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    मौसम की मार से फीकी पड़ी लीची की ‘मिठास’, समय से पहले करनी पड़ी तुड़ाई, नहीं मिल रहे अच्छे दाम

    पठानकोट की लीची जो कभी अपनी मिठास और सुगंध के लिए जानी जाती थी इस बार मौसम की मार से प्रभावित है। वर्षा की कमी और बढ़ते तापमान के कारण उत्पादन लगभग 50% तक गिर गया है जिससे बागवानों को भारी नुकसान हो रहा है। लीची की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है और समय से पहले तुड़ाई करनी पड़ी।

    By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Sun, 15 Jun 2025 09:40 PM (IST)
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    मौसम की मार से फीकी पड़ी लीची की ‘मिठास’। फाइल फोटो

    जितेंद्र शर्मा, पठानकोट। कभी मिठास और सुगंध से पहचान बनाने वाली पठानकोट की लीची इस बार मौसम की बेरुखी से बुरी तरह प्रभावित हुई है। वर्षा की कमी और लगातार बढ़ते तापमान ने बागवानों के चेहरों की चमक छीन ली है।

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    इस बार उत्पादन करीब 50 प्रतिशत तक घट गया है, वहीं क्वालिटी पर भी असर पड़ा है। मजबूरन समय से पहले लीची की तुड़ाई करनी पड़ी, लेकिन बाजार में अच्छे दाम नहीं मिल रहे।

    ऐसे में बागवानों को इस सीजन में भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।कभी पठानकोट की लीची की महक दूर-दूर तक जाती थी। देश ही नहीं, विदेशों में भी इसके स्वाद के चर्चे थे।

    बागों की हरियाली, पहाड़ों से आने वाली ठंडी हवाएं और समय पर होने वाली वर्षा, यह सब मिलकर इस इलाके को लीची की खेती के लिए बेहतरीन बनाते थे, लेकिन अब कथित विकास की दौड़ ने शहर को हरियाली से महरूम कर दिया है। नतीजतन, पठानकोट का तापमान अब 45 डिग्री तक पहुंच रहा है, जो लीची के लिए बेहद नुकसानदायक है।

    प्रगतिशील बागवान कार्तिक वडैहरा बताते हैं कि इस साल फसल का झाड़ आधे से भी कम रहा। तापमान 45 डिग्री पहुंच गया और वर्षा भी नहीं हुई। लीची समय से पहले रंग बदलने लगी, उसका स्वाद भी बिगड़ गया। यही कारण है कि जो तुड़ाई जून के मध्य में होती थी, इस बार जून शुरू होते ही करनी पड़ी।

    उन्होंने बताया कि लीची को 35 डिग्री के आसपास का तापमान और पर्याप्त पानी चाहिए होता है, लेकिन इस बार दोनों ही नहीं मिल सके। भूमिगत जलस्तर भी गिरा है और ऊपर से वर्ष न होने से फलों में रस नहीं आ पाया।

    फसल नहीं, रोजगार भी मंदा होगा

    कार्तिक बताते हैं कि आज लीची का व्यापार एक उद्योग की शक्ल ले चुका है। इसकी तुड़ाई, पैकिंग, ट्रांसपोर्टेशन से सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता है। क्वालिटी खराब हुई तो सिर्फ किसान या बागवान ही नहीं, मजदूर, ट्रांसपोर्टर, व्यापारियों तक को नुकसान होगा।

    उन्होंने कहा कि देहरादून जैसे इलाकों में मौसम अनुकूल है, इसलिए वहां की लीची शानदार स्थिति में है। पठानकोट की लीची को बचाने के लिए अब सरकारी दखल जरूरी हो गया है।

    विशेषज्ञों की टीम भेजे सरकार

    कार्तिक ने सरकार से मांग कि हार्टिकल्चर और क्लाइमेट साइंट से जुड़े विशेषज्ञों की टीम पठानकोट भेजी जाए। वहां अध्ययन किया जाए कि कैसे इस मौसमीय असंतुलन के बीच लीची की फसल को बचाया जा सकता है।

    सरकार चाहे तो खाली पड़ी पंचायत भूमि पर लीची के बाग लगवाकर उत्पादन बढ़ा सकती है। इससे किसान भी पारंपरिक फसलों की अनिश्चितता से बाहर निकलेंगे।