लेकर पीहर पक्ष के और ससुराल पक्ष के लोगों में मंगलवार दिन भर तनातनी चलती रही। बाद में पुलिस की मध्यस्थता में मंगलवार शाम डेढ़ लाख रुपए का मौताणा तय हुआ और ससुराल पक्ष के डेढ़ लाख रुपए सौंपने के बाद ही मृतका का पोस्टमार्टम कराया गया। मौताणे की रकम दिए जाने के बाद मृतका का शव परिजनों के हवाले किया तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया।
पैर स्लिप होने पर कुएं में जा गिरी थी पानी भरने आई विवाहिता
सदर थाना पुलिस ने बताया कि विवाहिता की शादी तीन महीने पहले ही सिकन्दर मीणा से हुई थी। ससुरालजनों के मुताबिक सोमवार को वह कुएं पर पानी भरने गई थी। इस दौरान पैर स्लिप होने पर वह कुएं में जा गिरी और डूबने से उसकी मौत हो गई। पुलिस ने मंगलवार को उसका शव कुएं से निकलवाया और जिला अस्पताल के मुर्दाघर रखवाने के बाद पीहर पक्ष के लेागों को बुलाया। जहां पीहर पक्ष के लोग मौताणे की मांग को लेकर अड़ गए तथा शव का पोस्टमार्टम नहीं होने दिया। जिस पर पुलिस ने दोनों पक्षों में मध्यस्थता करवाई और ससुराल पक्ष ने जब डेढ़ लाख रुपए पीहर पक्ष को सौंपे, उसी के बाद शव का पोस्टमार्टम कराया जा सका।
आदिवासी नेताओं को जिम्मेदारी-कुरीतियां रोकने में मदद करें
डूंगरपुर पुलिस अधीक्षक सुधीर जोशी का कहना था कि पुलिस ससुराल और पीहर पक्ष के लोगों को समझाइश में जुटी रही। मौताणे की रकम को लेकर उन्होंने अनभिज्ञता जताई। इस मामले में पुलिस महानिरीक्षक सत्यवीर सिंह का कहना है कि मौताणे जैसी कुप्रथा रोकने के प्रति पुलिस सक्रिय है लेकिन आदिवासी नेताओं की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह भी ऐसी कुरीतियों को रोकने में पुलिस की मदद करें।
प्रचलित कुरीतियपों को खत्म नहीं करा पाई राजस्थान पुलिस
क्या होता है मौताणा : दरअसल, मौताणा आदिवासी समाज के लोगों की अपनी एक प्रथा है, जिस पर रोक है। राजस्थान के आदिवासी इलाके विशेषकर उदयपुर संभाग के आदिवासी क्षेत्र में अगर किसी भी आदिवासी व्यक्ति की हत्या हो जाती है या अन्य कारणों से मौत हो जाती है तो एक पक्ष दूसरे पक्ष से मौताणे की मांग करता है। इसमें एक पक्ष के लोग समाज के लोगों के साथ दूसरे पक्ष या उसके समाज या गांव के लोगों से मौताणे की तय रकम की मांग करते हैं। यदि कोई समाज की ओर से तय रकम की मांग पूरी नहीं करते तो वह दूसरे पक्ष या दूसरे पक्ष के लोगों या गांव पर हमला कर लूटपाट और आगजनी तक करने के प्रति उतारू हो जाते हैं। आजादी के 75 साल बाद भी राजस्थान पुलिस मौताणे सहित आदिवासी में प्रचलित कई कुरीतियों को खत्म नहीं करा पाई है।