थैलेसीमिया की रोकथाम के लिए विवाह से पहले सेहत कुंडली मिलाना अहम उपाय : सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डा. दविदर ढांडा की अगुआाई में जिले में थैलेसीमिया रोग के प्रति आम लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए साप्ताहिक मुहिम जोरों पर चल रही है।

जागरण संवाददाता, नवांशहर : सिविल सर्जन डा. दविदर ढांडा की अगुआाई में जिले में थैलेसीमिया रोग के प्रति आम लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए साप्ताहिक मुहिम जोरों पर चल रही है। इसका विषय जागरूक रहो, साझा करो और संभाल करो है। थैलेसीमिया एक ऐसी जटिल बीमारी है जो माता-पिता से बच्चों में फैलती है। इसलिए इस मुहिम में आम लोग खासकर वैवाहिक लड़के -लड़कियों को विवाह से पहले खून का टेस्ट करवा कर अपने थैलेसीमिया के रुतबे के बारे में पता लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों को विवाह से पहले राशियां या कुडंली मिलाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है थैलेसीमिया की रोकथाम के लिए सेहत कुंडली मिलाई जाए। यानी अपना ब्लड टेस्ट करवाया जाए।
सिविल सर्जन डा. दविदर ढांडा ने मंगलवार को सिविल सर्जन दफ्तर में आयोजित एक जागरूकता बैठक में हैल्थ इंस्पेक्टरों और हैल्थ वर्करों को हिदायतें जारी करते थैलेसीमिया को समझने के महत्वपूर्ण पहलुओं पर रोशनी डालते हुए बीमारी से बचाव, कारण, लक्षण और इलाज प्रबंधन के बारे जानकारी दी।
सिविल सर्जन डा. दविदर ढांडा ने बताया कि देश में थैलेसीमिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हर साल 10 हजार से अधिक बाल मरीजों की पहचान होती है। थैलेसीमिया की रोकथाम के लिए विवाह से पहले सेहत कुंडली मिलाना एक अहम उपाय है। सिविल सर्जन के मुताबिक वैवाहिक योग्य लड़के -लड़कियों को विवाह से पहले गोत्र या कुंडली वाला सांप मिलाने की अपेक्षा अपना एचबीए -2 करवा कर सेहत कुंडली मिलाने को और ज्यादा प्राथमिकता देनी चाहिए।
थैलेसीमिया एक जेनेटिक बीमारी है, जिसमें पीड़ित के शरीर में लाल खून के सैलों का उत्पादन बंद हो जाता है और शरीर में खून की कमी हो जाती है। इस बीमारी में पीड़ित को हर 15 -20 दिनों बाद खून चढ़ाना पड़ता है। इस बीमारी के बढ़ने का मुख्य कारण लोगों में जागरूकता की कमी है।
भारत में 4 करोड़ से अधिक महिलाएं - पुरुष थैलेसीमिक मायनर हैं। जब दो थैलेसीमिक मायनरों का विवाह होता है तो उनकी औलाद के थैलेसीमिक मेजर होने के आसार होते हैं। उन्होंने बताया कि यदि माता या पिता में किसी एक या दोनों में थैलेसीमिया के लक्षण हैं तो यह रोग बच्चो में भी जा सकता है। इस लिए बेहतर होता है कि बच्चा प्लान करने या विवाह से पहले एचबीए -2 टैस्ट करवा लिया जाए। यदि माता -पिता दोनों में से किसी एक को यह रोग है और माइल्ड है तो आम तौर पर बच्चों में यह रोग ट्रांसफर नहीं होता। यदि हो भी जाता है तो बच्चा अपना जीवन लगभग आम तरीके के साथ जीता है। कई बार तो उसे सारी उम्र पता ही नहीं लगता कि उस के शरीर में कोई दिक्कत भी है। डा. ढांडा ने बताया कि थैलेसीमिया रोग के प्रमुख लक्षणों में पीडित व्यक्ति के वृद्धि और विकास में देरी, ज्यादा कमजोरी कमजोरी और थकावट महसूस करना, चेहरे की बनावट में बदलाव होना, चमड़ी का रंग पीला पड़ना, पेशाब गंभीर आना और जिगर और तिल्ली के आकार बढ़ना आदि शामिल हैं। इस रोग की जांच सरकारी मेडिकल कालेज अमृतसर, पटियाला, फरीदकोट, एम्ज बठिडा, सरकारी अस्पताल लुधियाना, जालंधर, होशियारपुर और गुरदासपुर में उपलब्ध है। इस मौके पर जिला परिवार भलाई अफसर डा राकेश कुमार और जिला ऐपीडीमोलोजिस्ट डा. जगदीप सिंह, ब्लाक एक्स्टेंसन ऐजुकेटर विकास विर्दी, हैल्थ इंस्पेक्टर राजीव कुमार सहित सेहत विभाग के कई अधिकारी और कर्मचारी मौजूद थे।
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