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    जिले में पांच हजार हेक्टेयर जमीन पर की धान की सीधी बुआई

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 07 Aug 2021 11:58 PM (IST)

    जिला रूपनगर में धान की खेती करने की नई विधि को प्रफुल्लित करने में खेतीबाड़ी विभाग जुटा है।

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    जिले में पांच हजार हेक्टेयर जमीन पर की धान की सीधी बुआई

    अजय अग्निहोत्री, रूपनगर : जिला रूपनगर में धान की खेती करने की नई विधि को प्रफुल्लित करने में खेतीबाड़ी विभाग जुटा है। खेतीबाड़ी विभाग ने जिले में सीधी बुआई की तकनीक को लेकर पिछले साल के मुकाबले रकबा बढ़ा दिया है। जिले में इस सीजन में पांच हजार हेक्टेयर (12 हजार एकड़) रकबे में सीधी बुआई विधि से धान लगाया गया है। इससे धान लगाने में लगने वाले पानी के इस्तेमाल में 25 फीसद तक कमी लाई जा सकती है। जिले में पिछले साल सीधी बुआई के अधीन 2800 हेक्टेयर रकबा कवर किया गया था। 31 हजार हेक्टेयर में परंपरागत खेती

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    जिला रूपनगर में इस सीजन में 36 हजार हेक्टेयर (90 हजार एकड़) जमीन में धान की खेती की गई है। इसमें पांच हजार सीधी बुआई का रकबा अगर छोड़ दें तो 85 हजार हेक्टेयर रकबे में परंपरागत तरीके से कद्दू करके धान लगाया गया है। इससे जमीन के नीचे के पानी का सिचाई के लिए अत्याधिक इस्तेमाल होगा। भू जल स्तर गिरने के बाद पर्यावरण को होने वाले न पूरे होने वाले घाटों का आंकलन करना बेहद मुश्किल है। ये हैं फायदे

    खेत में कद्दू करने का खर्च बचता है। इससे किसान का आर्थिक फायदा होने के साथ साथ समय भी बर्बाद होने से बचता है। सबसे अहम धान की सीधी बुआई में पानी की लागत 25 फीसद कम रह जाती है। जमीन में नहीं हो पाता बारिश का पानी रिचार्ज

    परंपरागत धान की खेती में पहले खेत में ट्रैक्टर के जरिये कद्दू किया जाता है। इससे जमीन के की परतें मोटी होती जाती हैं। जिसे तकनीकी भाषा में कड़े कहा जाता है। जितनी बार भी जमीन में कद्दू किया जाता है तो उससे कड़े बनते जाते हैं। कड़े बनने से जमीन के नीचे पानी नहीं जाता। जिससे भू जलस्तर बढ़ नहीं पाता।

    सीधी बुआई विधि से पानी और पैसा दोनों की बचत : डा. अवतार

    रूपनगर के मुख्य खेतीबाड़ी अधिकारी डा. अवतार सिंह ने कहा कि चावल की खेती में अत्यधिक पानी का इस्तेमाल होता है। एक किलो चावल के लिए पांच हजार लीटर पानी लगता है। इससे पानी के अत्यधिक इस्तेमाल का अंदाजा लगाया जा सकता है। सीधी बुआई रकबे में बढ़ोतरी हर साल की जा रही है। इस साल 2800 हेक्टेयर से 5 हजार हेक्टेयर तक रकबा बढ़ाया गया है।