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    27 एमएलडी पानी ट्रीट कर सेम नाले में बहा रहा है नगर निगम

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 01 Apr 2021 11:24 PM (IST)

    मोगा नगर निगम 27 एमएलडी (मिलियन लीटर पर डे) पानी को हर दिन सेम नाले में बहा देता है। बरसात के दिनों में हर दिन शहर से पानी जाया की मात्रा इससे कई गुना ज्यादा होती है।

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    27 एमएलडी पानी ट्रीट कर सेम नाले में बहा रहा है नगर निगम

    सत्येन ओझा.मोगा

    मोगा नगर निगम 27 एमएलडी (मिलियन लीटर पर डे) पानी को हर दिन सेम नाले में बहा देता है। बरसात के दिनों में हर दिन शहर से पानी जाया की मात्रा इससे कई गुना ज्यादा होती है। यही पानी ट्रीट होकर अगर ट्रीटमेंट प्लांट के निकटवर्ती क्षेत्र में खेती के काम आ जाए तो कम से कम 200 एकड़ क्षेत्र में खेतों की सिचाई की जा सकती है, जिससे ट्यूबवेलों पर पानी की निर्भरता कम हो सकती है।

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    बारिश के पानी पानी व शहर से निकलने वाले पानी को ट्रीट कर खेतों में सिचाई के लिए पहुंचाने की राह साल 1969 में नगर कौंसिल के चेयरमैन बने वैद्य तीरथ राम ने दिखाई थी। उन्होंने पानी को सिचाई में उपयोग करना ही नहीं सिखाया था, बल्कि इसी पानी से नगर कौंसिल का खजाना भी भरा था। ये पानी ठेकेदार को दिया जाता था, इसके बदले निगम इसका भुगतान लेता था, लेकिन वर्तमान में नगर कौंसिल से नगर निगम के रूप में लोकल बाडी का विकास हुआ लेकिन पानी को सहेज कर भूजल बचाने की राह ही भूल गए। खेतों तक पाइप लाइन नहीं बिछाई

    नगर निगम ने बुक्कनवाल रोड पर 27 एमएलडी प्रतिदिन पानी ट्रीट करने की क्षमता का ट्रीटमेंट प्लांट इस उद्देश्य के साथ लगवाया था कि ये पानी निगम आसपास के क्षेत्र में किसानों को सिचाई के लिए उपलब्ध कराएगा। इसके एवज में किसानों से पानी का मामूली शुल्क लिया जाएगा जिससे निगम की अतिरिक्त आय भी बढ़ेगी। साथ ही किसानों की ट्यूबवेल पर निर्भरता खत्म होगी तो भूमिगत जलस्तर में सुधार आएगा, लेकिन ट्रीटमेंट प्लांट लगने के आठ साल बाद भी खेतों में नगर निगम ने पाइप लाइन नहीं बिछाई, ट्रीट पानी को निकट ही सेम नाले में छोड़ दिया जाता है, जिसका उपयोग खेती में नहीं हो पा रहा है।

    ये था वैद्य तीरथ राम का फार्मूला

    नगर कौंसिल के अध्यक्ष रह चुके वैद्य तीरथ राम के समय में शहर का मास्टर प्लान बना था। उसी मास्टर प्लान के तहत शहर में बरसाती नाला बनाया गया था, जो बुक्कनवाला रोड तक पहुंचता था। ये पानी उस समय नगर निगम के ठेकेदार राजेन्द्र सिंह खरीदते थे। बाद में इस पानी को वे खेतों में सिचाई के लिए किसानों को उपलब्ध कराते थे। नाले का पानी भी वहीं जाता था, जिसे उस समय के संसाधनों से ट्रीट करके सिचाई के लिए दिया जाता था। बरसात की बूंद-बूंद भी बरसाती नाले के माध्यम से वहीं पर पहुंचती थी। किसानों को सिचाई के लिए तब आसपास के क्षेत्रों में भूमिगत जल पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था। 20 साल में ये प्रगति की

    20 साल के इस लंबे कालखंड में शहरी क्षेत्र में बरसाती नालों पर कब्जा कर लोगों ने बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर लीं। बरसाती नाले के अवशेष ही अब न्यू टाउन, प्रताप रोड आदि कुछ स्थानों पर शेष दिखाई देते हैं। बरसाती नाला तो दोबारा नहीं बन सका। हालांकि 1970 के बाद पिछले नगर निगम के कार्यकाल में फिर से शहर का मास्टर प्लान तैयार हुआ लेकिन बरसाती नाले को उसमें भी जगह नहीं मिली। न ही जो पानी हर रोज ट्रीट होता है, उसका उपयोग सिचाई के लिए हो इसके प्रबंध का कोई जिक्र किया गया है। यही वजह है कि भूमिगत जल स्तर हर साल नीचे जा रहा है।

    --- एक्सपर्ट व्यू

    भूजल स्तर को ऊपर उठाने में मदद मिल सकती है: डा. जसवंत

    कृषि विकास अधिकारी डा.जसवंत सिंह के अनुसार 27 एमएलडी पानी का सिचाई में प्रयोग करने से कम से कम शहर में नीचे जा रहे जल स्तर को रोका जा सकता है। ये विधि जल स्तर ऊपर उठाने में भी मददगार साबित हो सकता है।

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    सत्येन ओझा

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