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    पटियाला में पराली जलाने के मामलों में आई 56% की कमी, सख्त कार्रवाई से दिखा असर

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 12:10 PM (IST)

    पटियाला जिले में पराली जलाने के मामलों में 56% की कमी आई है। प्रशासन की सख्त कार्रवाई और जागरूकता अभियानों के कारण इस वर्ष 235 मामले दर्ज किए गए, जबकि पिछले वर्षों में यह संख्या अधिक थी। जुर्माने और कानूनी कार्रवाई के साथ, प्रशासन पराली जलाने को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य बना रहा है। हालांकि, वायु गुणवत्ता अभी भी प्रभावित है, और अन्य कारक भी प्रदूषण में योगदान करते हैं।

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    पटियाला जिले में पराली जलाने के मामलों में 56% की कमी आई (फोटो: जागरण)

    गौरव सूद, पटियाला। धान की कटाई का सीजन समाप्त हो चुका है और ऐसे में जिले से पराली जलाने को लेकर इस बार एक सकारात्मक तस्वीर सामने आई है। पिछले वर्ष की तुलना में जिला में पराली जलाने के मामलों में 56 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है।

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    इस बार 22 नवंबर तक जिले में कुल 235 पराली जलाने की घटनाएं सामने आईं, जबकि वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 3335, वर्ष 2023 में 1879 और वर्ष 2024 में 541 था। आंकड़ों से स्पष्ट है कि जिले में प्रशासन की ओर से चलाए गए अभियान तथा सख्त कार्रवाई के परिणामस्वरूप इस सीजन में पराली जलाने की घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट आई है।

    अधिकारियों का कहना है कि आने वाले वर्षों में पराली जलाने को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। किसानों को बताया जा रहा है कि पराली जलाना न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है बल्कि मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी घटती है। प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया है कि भविष्य में भी नियमों का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कार्रवाई जारी रहेगी।

    प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार किसानों को कई बार जागरूक करने, वैकल्पिक प्रबंधन के साधन उपलब्ध करवाने और पराली जलाने पर सख्त दंडात्मक कार्रवाई ने इस बार बड़ी भूमिका निभाई है।

    पराली जलाने के मामलों में कुल 8.75 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया, इनमें से 8.65 लाख रुपये की वसूली भी हो चुकी है, जो लगभग पूर्ण अनुपालन दर्शाती है। सीजन के दौरान 170 रेड एंट्री और 172 एफआईआर भी दर्ज की गईं।

    अधिकारियों का कहना है कि जिले में पराली जलाने के खिलाफ ज़ीरो टालरेंस पालिसी लागू की गई थी, जिसके कारण किसानों ने भी नियमों का पालन करने का प्रयास किया। गांवों में लगातार नोडल अधिकारियों की तैनाती, स्ट्रा मैनेजमेंट मशीनों की उपलब्धता और पंचायतों की भागीदारी ने भी इस कमी में अहम योगदान दिया है।

    हालांकि पराली जलाने के मामलों में गिरावट सकारात्मक संकेत है, लेकिन हवा की गुणवत्ता पर इसका असर बहुत अधिक नहीं दिखा। जिले का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) सीजन के दौरान 6 दिन तक खराब श्रेणी में दर्ज किया गया।

    इनमें दो नवंबर एक्यूआई 286 के साथ सीजन का सबसे प्रदूषित दिन रहा। इसके अलावा 21 नवंबर को 206, 22 नवंबर को 262, एक नवंबर को 209, तीन नवंबर को 250 और आठ नवंबर को 204 एक्यूआई रहा। जोकि खराब श्रेणी में होता है।

    एक्सपर्ट्स के अनुसार हवा की गुणवत्ता पराली के अलावा बाहरी प्रदूषण, वाहनों के धुएं, निर्माण कार्य, औद्योगिक गतिविधियों और मौसम की परिस्थितियों से भी प्रभावित होती है।

    इसलिए यह पूरी तरह पराली जलाने में कमी से संबंधित नहीं। फिर भी विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि पराली जलाने के मामले उतने ही अधिक होते जितने पिछले साल या 2023 में थे, तो एक्यूआई की स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती थी।