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कारगिल विजय दिवस: इस जज्‍बे से दुश्‍मन भी हैरान, देश के पहरेदार बने शहीदों के लाल

वीरों और उनके परिवार की मिट्टी ही अलग होती है। कारगिल युद्ध में बलिदान और जाबांजी दिखाने वाले शहीद वीराें की संतानों ने भी देश की रक्षा का जिम्‍मा संभाल लिया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 26 Jul 2018 10:41 AM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2018 02:03 PM (IST)
कारगिल विजय दिवस: इस जज्‍बे से दुश्‍मन भी हैरान, देश के पहरेदार बने शहीदों के लाल
कारगिल विजय दिवस: इस जज्‍बे से दुश्‍मन भी हैरान, देश के पहरेदार बने शहीदों के लाल

तरनतारन/हाेशियारपुर, [धर्मबीर सिंह मल्हार/सरोज बाला] भारत के इन रणबांकुरों के जज्‍बे से दुश्‍मन भी हैरान है। भारत माता की रक्षा करते हुए पिता शहीद हुए तो बेटे देश सीमा का पहरेदार बन गए। बलिदान और जोश की यह गाथा हर देशवासी का सिर गर्व से ऊंचा कर देती है। इससे पता चलता है वीरों की मिट्टी ही कुछ अलग होती है। कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान को सबक सिखाकर देश पर अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीद परिवारों पर भले ही मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा हो, लेकिन ये मुसीबतें उनके पहाड़ जैसे हौसले को कमजोर नहीं कर सकीं।

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देश के प्रति इसी समर्पण और जज्बे की मिसाल पेश करते हुए इन परिवारों ने अपनी अगली पीढ़ी को भी सेना के हवाले कर दिया। नई पीढ़ी को सेना में भेजने वाले शहीदों के माता-पिता का कहना है कि उन्होंने पहले ही ठान लिया था, कि बच्चों को सेना में भेजेंगे। आज यह लाल सैनिक बनकर अपने परिवारों का सपना साकार करने के साथ-साथ देश के प्रति अपना फर्ज निभा रहे हैं।

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बेटे को वर्दी में देख लगा, जैसे वो लौट आए हों

शहीद बलविंदर की तस्‍वीर के साथ पत्‍नी और अन्‍य परिजन।

तरनतारन: 13 सितंबर, 1999 को कारगिल की चोटियों पर शहादत का जाम पीने वाले फर्स्‍ट सिख रेजिमेंट के सैनिक बलविंदर सिंह का पार्थिव शरीर जब गांव मल्लमोहरी लाया गया, तो उनके बच्चे बहुत छोटे थे। पत्नी बलजीत कौर को लगा कि बच्चों की परवरिश कैसे होगी। रिश्तेदारों हौसला दिया और फौज ने भी परिवार की सुध लेने का यकीन दिलाया। इसके बाद शहीद की पत्नी ने अपने लाल को फौजी बनाने का सपना संजोया। बलविंदर सिंह की शहादत समय बड़ी बेटी जसबीर कौर पांच वर्ष की थी। छोटा बेटा सिमरजीत सिंह चार वर्ष और बेटी लखबीर कौर तीन वर्ष की थी।

शहीद होने सैनिक बलविंदर सिंह के बेटे सिमरजीत सिंह निभा रहे फर्ज

शहीद बलविंदर सिंह की पत्नी बलजीत कौर ने अपने बेटे सिमरजीत सिंह को फौज में भर्ती करवाने के लिए इस कदर मजबूत बनाया कि सपना 2012 में साकार हो गया। सिमरजीत सिंह सिख रेजिमेंट में बतौर सैनिक भर्ती हो गया। पहली बार अपने जिगर के टुकड़े को फौज की वर्दी में देखकर मांग बलजीत कौर के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बलजीत कौर ने बताया कि मुझे ऐसा लगा कि वो (कारगिल शहीद बलविंदर सिंह) लौट आए हों।

मोर्चा पर डटा सिमरजीत।

सैनिक बेटे का माथा चूम बलजीत कौर ने वाहेगुरु का शुक्राना करने के लिए घर में श्री अखंड पाठ साहिब करवाया। जम्मू-कश्मीर के आरएसएसपुरा में तैनात सिमरजीत सिंह हाल ही में घर छुट्टी आए हैं। उन्होंने बताया कि हर वक्त अपने शहीद पिता की तस्वीर साथ रखता हूं। मां बलजीत कौर, बहन जसबीर कौर, लखबीर कौर और पत्नी कोमल कौर को गर्व है कि उनका परिवार आज भी सेना में सेवाएं दे रहा है।

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पिता की रेजीमेंट में बेटा, पोता भी पकड़ेगा दादा की राह

तरनतारन:  तरनतारन के गांव धूंदा निवासी सैनिक अमरजीत सिंह कारगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। 7 सिख रेजिमेंट में तैनात अमरजीत सिंह का पार्थिव शरीर जब घर लाया गया, तो उस समय उनका बड़ा बेटा गुरप्रीत सिंह पांच वर्ष का था। अमरजीत सिंह की पत्नी रंजीत कौर ने  जागरण को बताया कि पति की शहादत के समय ही उन्होंने ठान लिया था कि बेटे गुरप्रीत सिंह को फौज की वर्दी पहनाऊंगी।

शहीद अमरजीत सिंह और मां के साथ गुरप्रीत सिंह।

रंजीत कौर ने बताया कि 2013 में गुरप्रीत सिंह फौज की उसी रेजिमेंट में भर्ती हुआ, जिसमें उसके पिता थे। गुरप्रीत सिंह अब अंबाला में तैनात है। उसका कहना है कि फौज में भर्ती होते ही मुझे उन सैनिकों ने बहुत कुछ सिखाया, जो मेरे पिता के साथ कारगिल की लड़ाई में बहादुरी से लड़े थे। सैनिक गुरप्रीत सिंह, उनकी मां रंजीत कौर, बहन संदीप कौर, भाई हरप्रीत सिंह को अपने पिता अमरजीत सिंह की शहादत पर गर्व है। सैनिक गुरप्रीत सिंह की पत्नी सलिंदर कौर का कहना है कि उनके घर डेढ़़ वर्ष पहले बेटे निर्मलजोत सिंह ने जन्म लिया है। उनकी इच्छा है कि वह भी अपने पिता और दादा की तरह सैनिक बने।

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काश और बेटे होते, तो सबको सेना में भेजती

दातारपुर (होशियारपुर): काश मेरे और बेटे होते, तो मैं उन्हें भी देश की सरहद, की रक्षा के लिए सेना में भेज देती। रेपुर (दातारपुर) के कारगिल शहीद राजेश कुमार की माता महिंदर कौर और पिता नाथ राम का परिवार सेना को समर्पित है। वह कहते हैं, 'पांच बहनों के इकलौते भाई राजेश की शहादत पर दु:ख तो हुआ, लेकिन गौरव भी है कि उनका बेटा देश की रक्षा करते हुए अपनी मातृभूमि पर कुर्बान हुआ।'

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महिंदर कौर कहती हैं, 'हर मनुष्य पर जन्म लेते ही मां का ऋण, पिता का ऋण, गुरु का ऋण और सबसे बड़ा मातृभूमि का ऋण होता है। बेटे ने राष्ट्र के प्रति अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और मातृभूमि का ऋण उतार दिया, जो गर्व की बात है।' उनका बेटा 7 जुलाई, 1999 को डोगरा रेजिमेंट में राष्ट्र रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ था। उम्र मात्र 25 साल थी। उसकी शादी के अरमान मन में थे।

शहीद राजेश और उनकी तस्‍वीर के साथ परिवार के सदस्‍य।

30 जुलाई 1974, को जन्मे राजेश ने 10वीं कक्षा पास कर सेना को चुना। राजेश की शहादत के बावजूद बड़ी बेटी संतोष के बेटे विशाल को फौज में भर्ती करवाया, ताकि परिवार से एक युवा देश की सरहदों की रखवाली करने का पुनीत कार्य करता रहे।

राजेश की शहादत के बाद परिवार को गैस एजेंसी, पेट्रोल पंप अलॉट करने की बातें तो की गईं, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। गांव के प्राइमरी स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखा गया। जिस सड़क को शहीद का नाम दिया गया, वह आज बदहाल है। शहीद के पिता ने ही अपने खर्च पर गांव के प्रवेश द्वार पर भव्य गेट बनवा कर अपने सपूत की स्मृति को बनाए रखा है।

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