भक्त सेन जी दीन दुखियों की सेवा में लगाते थे कमाई
नंगल : भक्त शिरोमणि सैन जी महाराज का जन्म 1400 विक्रमी संवत दिन रविवार 20 मार्गशीर्ष को सुबह 4 बजे प
नंगल : भक्त शिरोमणि सैन जी महाराज का जन्म 1400 विक्रमी संवत दिन रविवार 20 मार्गशीर्ष को सुबह 4 बजे पूर्णिमा के दिन गांव सोहल ठठ्ठी नजदीक झब्बाल जिला तरनतारन में श्री मुकंदराय के घर में हुआ। आप की माता का नाम जीवणी देवी था। 12 वर्ष की आयु में आपको बुआ के पास लाहौर भेज दिया गया। उस्ताद अजीम से पैतृक कार्य 'जिराही हिक्मत' की सिखलाई प्राप्त की। आप की शादी बीबी साहिब देवी से हुई और एक पुत्र नई ने जन्म लिया। पंजाब में भयानक अकाल पड़ने पर भक्त जी सपरिवार दिल्ली रवाना हुए जहां उन्हें दीवान सोहन लाल मिले। वहां उन्होंने नौकरी कर ली। जो भी धन मिलता था वे उसे साधु संतों व दीन दुखियों की सेवा में लगा देते थे। एक दिन दीवान सोहन लाल ने कहा कि मेरा एक राजा मित्र है, जो कोहड़ से ग्रस्त है। काफी इलाज करवाने के बावजूद भी उनका कोहड़ दूर नहीं हो रहा है। आप इस कार्य में निपुण हैं, कृपा आप उनका दुख दूर करें। भक्त सेन जी ने राजा जयदेव के पास जाकर उनका इलाज शुरू किया। राजा ने भक्त जी के रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। भक्त जी सुबह शाम उनका इलाज करने लगे। एक दिन सुबह जैसे ही वे अपनी कुटिया से राजमहल जाने के लिए निकले, तभी रास्ते में भूखे साधुओं की एक टोली मिली। भक्त जी उनकों अपनी कुटिया ले आए। वहां उन्हें स्नान करवाया व भोजन करवा कर कहा-हे संतजनों आज हमें भगवान कृष्ण की साखी सुनाएं। संतों ने भजन सुनाना शुरू किया। भक्ति में लीन भक्त जी राजा की मरहम पट्टी की सेवा करना भूल गए। तभी भगवान कृष्ण ने देखा कि मेरा भक्त मेरी भक्ति में लीन है, राजा इसे कड़ी सजा देगा। भगवान कृष्ण सेन का रूप धारण कर राज महल पहुंच गए। जब वे राजा की मरहम पट्टी, मुक्कीचापी करने लगे तो राजा को दिव्य आनंद की अनुभूति होने लगी। जब राजा ने तेल की कटोरी में देखा तो उसे भगवान कृष्ण नजर आते, जब पीछे मुड़ कर देखता तो भक्त सेन नजर आते। राजा के रोम-रोम में प्रभु सिमरन होने लगा। अगले दिन सेन जी राजा से क्षमा मांगने आए तो राजा ने भक्त जी के पांव पकड़ लिए और कहा आपने जो हमें बख्शीश किया है, वह मुझ पर कृपा है। आज से मैं व मेरी प्रजा आपके सेवक हुए। राजा की पत्नी ने भक्त सेन जी को राज गद्दी पर बैठा कर तिलक लगाया व उन्हें राजा बनने की पेशकश की जिसे सेन जी न अपना कर राजा का जीवन सफल करते हुए काशी चले आए। आपका परिवार सोहल वापस आ गया। काशी भक्तों का गांव था, वहां रामानंद जी, कबीर जी, त्रिलोचन जी, रविदास जी, धन्ना जी रह रहे थे। अनेक आत्माओं को प्रभु के साथ जोड़ते हुए भक्त सैन जी विक्रमी संवत 1490 को रविवार को काशी में समाधिलीन हो गए। जिस दिन सेन जी को राजा का सम्मान देने के लिए रानी ने तिलक लगाया था, उसी दिन से आज के दिन को 'टिका भईया-दूज' के रूप में मनाया जाता है। पंजाब के जिला जालंधर के शहर प्रताप पुरा में डेरा बाबा सेन भक्त स्थित भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। मानते हैं कि यहां पर सच्चे दिन से की गई हर मनोकामना पूरी होती है।
प्रस्तुति: कमल सेन जंडा,
राष्ट्रीय प्रचारक एवं प्रधान,
सेन समाज, जिला ऊना (नंगल)।
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