World Day Against Child Labour 2022: स्वावलंबन और बदलाव की आधारशिला तैयार कर रहीं बेटियां
World Day Against Child Labour 2022 गीता पायल व तारा जैसी बेटियों की बदौलत अब बाल विवाह बाल श्रम व बाल शोषण जैसी कुरीतियां पीछे छूट रही हैं। नीमड़ी भांगडोली नारायणपुर खेता हनुमान गुवाडा गोपालपुरा रायपुरा व भीलवाड़ी जैसे कई गांवों में जागरूकता आ रही है।

राजस्थान के अलवर से जयपुर की ओर जाते समय सरिस्का का जंगल पार करते ही छोटा सा कस्बा है थानागाजी। थानागाजी से विराट नगर मात्र 20 किलोमीटर दूर है। यह पूरा क्षेत्र अरावली की पहाडिय़ों से घिरा हुआ है। यहां बंजारा समुदाय की कुछ बस्तियां हैं, जहां पुरुष मजदूरी से दो जून की रोटी जुटा रहे हैं। महिलाएं भी चूल्हे-चौके और मजदूरी तक सीमित हैं। कुछ समय पहले तक बच्चों की भी यही स्थिति थी। शिक्षा इनकी प्राथमिकता नहीं थी। बाल श्रम और बाल विवाह यहां आम बात थी। बेटियां भी भविष्य की चिंता छोड़कर पिता या मां के साथ पत्थर तोडऩे में मदद करती थी।
बंजारा समुदाय की बस्तियों के अलावा दूसरे समुदाय के कई गांवों में भी माहौल अलग नहीं था, मगर पिछले एक दशक से यहां बदलाव की बयार बहने लगी है। इस पिछड़े क्षेत्र की बेटियां अब बदलाव और स्वावलंबन की मजबूत बुनियाद का निर्माण कर रही हैं। इस समुदाय की तारा खुद बाल श्रम से मुक्ति पाकर अब दूसरे बच्चों का जीवन संवार रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ चेंज मेकर अवार्ड हासिल करने वाली भारत की पहली बालिका पायल जांगिड़ भी अब बाल पंचायत के माध्यम से बाल शोषण के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं। वहीं, बंजारा समुदाय से प्रथम सरपंच बनकर गीता जहां ग्राम पंचायत किशोरी व आसपास के क्षेत्र में राजनीतिक चेतना का केंद्र बनकर उभरी हैं। अलवर से लौटकर महेश वैद्य की विशेष रिपोर्ट:
दक्षिण अफ्रीका में गूंजी तारा बंजारा की आवाज
पथरीली राहों से चलते हुए जब हम तारा की झुग्गी में पहुंचे तो पता चला कि पूरा परिवार मिलकर कठोर श्रम से परिवार का पेट पाल रहा है, लेकिन बच्चों की पढ़ाई के प्रति सरदारा बंजारा व उनकी पत्नी कमला देवी की ललक हर किसी को प्रेरित करती है। यह माता-पिता के दृढ़ संकल्प व बेटियों की आगे बढऩे की ललक का ही परिणाम है, जिसके चलते सरदारा की बेटी तारा बंजारा ने इसी माह दक्षिण अफ्रीका की धरा से बाल श्रम व बाल शोषणके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी आवाज बुलंद की। डरबन में हुए इस अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सम्मेलन में तारा ने विश्व समुदाय से बाल श्रम रोकने की अपील की।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की ओर से आयोजित हुआ यह पांचवां सम्मेलन था। एक समय तारा खुद बाल मजदूर थीं, लेकिन जब संकल्प लिया तो न केवल खुद को बाल श्रम से दूर किया बल्कि बाल श्रम व बच्चों की तस्करी रोकने जैसे अभियानों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। बाल यौन शौषण के खिलाफ मुखर आवाज बनीं। अभी तारा 17 वर्ष की आयु पार कर चुकी हैं, मगर उनके इरादे बड़ी उम्र के लोगों को भी जागरूक करने के हैं। तारा सबसे पहले तब चर्चा में आई थीं जब उन्होंने अपनी व अपने से छोटी बहन की सगाई के लिए यह कहते हुए इन्कार कर दिया था कि उन्हें अभी पढऩा है। बालिका वधू बनने से इन्कार करके तारा नायिका बन गईं। अब वह गांव की बेटियों को बाल आश्रम, सरकारी स्कूल व कालेज में पढऩे के लिए प्रेरित कर रही हैं। वह खुद भी बीए प्रथम वर्ष की छात्रा हैं। तारा अपनी बंजारा बस्ती की पहली महिला हैं, जिन्होंने 12वीं पास की है।
'चेंज मेकर' पायल ने बाल पंचायत से दिया संदेश
थानागाजी से सटे गांव हींसला में प्रवेश करने के बाद पायल जांगिड़ का घर ढूंढने में कोई मुश्किल नहीं आएगी। अरावली से घिरे इस गांव का बच्चा-बच्चा पायल को जानता है। पायल तब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई थीं जब वर्ष 2019 में उन्हें अमेरिका में बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से गोलकीपर ग्लोबल गोल्स अवाड्र्स कार्यक्रम में चेंज मेकर अवार्ड मिला था। उसी मंच पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी यही सम्मान दिया गया था। पायल को यह सम्मान उनके द्वारा बाल श्रम व बाल विवाह की कुरीतियों को रोकने के लिए चलाए गए अभियान के कारण दिया गया। हालांकि पायल यहां तक पहुंचने के सफर का श्रेय अपने गांव में बाल आश्रम की ओर से चलाए गए बाल मित्र कार्यक्रम को देती हैैं, लेकिन यह भी सच है कि प्रेरणा मिलते ही पायल ने अपने जीवट के बल पर गांव में न केवल बाल पंचायत गठित की बल्कि पंचायत से तालमेल बनाकर गांव की हर बेटी को स्कूल भेजना भी सुनिश्चित किया।
कम आयु में विवाह से इन्कार: पायल का नाम भी उन बेटियों में शामिल है, जिन्होंने कम उम्र में शादी न करने के लिए अपने माता-पिता को राजी कर लिया था। पायल की इसी जिद ने उन्हें दूसरों से अलग नाम दिया। बीस वर्षीय पायल का इरादा भविष्य में पूरा जीवन बेटियों के नाम समर्पित करने का है। पायल के बेटियों के कल्याण के लिए किए गए कामों को अलवर जिला प्रशासन ने भी स्वीकार किया और उन्हें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान का जिले का ब्रांड एंबेसडर बनाया। पायल का ध्यान सेवा के साथ-साथ फिलहाल अपनी पढ़ाई पर भी है। वह बीए अंतिम वर्ष की छात्रा हैं। उनके पिता पप्पूराम लकड़ी का काम करते हैं और माता राजोदेवी साधारण गृहणी हैं। जागरण की टीम जब पायल के घर पहुंची तो मां ने यही बोलीं-बेटी ने नाम कर दिया।
सरपंच बनकर ज्ञान बढ़ा रही हैं गीता
थानागाजी से लगभग 20 किमी दूर है किशोरी ग्राम पंचायत मुख्यालय। गीता यहां की सरपंच हैं। गीता का गांव रायपुरा भी इसी पंचायत का हिस्सा है। किशोरी से लगभग दो किमी दूर सड़क मार्ग से जाने के बाद गांव से अलग बसी गीता की बंजारा बस्ती तक पहुंचने के लिए एक किमी पथरीली राहों से गुजरना पड़ता है।
प्रेरणा है गीता का सरपंच बनना: इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं है कि बंजारा समुदाय की पहली महिला सरपंच का नाम क्या है, लेकिन थानागाजी व आसपास के लोगों की मानें तो पहली बार इस समुदाय की कोई महिला सरपंच बनी है। 24 वर्षीय गीता देवी का पिछले वर्ष सरपंच चुना जाना गड़रिया लुहार की तरह बंजारा समुदाय के लिए एक प्रेरणा है। गीता बेशक सरपंच लोगों के मत से बनी हैैं, लेकिन उनका सरपंच चुना जाना प्रोत्साहन, जागरूकता अभियानों व खुद गीता देवी की हिम्मत का भी परिणाम है। पिछले डेढ़ दशक में यहां तीन हजार से अधिक बच्चे अक्षर ज्ञान ले रहे हैं। स्कूल से दूर रहीं गीता भी अब खुद साक्षर बनकर बच्चों का ज्ञान बढ़ा रही हैं। गीता ने कहा कि सरपंच बनने के बाद मेरी कोशिश रहेगी कि किसी भी नाबालिग को जीविका के लिए श्रम न करना पड़े।
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