रोडवेज, पनबस और PRTC कर्मचारियों की हड़ताल से पंजाब में बस सेवा ठप, मान सरकार को रोजाना एक करोड़ का नुकसान
पंजाब रोडवेज पनबस और पीआरटीसी के कच्चे कर्मचारियों की हड़ताल से राज्यभर में बस सेवा बाधित है। पीआरटीसी को प्रतिदिन एक करोड़ का नुकसान हो रहा है। कर्मचारी नियमितीकरण और समान वेतन की मांग कर रहे हैं। सरकार और कर्मचारियों के बीच कई दौर की वार्ता विफल रही है। हड़ताल के कारण यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है जिससे कामकाज प्रभावित हो रहा है।

जागरण संवाददाता, पटियाला। पंजाब रोडवेज, पनबस और पीआरटीसी के कच्चे कर्मचारी पिछले कई दिनों से हड़ताल पर हैं, जिसके चलते राज्यभर में सरकारी बसों का संचालन बुरी तरह प्रभावित है। हड़ताल से पीआरटीसी को प्रतिदिन तकरीबन एक करोड़ रुपये का आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ रहा है।
यूनियन के अनुसार, प्रदेश के 27 डिपो में से 9 पीआरटीसी और बाकी रोडवेज-पनबस के हैं। हड़ताल के चलते 3000 से ज्यादा बसें डिपो में ही खड़ी रहीं, जिससे सरकार की आय पर भी बड़ा असर पड़ा। पीआरटीसी को आमतौर पर रोजाना लगभग 2.40 करोड़ रुपये की आय होती है, लेकिन हड़ताल के पहले दिन यह घटकर करीब एक करोड़ के आसपास रह गई।
वहीं मैनेजमेंट का दावा है कि राज्य में लगभग 60 प्रतिशत बसें सुचारू रूप से चल रही हैं, परंतु कर्मचारी संगठनों का कहना है कि यह आंकड़ा वास्तविकता से परे है। उनका कहना है कि पीआरटीसी में करीब 90 प्रतिशत कर्मचारी कान्ट्रैक्ट पर कार्यरत हैं और अधिकांश हड़ताल पर हैं, ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में बसों का संचालन संभव नहीं है।
सरकार और कर्मचारियों के बीच खींचतान के कारण हड़ताल जारी है और कई रूटों पर बस सेवाएं पूरी तरह से ठप रहीं। मजबूरीवश लोगों को टैक्सी, आटो और निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ा। आम जनता का कहना है कि रोज़मर्रा की आवाजाही प्रभावित होने से उनके कामकाज पर बुरा असर पड़ा है।
कर्मचारी ने पुतला फूंककर जताया रोष
कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। इससे नाराज कर्मचारियों ने बस अड्डे में अधिकारियों का पुतला फूंककर विरोध जताया।
यूनियन नेताओं ने साफ चेतावनी दी है कि जब तक उनकी मांगों का स्थाई हल नहीं निकलेगा, तब तक हड़ताल जारी रहेगी। कर्मचारियों ने रविवार को मुख्यमंत्री निवास के बाहर राज्य स्तरीय धरना देने का एलान किया है।
'लिखित आश्वासन के बाद नहीं हुआ समाधान'
यूनियन नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों की मांगों पर समिति गठित कर एक महीने में समाधान निकालने का लिखित आश्वासन दिया था। लेकिन एक साल बीत जाने के बावजूद न तो समस्या का समाधान हुआ और न ही कर्मचारियों की मांगें पूरी की गईं। इसके उलट सरकार निजीकरण की ओर कदम बढ़ा रही है।
यूनियन की मुख्य मांगें
- कच्चे कर्मचारियों को रेगुलर किया जाए
- ठेकेदारी प्रथा को बंद किया जाए
- समान काम का समान वेतन दिया जाए
- निजी बसों की बजाय विभाग की बसें चलाई जाएं
- किलोमीटर स्कीम के टेंडर रद्द किए जाएं
- समय पर वेतन जारी किया जाए
60 प्रतिशत बसें ऑप्रेशनल- चेयरमैन
पीआरटीसी चेयरमैन रणजोध सिंह हडाणा ने दावा किया कि हड़ताल के बावजूद 60 प्रतिशत बसें संचालन में हैं। उन्होंने कहा कि केवल 40 प्रतिशत रूट प्रभावित हुए हैं और किसी भी रूट पर बस सेवा पूरी तरह से बाधित नहीं होने दी जाएगी।
रोजगार पर असर- गुरप्रीत सिंह
गुरप्रीत सिंह रोज़ाना पटियाला से संगरूर नौकरी पर जाते हैं। हड़ताल के कारण बसें बंद होने से उन्हें टैक्सी का सहारा लेना पड़ा। रोज़ाना 50 रुपये का किराया बस में देना पड़ता था, लेकिन टैक्सी से यह खर्च 500 रुपये तक पहुंच गया।
नहीं मिली बस, झेलनी पड़ी परेशानी- हरदेव कौर
हरदेव कौर का इलाज पटियाला के राजिंदरा अस्पताल में चल रहा है। हड़ताल वाले दिन वह समय पर अस्पताल नहीं पहुंच सकीं। परिवार ने मजबूरी में प्राइवेट गाड़ी बुक की, जिस पर करीब 1500 रुपये खर्च हुए। उनका कहना है कि गरीब मरीजों के लिए यह स्थिति बेहद कठिन है।
दैनिक यात्रियों के लिए मुश्किल- राजेश कुमार
राजेश कुमार चंडीगढ़ में नौकरी करते हैं और रोज़ाना राजपुरा से बस से आना-जाना करते हैं। हड़ताल के कारण उन्हें तीन दिन तक कार शेयरिंग करनी पड़ी, जिस पर प्रतिदिन 500 रुपये से अधिक खर्च हुआ। उनका कहना है कि हड़ताल लंबी खिंचने पर उनकी नौकरी पर भी असर पड़ सकता है।

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