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    पंजाब में कैप्टन लाए प्लांट, कांग्रेस ने किया विरोध, अब पेप्सीको प्लांट बना फसल विविधीकरण का केंद्र

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Sun, 20 Dec 2020 08:01 AM (IST)

    पंजाब के संगरूर के गांव चन्‍नो में स्‍थापित पे‍प्‍सीको प्‍लांट फसल विविधीकरण का केंद्र बन गया है। इसका फायदा सैकड़ों किसान कांट्रैक्‍ट फार्मिंग को अपनाकर फायदा उठा रहे हैं। इस प्‍लांट को कैप्‍टन अमरिंदर सिंह लेकर आए थे और कांग्रेस ने इसका विरोध किया था।

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    संगरूर जिले के चन्‍नी गांव में पे‍प्‍सीको प्‍लांट के बाहर किसान चमकौर सिंह। (जागरण)

    इन्द्रप्रीत सिंह, चन्नो (संगरूर)। जून 1989 में जिला संगरूर के गांव चन्नो में लगाया गया पेप्सीको का प्लांट फसल विविधीकरण का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। उस समय इस प्लांट को लगाने के लिए पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस के विरोध का सामना करना पड़ा। जानकार बताते हैं कि कांग्रेस ने तब इस प्लांट की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से करते हुए कहा था कि कैप्टन हमें (पंजाब को) अंग्रेजों का गुलाम बना देंगे।

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    सैकड़ों किसान उठा रहे कांट्रैक्ट फाìमग से फायदा, पानी बचाने पर किसानों को बोनस दे रही कंपनी

    दरअसल, आपरेशन ब्लू स्टार के बाद 1985 में शिरोमणि अकाली दल की सरकार बनी। उस समय कैप्टन अमरिंदर सिंह तत्कालीन मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में कृषि मंत्री थे। कैप्टन के प्रयासों से पेप्सीको ने चन्नो में पहला प्लांट स्थापित किया। तत्कालीन सेहत मंत्री सुखदेव सिंह ढिल्लों उन दिनों अमेरिका गए हुए थे। जहां उन्होंने पेप्सीको का काम देखा और पंजाब में प्लांट लगाने के लिए उन्होंने कंपनी की मैनेजमेंट से बात की।

    संगरूर के गांव चन्‍नी के पेप्‍सीको प्‍लांट में किसान बलकार सिंह। (जागरण)

    सहमति बन गई तो कैप्टन अमरिंदर सिंह इसका प्रस्ताव विधानसभा में ले आए। उस समय कांग्रेस विपक्ष में थी। हालांकि 1987 में बरनाला सरकार गिर गई थी लेकिन प्लांट लगाने के लिए कैप्टन इसके पीछे पड़े रहे। राष्ट्रपति शासन के दौरान उन्होंने 6 जून 1989 को पंजाब एग्रो एक्सपोर्ट कार्पोरेशन के माध्यम से यह प्लांट लगवाया, जहां आलू चिप्स तैयार किए जाते हैं।

    आज यह प्लांट पंजाब में फसल विविधीकरण और कांट्रैक्ट फार्मिंग का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 6600 एकड़ में तो कंपनी केवल बीज तैयार करवाती है ताकि पूरे वर्ष प्लांट चालू रखने के लिए आलू की कमी न हो। न केवल कांट्रैक्ट फार्मिंग बल्कि बहुत से किसान यहां खुले व्यापार के तहत अपनी आलू की फसल भी बेचते हैं। वहीं, कंपनी कांट्रैक्ट फार्मिंग के तहत खरीदे गए आलू को कोल्ड स्टोर में रखती है।

    13 साल से कर रहा हूं कांट्रैक्ट फार्मिग

    चन्नो से दस किलोमीटर दूर गांव बालद कलां के किसान परजा सिंह ने कहा कि वह पिछले 13 वर्षो से कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं और 12 एकड़ रकबे में कांट्रैक्ट फार्मिंग के तहत आलू लगाते हैं। कंपनी उनसे सवा नौ रुपये प्रति किलो की दर से आलू खरीदती है। कई बार बाजार में आलू की कीमत कांट्रैक्ट से ज्यादा होने के बावजूद वह विश्वास बनाए रखने के लिए कंपनी को ही आलू देते हैं।

    कांट्रैक्‍ट फार्मिंग करने वाले एक किसान। (जागरण)

    फव्वारा सिंचाई सिस्टम से तिहरा लाभ, फसल पर मिलता है बोनस

    होशियारपुर के गांव जल्लोवाल में कंपनी ने आलू बीज तैयार करने के लिए एशिया की सबसे बड़ी लैब भी बनाई है। जहां बड़ी मात्रा में बीज तैयार करके किसानों को दिया जाता है। वहीं, संगरूर के गांव बलियाल के किसान बलकार सिंह भी कंपनी के लिए अपने 20 एकड़ के खेत में बीज तैयार कर रहे हैं। कंपनी खुद ही अपने खर्च पर बीज उठाकर ले जाती है।

    अपने खेत में खेत लगे फव्वारा सिंचाई सिस्टम के बारे में बलकार सिंह कहते हैं कि इसके कई फायदे हैं। इसके लिए कंपनी उन्हें 50 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देती है। दूसरा, इससे पानी कम लगता है और तीसरा, कोहरे से फसल को होने वाले नुकसान से बचाव होता है। कंपनी की ओर से जगतार सिंह की अगुवाई में सात सदस्यीय टीम बलकार सिंह के प्लांट का सीजन में तीन बार निरीक्षण करती है।

    दोआबा के किसानों की तरह कभी सड़क पर नहीं फेंकी फसल

    सौ क्विंटल से ज्यादा फसल लेकर प्लांट पर पहुंचे इसी गांव के चमकौर सिंह ने कहा कि वह पिछले 15 वर्ष से कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं। ऐसा मौका कभी नहीं आया कि उन्हें दोआबा के किसानों की तरह अपनी आलू की फसल को सड़क पर फेंकना पड़ा हो।

     

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