भव्य यज्ञशाला में बने पांच हवन कुंड में डाली आहुतियां
। श्री सनातन धर्म हरि मंदिर में श्री दुर्गा शतचंडी महायज्ञ एवं श्रीमद्देवी भागवत कथा के दूसरे दिन भक्तों ने हाजिरी लगवाकर पूजा-अर्चना की।

संवाद सहयोगी, मोगा
श्री सनातन धर्म हरि मंदिर में श्री दुर्गा शतचंडी महायज्ञ एवं श्रीमद्देवी भागवत कथा के दूसरे दिन भक्तों ने हाजिरी लगवाकर पूजा-अर्चना की। सर्वप्रथम सभी सदस्यों व यजमानों ने गणपति पूजन किया।
इसके उपरांत भव्य यज्ञशाला में बने पांच हवन कुंड में यजमानों ने घी सामग्री से आहुतियां डाल मंगल कामना की। विद्वान ब्राह्मणों ने मंत्रों के उच्चारण के बीच यज्ञ की विधि को पूरा करवाया। यज्ञ की आरती के उपरांत परिक्रमा की गई। कथा वाचक पवन गौड़ ने बताया कि दुर्गा जी को प्रसन्न करने के लिए जिस यज्ञ विधि को पूर्ण किया जाता है उसे चंडी यज्ञ बोला जाता है। शतचंडी यज्ञ को सनातन धर्म में बेहद शक्तिशाली वर्णित किया गया है। इस यज्ञ से बिगड़े हुए ग्रहों की स्थिति को सही किया जा सकता है और सौभाग्य इस विधि के बाद आपका साथ देने लगता है। इस यज्ञ के बाद मनुष्य खुद को एक आनंदित वातावरण में महसूस कर सकता है। वेदों में इसकी महिमा के बारे में यहां तक बोला है कि शतचंडी यज्ञ के बाद आपके दुश्मन आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। इस यज्ञ को गणेशजी, भगवान शिव, नव ग्रह, और नव दुर्गा (देवी) को समर्पित करने से मनुष्य जीवन धन्य होता है। महाभारत की कथा के माध्यम से पंडित पवन गौड़ ने बताया कि महाभारत में भीष्म पितामह ने पिता के लिए अपने सुखों का त्याग करके प्रतिज्ञा की कि वह जीवन भर ब्रह्मचारी बनकर रहेंगे और हस्तिनापुर का दास बनकर जीवन व्यतीत करेंगे और इसकी रक्षा करेंगे। उन्होंने कहा कि मनुष्य को सदा बड़ों का आदर सम्मान करना चाहिए और उनके वचनों का पालन करना चाहिए।
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