गाय की महत्ता गंगा व गायत्री से बढ़कर : पं. पवन कौशिक
मोगा भारतीय संस्कृति में गाय की महत्ता गंगा और गायत्री से भी बढ़कर है। यह विचार गोपाल गोशाला के पुजारी पंडित पवन कौशिक ने गोमाता की महत्ता बताते हुए क ...और पढ़ें

तरलोक नरूला, मोगा
भारतीय संस्कृति में गाय की महत्ता गंगा और गायत्री से भी बढ़कर है। यह विचार गोपाल गोशाला के पुजारी पंडित पवन कौशिक ने गोमाता की महत्ता बताते हुए कही। उन्होंने कहा कि गायत्री जप की साधना में कठिन परिश्रम हो सकता है, गंगा तीर्थ स्नान भी सब को मिल पाना संभव नहीं है। मगर, गोसेवा, गोदान आदि कोई भी साधारण मनुष्य कर सकता है। जिसके लिए परिश्रम नहीं करना पड़ता है। मगर, दुख की बात है कि मनुष्य गाय को सामान्य पशु मानकर उसकी उपेक्षा कर रहा है। हम इसका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वाणी गायत्री है, प्राण गंगा है, तो मन गाय है। मन की शुद्धि के बिना कोई भी जप, तप, यज्ञ, तीर्थ या धार्मिक कार्य सफल नहीं हो पाता है। मनुष्य की संपूर्ण क्रियाओं का मूल कारण मन ही है और गाय की पूजा मन की शुद्धि का मूल है। वेद शास्त्रों व ग्रंथों में भी सबसे ज्यादा गाय का ही वर्णन मिलता है। गाय से प्राप्त, दूध, दही, घी, गोमूत्र,गोरस आदि सभी पदार्थ जीवन के लिए परम उपयोगी हैं। समस्त रोगों को दूर करने वाली दुर्लभ वस्तु गाय से प्राप्त होती है। गोपूजा से हमें संस्कार सहयोग प्राप्त होते है।
उन्होंने बताया कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास कहा गया है। इसीलिए गोसेवा फलदाई मानी गई है। मगर दुख की बात है कि पहले घर-घर में पूजी जाने वाली गोमाता आज मजबूर, लाचार, असहाय व अनाथ हो चुकी है। ऐसे में आवश्यकता है कि सभी लोग गोसवा के लिए आगे आएं। साथ ही गोवध को पूरी तरह से बंद करवाएं।
उन्होंने कहा कि रविवार को मनाए जाने वाले गोपाष्टमी पर्व पर सभी नागरिक, सामाजिक संगठन बढ़-चढ़ कर भाग लें, ताकि जन मानस में जाग्रति व गो के प्रति सम्मान की भावना बने। साथ ही गोमाता घर-घर की शोभा बने।

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