पितरों के निमित पूर्वजों की पुण्यतिथि पर कराएं ब्रह्माभोज
मोगा हिदू धर्म में कई तरह की परंपराओं और रीति-रिवाजों का अनुसरण किया जाता है। वैदिक परंपरा में अनुष्ठान पूजा पद्धति धार्मिक क्रिया-क्लाप और व्रत-त्योहार जैसे कई समागम किए जाते हैं। सनातन धर्म में किसी जातक के जन्म से पहले यानी गर्भ धारण और मृत्यु के बाद भी कई तरह के संस्कार और कर्मकांड किए जाते हैं। इन्हीं में से श्राद्ध कर्म और पितृ पक्ष एक प्रमुख तिथि और संस्कार है। पितृ पक्ष हर वर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक माना जाता है। इसमें 16 दिन पितरों को समर्पित होते हैं।
तरलोक नरूला, मोगा
हिदू धर्म में कई तरह की परंपराओं और रीति-रिवाजों का अनुसरण किया जाता है। वैदिक परंपरा में अनुष्ठान, पूजा पद्धति, धार्मिक क्रिया-क्लाप और व्रत-त्योहार जैसे कई समागम किए जाते हैं। सनातन धर्म में किसी जातक के जन्म से पहले यानी गर्भ धारण और मृत्यु के बाद भी कई तरह के संस्कार और कर्मकांड किए जाते हैं। इन्हीं में से श्राद्ध कर्म और पितृ पक्ष एक प्रमुख तिथि और संस्कार है। पितृ पक्ष हर वर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक माना जाता है। इसमें 16 दिन पितरों को समर्पित होते हैं।
वैसे तो हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। मगर, पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करना बहुत ही अच्छा और शुभ फलदायक होता है। मान्यता है पितृ पक्ष में पितर देव स्वर्ग लोक से धरती पर अपने-अपने परिजनों से मिलने के लिए आते हैं। श्राद्ध में पितरों के निमित ब्राह्माणों को श्रद्धापूर्वक घर बुलाकर ब्रह्माभोज खिलाया जाता है। मगर, इस बार कोरोना महामारी के कारण ऐसा होना संभव नहीं लग रहा है। कोरोना काल के चलते सरकारी आदेश हैं कि बिना जरूरत से घर से बाहर न निकलें। वहीं ऐसे में ब्राह्माणों को घर पर बुलाना भी संभव नहीं हो पाएगा। इस बारे में ब्राह्माणों का कहना है कि श्राद्ध के दिन ब्राह्माण को घर बुलाकर चाहे भोजन न करवाएं, परंतु पितरो के निमित खाना मंदिर में ब्राह्माण के घर देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।
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गाय को भी खिला सकते हैं भोजन
श्री सनातन धर्म हरि मंदिर के पुजारी पंडित पवन गौड़ ने बताया कि कोविड 19 से बचते हुए भी हमें श्राद्ध की विधि को पूर्ण करना है। इस महामारी के कारण यदि ब्राह्माण को घर में बुलाने में संकोच हो, तो पितरों के निमित श्राद्ध के दिन भोजन बनाएं और ब्राह्माण के घर पंहुचा दें। अगर ऐसा संभव न हो सके, तो गाय को खिला दें और दक्षिणा के पैसों का चारा डाल दें। ऐसा पुराण में वर्णन है। इससे हम महामारी से खुद भी बच सकते हैं और दूसरों का भी बचाव कर सकते है। श्राद्ध 2 सितंबर से आरंभ होकर 17 सितंबर तक चलेंगे।
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ब्राह्माण के घर पितरों के निमित भोजन दें
शिवाला मंदिर के पुजारी अक्षय शर्मा ने बताया कि श्राद्ध के दिनों में घरो में अक्सर परिवार से जुड़े ब्राह्माण या पुरोहित को ही बुलाया जाता है, क्योकि वो भी एक तरह से उस घर का सदस्य ही होता है।अगर वो किसी कारणवश न आ सके, तो उसके घर पर पितरो के निमित भोजन दें, ताकि उसका परिवार खा सके। श्राद्ध करते समय अपने पितरों से अपने परिवार की सुख-शांति की कामना करें।
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दूध, फल भी दे सकते हैं मंदिर में
प्राचीन सनातन धर्म शिव मंदिर के पुजारी पवन गौतम का कहना है कि पूर्वजों की पुण्यतिथि पर श्राद्ध करें। इस बार कोरोना महामारी के कारण संक्षेप में श्राद्ध की सारी विधि को पूरा करें। यदि पितरों के श्राद्ध के दिन घर में भोजन बनाने में असमर्थ हों या कोई ब्राह्माण उपलब्ध न हो, तो साधरण रूप में दूध, फल व मिठाई पितरों के निमित किसी भी मंदिर में देकर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करें।
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श्रद्धा का नाम ही है श्राद्ध
श्री चितपूर्णी दुर्गा माता मंदिर के पुजारी कृष्ण गौड़ ने बताया कि श्रद्धा का नाम ही श्राद्ध है। श्राद्ध मे श्रद्धा अनुसार अपने पितरों का पूजन कर जल व अन्न आदि का दान करें। जिनके पितर अपने पुत्र-पौत्रों से तृप्त हो जाते हैं, उनके घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती है। पितर वही है, जिनको हमारे बुजुर्ग पूजते आ रहे हैं। पितृगण जल आदि को ग्रहण करके बैकुंठ लोक में शांतिपूर्वक रहते हैं। वहीं बैठे अपने कुल का ध्यान रखते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
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