मोदी सरकार ने हटाए रेलवे से राजनीति के रेड सिग्नल, अब होगी राज्यनीति
रेलवे से राजनीति के रेड सिग्नल मोदी सरकार ने हटा दिए हैं। रेलवे की कार्यशैली में अब राजनीति के बजाय राज्यनीति है। सुविधा और सहयोग की पटरियों पर अब केंद्र-राज्य सरकारें मिलकर चलेंगी। कभी बंगाल तो कभी बिहार या किसी एक राज्य की चाहतों में अटकता रहा सुरेश प्रभु का
नई दिल्ली [राजकिशोर]। रेलवे से राजनीति के रेड सिग्नल मोदी सरकार ने हटा दिए हैं। रेलवे की कार्यशैली में अब राजनीति के बजाय राज्यनीति है। सुविधा और सहयोग की पटरियों पर अब केंद्र-राज्य सरकारें मिलकर चलेंगी। कभी बंगाल तो कभी बिहार या किसी एक राज्य की चाहतों में अटकता रहा सुरेश प्रभु का रेल बजट अब राजनीतिक आग्रहों और पूर्वाग्रहों से आजाद होकर ज्यादा राष्ट्रीय रंग-रूप के साथ निकला है।
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बजट में घोषणाएं नहीं, बल्कि उनके अमल और रेलवे की पूरी कार्यशैली बदलने की दिशा स्पष्ट दिखती है। लंबे अरसे बाद ऐसा हुआ है कि रेल मंत्रालय मुख्य सत्ताधारी दल के पास आया है। गठबंधन सरकारों का युग आने के बाद पिछले कुछ समय से रेल मंत्रालय सहयोगी दलों के पास ही रहा। सहयोगी दल किसी राज्य या क्षेत्र विशेष से होते रहे। नतीजतन उनके बजट में उनके अपने सियासी हित ज्यादा रहे। राजनीतिक मजबूरियों के चलते रेलवे में सुधार की प्रक्रिया धीमी रही। घोषणाएं और रियायतों की मानसिकता हावी रही। अपने क्षेत्रों में सियासी हित साधने के लिए रेलवे के संसाधनों के दुरुपयोग से भी नेता नहीं चूके।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार बनने के साथ ही रेलवे के कायाकल्प के संकेत दिए थे। मोदी ने रेलवे को भारत की प्रगति और आर्थिक विकास की रीढ़ बनाने का लक्ष्य रखा था। इसीलिए, पूर्ण बहुमत के साथ आई राजग सरकार में उन्होंने यह पद भाजपा के पास रखा। सदानंद गौड़ा रेल मंत्री बनाए गए, लेकिन मोदी की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे तो सुरेश प्रभु को शिवसेना से पार्टी में लाकर जिम्मेदारी दी गई।
प्रभु ने पहले बजट में ही रेलवे की सोच को अलग करने के संकेत दिए थे। अब दूसरे बजट में सुविधा, सहयोग, संपर्क और सामथ्र्य की तरफ रेल को बढ़ाने के लिए बिना किसी शोर के आगे बढ़ गए हैं। इस कड़ी में सबसे अहम घोषणा है राज्योंं में रेलवे के विस्तार, लोगों की रोजगार और सहूलियत में सक्रिय भूमिका होगी। मंत्रिमंडल ने रेल आधारित परियोजनाएं शुरू करने के लिए राज्य सरकारों के साथ संयुक्त उद्यम का सृजन करने की अनुमति प्रदान की है, उसका असर दिखने लगा है।
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प्रभु ने बताया कि रेलवे के स्वामित्व की साझेदारी, सहकारी संघवाद की भावना को मजबूत बनाने के लिए नई संभावनाएं खुलेंगी। इन परियोजनाओं से खासतौर से पिछड़े इलाकों को समर्थ बनाने की जबर्दस्त संभावनाएं हैं।
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