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    टीबी अस्पताल की नई लैब में हो रहे अत्याधुनिक टेस्ट

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 16 Jun 2022 07:40 AM (IST)

    देश को 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के लिए जहां केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रहा है वहीं जिला सेहत विभाग भी इसके लिए अपना काम बाखूबी कर रहा है।

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    टीबी अस्पताल की नई लैब में हो रहे अत्याधुनिक टेस्ट

    सुरेश कामरा, पटियाला

    देश को 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के लिए जहां केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रहा है वहीं जिला सेहत विभाग भी इसके लिए अपना काम बाखूबी कर रहा है। इसी कड़ी में टीबी अस्पताल में लगी नई लैब में आजकल अत्याधुनिक टेस्ट हो रहे हैं। टेस्ट के लिए न केवल मरीज पंजाब से बल्कि हरियाणा से भी आ रहे हैं। यहां पर होने वाला हर टेस्ट फ्री है और प्रदेश के मेडिकल कालेज उनके पास टेस्ट के लिए बलगम को कोरियर के जरिए भी भेजते हैं जिसकी जांच करके उनको रिपोर्ट भेज दी जाती है।

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    जिला टीबी व नोडल आफिसर डा. जीएस नागरा बताते हैं कि टीबी की बीमारी इलाज योग्य है और इसके लिए गंभीरता की जरूरत है। इससे घबराने की जरूरत नहीं है। डाट्स प्रणाली के जरिए इसका इलाज हो सकता है। किसी को टीबी के लक्षण दिखाईं दें तो वे उसे गंभीरता से लेते हुए पहल के आधार पर अपना चेकअप करवाएं। अगर टीबी की शिकायत हो जाती है तो उसका उचित तरीके से इलाज करवाएं। दो हफ्ते से ज्यादा खांसी, भूख कम लगना, वजन का कम होना, बलगम में खून आना, सीने में दर्द टीबी की निशानियां हैं। टीबी अस्पताल में आजकल अत्याधुनिक मशीनें हैं जिसमें सीबीनाट-2 व 3, सीपीए 1 व 2 के अलावा कल्चर की मशीनें उपलब्ध हैं। यहां पर रूटीन के टेस्ट करने के साथ-साथ एडवांस स्टेज के मरीजों का भी टेस्ट किया जा रहा है। मरीजों के लिए गांव तक ही दवा पहुंचाने का काम कर रहा विभाग

    टीबी अस्पताल के मुखी डा. विशाल चोपड़ा के मुताबिक टीबी के मरीजों को उनके गांव तक ही दवा पहुंचाने के लिए सेहत विभाग प्रबंध कर रहा है। अगर कोई व्यक्ति टीबी अस्पताल अथवा अन्य किसी अस्पताल में आकर टीबी की जांच करवाता है और वो टीबी का मरीज पाया जाता है तो सेहत विभाग उसके गांव तक ही दवा पहुंचाने का कार्य कर रहा है। उक्त गांव की आशा वर्कर के जरिए उसके पास दवाई पहुंचा दी जाती है। पटियाला शहर के टीबी अस्पताल अथवा किसी सेहत केंद्र में मरीज के पाजिटिव आने पर उसका पता गांव के ही सेहत केंद्र में पहुंचा देते हैं। वहां से गांव की आशा वर्कर को संपर्क करके उसे दवा दी जाती है और मरीज उससे दवा प्राप्त करता है। ऐसा केवल मरीज के बाहर आने की परेशानी से बचने सहित आगे फैलाव को रोकने के मद्देनजर किया जा रहा है।