साढ़े छह सौ साल पुराने विजय स्तम्भ में पड़ने लगी दरारें, मरम्मत में देरी पड़ सकती है भारी
चित्तौडग़ढ़ दुर्ग में मेवाड़ के नरेश राणा कुम्भा द्वारा मालवा और गुजरात की सेनाओं पर विजय के स्मारक के रूप में बनवाए गए विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्तम्भ में अब दरारें पडऩे लगी है।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। चित्तौडग़ढ़ दुर्ग में मेवाड़ के नरेश राणा कुम्भा द्वारा मालवा और गुजरात की सेनाओं पर विजय के स्मारक के रूप में बनवाए गए विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्तम्भ में अब दरारें पडऩे लगी है। साल 1442 से 1449 के बीच बनाए गए स्तम्भ को अब संरक्षण की दरकार है। पुराविद् एवं इतिहासकारों का कहना है कि मरम्मत में देरी भारी पड़ सकती है।
चित्तौड़ दुर्ग को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाला विजय स्तम्भ सैकड़ों सालों से वर्षा, धूप, तेज हवाओं और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को झेलता हुआ अविजित रूप से खड़ा है अब इसके पत्थरों में दरारें पडऩे लगी हैं। पुरातत्व विभाग ने केमिकल वॉश और मरम्मत के नाम पर इसे लगभग नौ महीने तक बंद रखा और दमक उठा लेकिन इसकी दरारों को भरने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। यदि इसकी दरारें इसी तरह बढ़ती रही तो इसे बचा पाना मुश्किल होगा। लोगों ने बताया कि दस साल पहले इसमें दरारें पडऩा शुरू हुई तब मामला अदालत तक पहुंचा तथा सुप्रीम कोर्ट ने दुर्ग के आसपास दस किलोमीटर दूरी तक विस्फोट तथा भारी मशीनों से खनन काम पर रोक लगा दी जो अभी तक जारी है। इसके बाद पुरातत्व विभाग ने इन दरारों पर नजर रखने के लिए वहां शीशे लगवाए जो अब टूट चुके हैं।
तीन जौहर का साक्षी, लोगों को नहीं पता चित्तौड़ का गौरवशाली इतिहास तीन जौहर का साक्षी रहा है। इनमें हजारों वीरांगनाओं ने अपनी आन-बान की रक्षा के लिए धधकती ज्वाला में कूदकर प्राणों की आहुतियां दी थी। मुगलों व आक्रांताओं के आक्रमण के समय ये तीनों जौहर हुए किन्तु तीन जौहर स्थलों में से दो के बारे में लोग लगभग अनजान हैं।
एक जौहर स्थल विजय स्तंभ व गौमुख कुंड के पास स्थित है। इसके लिए यहां एक छोटा सा साइन बोर्ड लगा हुआ है। वहीं दो अन्य जौहर स्थलों में एक कुंभा महल में सुरंग तथा दूसरा भीमलत कुंड के पास बताया जाता है। इनका भी जिक्र न जौहर स्थली के रूप में है और न यहां जौहर करने का संकेत चिन्ह लगा है। इनके बारे में आम लोगों को कोई जानकारी नहीं है।
पुरातत्व विभाग उदासीन
दुर्ग पर अन्य ऐतिहासिक धरोहरों के समीप उनका नाम लिखने के साथ ही उसके इतिहास की संक्षिप्त जानकारी लिखे बोर्ड या शिलालेख लगे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि जौहर के लिए देश में पहचान रखने वाले स्थान पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण उपेक्षित हैं। जौहर स्थलों की पहचान व विकास की मांग लेकर जौहर स्मृति संस्थान समेत अन्य लोग प्रयास कर चुके हैं। संस्थान ने पुरातत्व विभाग को कई पत्र लिखे, मगर कुछ नहीं हुआ।
बदरंग हो रही धरोहर
महारानी पद्मिनी का एक महल जहां चारों ओर से पानी से घिरा होने के कारण अद्वितीय रूप से सुंदर नजर आता है। वहीं दूसरे महल की बनावट भी काफी अच्छी है। इस महल की सुंदरता को मनचले पर्यटकों की नजर लग रही है। मनचले पर्यटक दीवारों पर कोयले से या पत्थर से खरोंचकर अपने नाम-पते व कुछ भी लिख जाते हैं। इससे दीवारें बदरंग होने के साथ ही क्षतिग्रस्त होने लगी हैं। वहीं सैकड़ों साल पुराने महल को भी समय की मार के चलते नुकसान होने लगा है।
पर्यटकों को नहीं मिलती इतिहास की जानकारी
केन्द्रीय पर्यटन विभाग ने इस दुर्ग को हैरिटेज का दर्जा दिया तथा घोषणा की थी कि यहां पर्यटकों को दुर्ग के इतिहास की जानकारी मिलेगी। इसको लेकर सांसद सीपी जोशी ने भी प्रयास किए लेकिन इस ओर काम नहीं हो पाया।
इनका कहना है
चित्तौड़ दुर्ग के संरक्षण को लेकर निर्देश मांगे गए हैं, उनके जबाव का इंतजार है।चन्द्रभानसिंह, उप निदेशक, पुरातत्व विभाग, चित्तौडग़ढ़
विजय स्तम्भ को तत्काल मरम्मत की आवश्यकता है और इसके लिए विभाग के तय नियमों के अनुसार मरम्मत कार्य जल्द से जल्द कराया जाना चाहिए।
खलील तनवीर, पुराविद् एवं पूर्व संग्रहालय अध्यक्ष,उदयपुर
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