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    252 साल की हुई शाही शहर की अनमोल विरासत

    By Edited By:
    Updated: Fri, 12 Feb 2016 07:24 PM (IST)

    प्रदीप शाही, पटियाला शाही शहर पटियाला की 252 साल पुरानी अनमोल विरासत की सांस्कृतिक पहचान विश्व

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    प्रदीप शाही, पटियाला

    शाही शहर पटियाला की 252 साल पुरानी अनमोल विरासत की सांस्कृतिक पहचान विश्व भर में खास रही है। जिस स्थान पर पटियाला बसा है, उसकी पहचान ऋग्वेद में पस्थावंत के रुप में भी मानी गई है। वैदिक काल में इस स्थान को प्रस्थल के नाम से भी पहचान मिली। राजा आला सिंह के नाम से विख्यात आला की पंट्टी यानि कि पट्टीआला जो अब पटियाला है। पटियाला के किला मुबारक की स्थापना आज ही के दिन 12 फरवरी 1764 को बाबा आला सिंह ने की थी। राजा आला सिंह इस पटियाला रियायत के पहले और महाराजा यादविंदर सिंह इस के अंतिम शासक बने।

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    पटियाला शहर के मध्य में स्थित किला मुबारक, शीश महल, शाही समाधां और बारादरी की चकाचौंध आज धूमिल हो रही है। नानक शाही ईंटों, लाल और सफेद पत्थर से निर्मित 252 साल पुराने किले में किला अंदरुन, रनबास, जल्लू खाना, सरदखान, लस्सी खाना और दरबार हाल अंतिम सांसे गिन रहा है। किला मुबारक के कई हिस्से खस्ताहाल हो कर गिर चुके हैं।

    किला मुबारक में पहाड़ी और राजस्थानी शैली से सुसज्जित कलाकृतियों के रंग धूमिल हो रहे हैं। गौर हो पटियाला के संस्थापक बाबा आला सिंह के पितामह चौधरी फूल की मालवा क्षेत्र के सिद्धू जाट के रुप में पहचान थी। किला मुबारक में आज भी बाबा आला की ज्योति अनवरत जल रही है। इतना ही नहीं किला मुबारक में बाबा एक धूनी भी सुलगती रहती है। इसके लिए बकायदा एक सेवादार सेवा के लिए तैनात है।

    पटियाला के संस्थापक बाबा आला सिंह ने 1691 से लेकर 1765 तक पटियाला रियासत पर शासन किया। बाबा के तीनों पुत्र लाल सिंह, सरदूल और भूमन सिंह का बाबा आला के शासन काल में ही देहांत हो गया था। ऐसे में सरदूल सिंह के बेटे और बाबा आला सिंह के पौत्र अमर सिंह को राज्य की बागडोर मिली थी। राजा अमर सिंह ने अपने दादा की गद्दी को 1765 से लेकर 1782 तक संभाला। जब अमर सिंह गद्दी संभाली थी तो उस समय अमर सिंह मात्र 13 साल के थे। इसके बाद राजा साहिब सिंह ने 1782 से 1813 तक शासन किया। राजा साहिब सिंह को सबसे कम आयु मात्र सात साल में शासक बनने का मान हासिल है। महाराजा कर्म सिंह ने 1813 से 1845, महाराजा नरेंद्र सिंह ने 1845 से 1862, महाराजा महेंद्र सिंह ने 1862 से 1876, महाराजा यादविंदर सिंह ने 1876 से 1900, महाराजा भूपेंद्र सिंह ने 1900 से 1938 और सबसे आखिर में महाराजा यादविंदर सिंह ने 1938 से लेकर 1948 तक शाही रियासत पर शासन किया।

    -पटियाला शासकों संबंधी किदवंतियां-

    शाही शहर पटियाला संबंधी दो दंतकथा बेहद प्रचलित रही हैं। एक बार एक महात्मा ने प्रसन्न हो कर बाबा आला से मांगने के लिए कहा था। उस समय सारा राजा कार्य उर्दू में होता था। तो बाबा आला ने कहा कि हमारा राज 'अल्फ' से 'ये' (उर्दू लफ्ज) तक कायम रहे। ऐसे में बाबा आला सिंह पटियाला के पहले संस्थापक और अंतिम महाराजा यादविंदर सिंह थे। वहीं दूसरी दंत कथा अनुसार एक बार एक महात्मा ने राजा को अपनी पीठ नंगी करने के कहा। राजा ने पीठ नंगी कर दी। महात्मा ने कहा मेरे चीमटे की जितनी तुम मार सह गए, उतनी पीढ़ी यहां राज्य करेंगी। राजा चिमटे के आठ वार ही सहन कर सके। ऐसे में महाराजा यादविंदर सिंह पटियाला रियासत के आठवें शासक रहे हैं।

    -शाही शहर विरासत की नहीं ले रहा कोई सुध-

    शाही शहर की अनमोल विरासत 252 साल पुरानी है। बावजूद इसकी सरकार और पुरातत्व विभाग सुध नहीं ले रही है। पटियाला शहर के मध्य में स्थित किला मुबारक, शीश महल, शाही समाधां की चकाचौंध आज धूमिल हो रही है। शीशे की अनुपम नक्काशी से बनाया गया शीश महल भी आज केवल दिखावा मात्र हो कर रह गया है। पर्यटक केवल इन स्थानों की भव्यता को देख कर ही अतीत के आईने में झांक लेते हैं। शीश महल में मोटी तारों से झूलता पुल, अस्त्र शस्त्र गैलरी, जीव जंतू, झाड़ फानूस गैलरी ही पर्यटकों का आकर्षण बनती हैं। जब शीश महल में स्थापित तोप जर्जर हो कर टूट चुकी हैं। संगमरमर में राजस्थानी मुगल, वास्तु शैली में बनाई दो मंजिलों वाली शाही समाधां के निर्माण में भी नानक शाही ईंटों का ही प्रयोग हुआ था। शाही परिवार से संबंधित पूर्वजों की यहां पर समाधियां स्थापित है।