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शहीद उधम सिंह जयंती पर विशेषः 21 वर्ष बाद लिया था जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला!

जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला शहीद उधम सिंह ने लगभग 21 वर्ष 13 मार्च 1940 को लिया था। उन्होंने माइकल ओ डायर को लंदन में जाकर गोली मारी थी।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Wed, 26 Dec 2018 10:31 AM (IST)Updated: Wed, 26 Dec 2018 02:52 PM (IST)
शहीद उधम सिंह जयंती पर विशेषः 21 वर्ष बाद लिया था जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला!
शहीद उधम सिंह जयंती पर विशेषः 21 वर्ष बाद लिया था जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला!

सुनाम ऊधम सिंह वाला [सुशील कांसल]। शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। सन् 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए।

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उधम सिंह 13  अप्रैल 1919 को घटित जालियांवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। इस घटना से वीर उधम सिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। उधम सिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए। देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।

लगभग 21 वर्ष बाद उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया। 13 मार्च 1940 को उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ डायर को लंदन में जाकर गोली मारी। इसी मामले में उन्हें 31 जुलाई 1940 को फांसी दी गई। वहीं, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि माइकल ओ डायर वह व्यक्ति नहीं था जिसने जलियावाला बाग में गोली चलाने का आदेश दिया था।

खुद को मोहम्मद सिंह आजाद लिखते थे शहीद ऊधम सिंह

सरदार ऊधम सिंह जिंदगी भर धर्मनिरपेक्षता की आवाज बुलंद करते थे। खुद को ऊधम सिंह लिखने के बजाय वे मोहम्मद सिंह आजाद लिखते रहे और इसी नाम से अपनी पहचान बताते थे। लंदन की केकस्टन हॉल में माइकल ओ-डायर को मारने के बाद वहां की बेरिकस्टन और पेंटनविले जेल से लिखे पत्रों में भी ऊधम सिंह अपना नाम मोहम्मद सिंह आजाद लिखते थे।

फांसी की सजा सुनने के बाद भी ऊधम सिंह ने अपनी धर्मनिरपेक्ष सोच को कमजोर नहीं होने दिया था। यहां तक कि आखिरी पत्र में भी उन्होंने खुद को मोहम्मद सिंह आजाद ही लिखा। इस नाम के माध्यम से ऊधम सिंह खुद को मुसलमान, सिख व हिंदू धर्म का सांझा इंसान मानने का संदेश पूरी दुनिया को दे रहे थे। हालांकि ब्रिटिश हुकूमत को चकमा देने के लिए वह अपना नाम बार-बार बदलते रहते थे।

उधम सिंह खुद का नाम मोहम्मद सिंह आजाद लिखते थे।

विदेशों में वे फ्रैंक ब्राजील और बावा सिंह के नाम से रहते रहे थे। अपनी निजी डायरी में वे अपना नाम सिर्फ मोहम्मद सिंह आजाद (एमएस आजाद) ही लिखते अपने हस्तलिखित पत्रों में भी एमएस आजाद के नाम के हस्ताक्षर किए थे। 13 मार्च 1940 को माइकल ओ डायर को मारने के बाद वहां की दो जेलों में बंद रहे ऊधम सिंह ने दर्जनों पत्र लिखे। सभी पर उन्होंने अपना नाम एमएस आजाद ही लिखा।

रेलवे में तैनात अधिकारी राकेश कुमार की प्रकाशित पुस्तक महान गदरी इंकलाबी शहीद ऊधम सिंह में भी इसका जिक्र है। लेखक राकेश कुमार का मानना है कि ऊधम सिंह धर्मनिरपेक्षता का संदेश दे रहे थे। उनका सपना था कि देश में सभी को समान अधिकार मिले। जुल्मों का खात्मा हो और बच्चों को बेहतर शिक्षा और सेहत सुविधा नसीब हो।

ब्रिटिश अधिकारियों को चकमा देने और भारतीयों के मन में धर्मनिरपेक्षता की आवाज बुलंद करने के लिए उन्होंने खुद को मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से स्थापित किया था। शहीद ऊधम सिंह सुनाम में 26 दिसंबर 1899 को पैदा हुए थे। उनके पैतृक शहर में जन्मदिवस मनाने का दौर शुरू हो गया है।

इस नज्म से गहरा लगाव

‘सेवा देश दी जिंदड़ीए बड़ी ओखी, गल्लां करनियां ढेर सुखालियां ने, जिन्हां देश सेवा विच्च पैर धरया, ओहना लख मुसीबतां झलियां ने।’ आजादी के संग्राम के तीन महानायकों को पंजाबी की इस नज्म ने एकसूत्र में बांधे रखा था। शहीद करतार सिंह सराभा, शहीद भगत सिंह और शहीद ऊधम सिंह इस नज्म को अक्सर गुनगुनाते थे।

भले ही तीनों शहीदों को एकसाथ देश सेवा करने का अवसर नहीं मिला हो, लेकिन तीनों परवाने, एक-दूसरे की विचारधारा और जज्बात के खूब कायल थे। पंजाबी की यह नज्म इस बात का भी प्रमाण है कि देश पर मर मिटने वाले शहीदों में लिखने की अदभुत कला थी। आजादी के परवानों की शायरी और कई नज्में वर्तमान दौर में नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत से कम नहीं है।

शहीद ऊधम सिंह उक्त नज्म को इस कदर अपने दिल में बसाए हुए थे कि लंदन में माइकल ओ डायर को मारने के बाद अदालत में कई बार अपने साथ लेकर गए पन्नों पर इस नज्म को भी लिखकर ले गए थे। इतना ही नहीं ओडवायर को मारने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने जब लंदन स्थित उनके घर की तलाशी ली गई तो वहां से शहीद की मिली लाल रंग की निजी डायरी में भी ऊधम सिंह ने इस नज्म को पंजाबी में लिखा हुआ था।

शहीद ऊधम सिंह के उक्त दस्तावेज देश की अमनोल धरोहर से कम नहीं हैं। हरेक पन्ने से देश प्रेम की अटूट महक आती है। ऊधम सिंह कई अन्य शेयर में अपनी निजी डायरी में लिखते रहे। शहीद भगत सिंह और शहीद करतार सिंह सराभा की कई रचनाएं इस बात को प्रमाणित करती हैं कि इन महानायकों के देश प्रेम के अटूट जज्बे ने इनके भीतर लिखने की अदभुत कला को जन्म दिया था। शहीद ऊधम सिंह के जीवन पर कई पुस्तकें लिख चुके लेखक राकेश कुमार ने कहा कि शहीद भगत सिंह भी इस नज्म को गुनगुनाते थे और शहीद करतार सिंह सराभा को भी अपनी इस नज्म से गहरा लगाव था।

रोजगार देने वाला प्रोजेक्ट हो स्थापित

शहीद ऊधम सिंह की शहादत को हरेक सियासी दल सलाम कर रहा है, लेकिन अभी तक उनकी भव्य यादगार नहीं बन सकी है। इसके अलावा संगठन मांग उठा रहे हैं कि शहीद की याद में ऐसा प्रोजेक्ट स्थापित किया जाए जिससे युवाओं को रोजगार मिल सके। शहीद ऊधम सिंह लेबर यूनियन के अध्यक्ष मनजीत सिंह, वामदल के नेता कामरेड हरदेव सिंह आदि ने कहा कि यहां शहीद की याद में बडा प्रोजेक्ट स्थापित किया जाए, जिससे इलाके के हजारों युवाओं को रोजगार मिले।

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