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    रिसर्च में खुलासा: पराली के धुएं से हांफ रहे फेफड़े, कैंसर का खतरा सबसे अधिक; 400 लोगों पर किया गया अध्ययन

    Updated: Tue, 09 Jan 2024 01:50 PM (IST)

    Stubble Smoke and Cancer in Hindi पीएम 10 के मुकबाले पीएम-2.5 बहुत छोटे कण होते हैं जो फेफड़ों में गहराई तक चले जाते हैं। धुएं से फेफड़ों में पैदा संक्रमण व जलन कैंसर का कारण बनती है। धुएं में कार्बन डाइआक्साइड कार्बन मोनोआक्साइड नाइट्रोजन आक्साइड सल्फर आक्साइड और मीथेन जैसी खतरनाक गैसें होती हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं।

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    Stubble Burning Effects: पराली के धुएं से हांफ रहे फेफड़े, कैंसर का खतरा सबसे अधिक

    गौरव सूद, पटियाला (Stubble Burning Effects)। पराली का धुआं फेफड़ों के कैंसर का एक बड़ा कारण है। यह निष्कर्ष सरकारी मेडिकल कालेज पटियाला के फिजियोलाजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. इकबाल सिंह के 35 गांवों के 400 लोगों पर एक वर्ष तक किए गए अध्ययन का है। इसमें बताया गया है कि पराली के धुएं में खतरनाक कण (पीएम 2.5 माइक्रोमीटर) होते हैं, जबकि सामान्य मिट्टी और प्रदूषण में पीएम-10 माइक्रोमीटर होते हैं।

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    छोते कण पहुंच जाते हैं फेफड़ों तक

    पीएम 10 के मुकबाले पीएम-2.5 बहुत छोटे कण होते हैं, जो फेफड़ों में गहराई तक चले जाते हैं। धुएं से फेफड़ों में पैदा संक्रमण व जलन कैंसर का कारण बनती है। धुएं में कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर आक्साइड और मीथेन जैसी खतरनाक गैसें होती हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं। पराली जलाने से कैंसर जैसी बीमारियां इंसान के फेफड़ों को घेर लेती हैं, जिससे इंसान जिंदगी की जंग हार जाता है।

    गांवों के 400 लोगों पर एक वर्ष तक किया है अध्ययन

    कैंसर को रोकने के लिए बंद करना होगा पराली जलाना डॉ. इकबाल ने कहा कि पंजाब में कैंसर की बढ़ती बीमारी को रोकने के लिए पराली जलाना बंद करना होगा। अक्टूबर-नवंबर महीने में पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने का चलन चरम पर होता है। इससे पर्यावरण प्रदूषण के कारण लोगों को बीमारियों का सामना भी करना पड़ता है।

    400 लोगों पर किया रिसर्च

    पराली जलाने 90% व्यक्तियों के फेफड़ों की क्षमता हुई कम उन्होंने बताया कि मैंने दो जिलों पटियाला और फतेहगढ़ साहिब के 35 गांवों के 20 से 50 वर्ष तक के 400 लोगों को अपने अध्ययन का हिस्सा बनाया। इसमें 200 किसानों (जो पराली जलाते हैं ) को शामिल किया गया और 200 सामान्य लोगों (जोकि पराली जलाने के क्षेत्र से दूर रहते हैं) के फेफड़ों का परीक्षण किया गया। इसमें पाया गया कि किसान पराली जलाने वाले किसानों में से 90 प्रतिशत लोगों की फेफड़ों की क्षमता काफी कम पाई गई। जो सामान्य लोग थे, उनकी फेफड़ों की क्षमता सामान्य पाई गई। फेफड़ों की क्षमता के विभिन्न पैरामीटर का अध्ययन किया गया। इसके तहत सामान्य लोगों के मुकाबले पराली जलाने वालों में फोर्स्ड वाइटल कैपेसिटी और पीक एक्सपिरेटरी फ्लो रेट गड़बड़ पाई गई।

    राज्य में इस वर्ष 36,663 जगह पराली जलाई गई

    राज्यभर में इस वर्ष भी राज्य में 36,663 जगह पराली जलाई गई। हालांकि, पिछले वर्षों के मुकाबले मामले काफी कम रहे। पिछले वर्ष राज्य भर में पराली जलाने के 49,922 मामले सामने आए थे। अध्ययन इंटरनेशनल आर्गेनाइजेशन आफ साइंटिफिक रिसर्च (आइओएसआर) ने अपनी विज्ञान पत्रिका जर्नल आफ डेंटल एंड मेडिकल साइंसेज (जेडीएमएस) में प्रकाशित किया है। इस अध्ययन के फायदों को कृषि विभाग तक पहुंचाकर किसानों को जागरूक करने की भी सलाह दी गई है।

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