पाकिस्तान को नहीं मिलेगा इन तीन नदियों का पानी, रोकने में लग जाएंगे 20 साल? जानिए क्या कहते हैं एक्स्पर्ट्स
भारत सरकार ने पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल समझौता रद्द कर दिया है। इस समझौते के तहत भारत को रावी ब्यास और सतलुज नदियों का पानी मिला था जबकि पाकिस्तान को सिंधु झेलम और चिनाब नदियों का पानी दिया गया था। अब भारत सरकार ने यह समझौता रद्द कर दिया है तो पाकिस्तान को इन तीन नदियों का पानी नहीं मिलेगा।

संवाद सहयोगी, माधोपुर (पठानकोट)। पहलगाम हमले के बाद केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए सिंधु जल समझौता रद कर दिया है, जिससे पाकिस्तान में खलबली मच गई है। 1960 में हुए इस समझौते में भारत को तीन नदियों रावी, ब्यास व सतलुज का पानी मिला था, जबकि पाकिस्तान को तीन नदियों सिंधु, झेलम व चिनाब का पानी दिया गया था।
अब जब केंद्र सरकार ने यह जल समझौता रद कर दिया है तो इसका असर यह होगा कि पाकिस्तान को अब इन तीन नदियों का पानी नहीं मिलेगा। बड़ा प्रश्न यह है कि भारत अब कितने वर्षों में पाकिस्तान को जाने वाला पानी पूरी तरह रोक पाएगा? विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रक्रिया को पूरी तरह सफलतापूर्वक लागू करने में 18 से 20 वर्ष तक का समय लग सकता है।
माधोपुर से बहने वाली अकेली रावी नदी की बात करें तो समझौते के बाद रावी का पानी जब भारत को मिला था तो यह तय हुआ था कि इसका पूरा पानी भारत में ही उपयोग होगा परंतु 65 वर्षों में पंजाब व केंद्र सरकारें रावी का पानी पाकिस्तान जाने से पूरी तरह रोक नहीं पाईं।
विवशता में पाकिस्तान को पानी छोड़ना पड़ रहा
भारत ने रावी नदी पर पहले रणजीत सागर डैम बनाया और अब शाहपुरकंडी डैम का निर्माण कार्य जारी है। शाहपुरकंडी डैम से एक नई नहर भी निकाली जा रही है। आशा है कि इसके पूरा होने के बाद माधोपुर से पाकिस्तान की ओर पानी का बहाव बंद हो जाएगा।
माधोपुर में रावी दरिया से हर वर्ष लाखों क्यूसिक पानी पाकिस्तान की ओर छोड़ना पड़ता है। इसका कारण यह है कि माधोपुर से निकली नहरों में इतनी क्षमता नहीं है कि रणजीत सागर डैम से छोड़े गए पूरे पानी को समाहित कर सकें।
पंजाब के सिंचाई विभाग को जितना पानी नहरों में चाहिए होता है, उतना वह ले लेता है और बाकी पानी विवशता में पाकिस्तान की ओर छोड़ना पड़ता है। अब विभाग व सरकार के अधिकारी व मंत्री इस बात को लेकर गंभीर हैं कि शाहपुरकंडी डैम और अन्य संबंधित परियोजनाओं का कार्य शीघ्र पूरा किया जाए ताकि भारत का बहुमूल्य पानी पाकिस्तान न जाने पाए। कार्य तेजी से प्रगति पर है।
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