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Fathers Day Celebration: अभिनेता Sonu Sood बोले- पिता से मिले संबल के दम पर कमाया बॉलीवुड में नाम

मोगा के रहने वाले अभिनेता सोनू सूद कोरोना संकट में फंसे श्रमिकों के बड़ मददगार बनकर उभरे हैं। वह कहते हैं- मैं आज जो कुछ भी हूं पिता से मिले संस्कारों व सीख की बदौलत ही हूं।

By Edited By: Published: Sun, 21 Jun 2020 12:22 AM (IST)Updated: Sun, 21 Jun 2020 09:33 AM (IST)
Fathers Day Celebration: अभिनेता Sonu Sood बोले- पिता से मिले संबल के दम पर कमाया बॉलीवुड में नाम
Fathers Day Celebration: अभिनेता Sonu Sood बोले- पिता से मिले संबल के दम पर कमाया बॉलीवुड में नाम

मोगा [सत्येन ओझा]।  'कांटों का काम सिर्फ चुभना होता तो फूलों में पांखुरी नहीं होती, कान्हा यदि छलिया होता तो राधा के अधरों पर बांसुरी नहीं होती।' ओजस्वी गीतकार स्व. पवन चौहान की ये पंक्तियां फिल्म अभिनेता और कोरोना दौर में प्रवासी मजदूरों के बड़े मददगार सोनू सूद के जीवन पर खरी उतरती है। सोनू कहते हैं, 'मां जितनी सहज व सरल थीं, पिता उतने ही सख्त थे। मगर, उन्हीं से मिले संबल के बल वह मायानगरी मुंबई की सीढि़यां चढ़ सके। आज जो कुछ भी हैं, पिता से मिले संस्कारों व सीख की बदौलत ही हैं। वे कलाकर बाद में हैं, इंसान पहले। यही पिता ने सीख दी थी।'

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अकेले सोनू सूद ही नहीं बल्कि राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित साहित्यकार सत्यप्रकाश उप्पल और शतरंज को पहली बार जूनियर एशियन चैंपियनशिप में भारत को छह में से पांच स्वर्ण पदक दिलाने वाले अंतरराष्ट्रीय शतरंज कोच विनोद शर्मा भी अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता से मिली सीख को देते हैं। पितृ दिवस (International Fathers Day) पर उन्होंने पिता से जुड़ी यादें कुछ इस तरह साझा की।

फिल्म अभिनेता सोनू सूद मानते हैं कि उनकी मां प्रो. सरोज सूद ने प्रेरणा दी तो पिता शक्ति सागर सूद ने संबल दिया। मुंबई में जब अपने सपनों को रंग भरने के लिए दूसरे कई नौजवानों की तरह लोकल ट्रेन में धक्के खाते हुए सफर कर रहे थे, तो उन दिनों में पिता की कही गई बातें ही प्रेरित करती थीं। पिता ने हमेशा कहा कि विजन स्पष्ट हो, कड़ी मेहनत करने का जज्बा हो तो हर मंजिल कदमों में होती है। सोनू ने कहा कि बिना किसी गॉडफादर के मुंबई में अपने लिए जगह बना पाया, तो इसका श्रेय मैं अपने पिता शक्ति सागर सूद को ही दूंगा।

पिता से मिले संस्कार ही मुझमें बोलते हैंः सत्यप्रकाश उप्पल

प्रख्यात साहित्यकार सत्यप्रकाश उप्पल अपने पिता उर्दू अदब की प्रमुख शख्सीयत रहे मास्टर हरबंस लाल भूषण की याद करते हुए कहते हैं कि पिता के दिए संस्कार आज भी उनके अंदर जिंदा हैं। पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं पर उनके विचार हमेशा साथ होने का अहसास करते हैं। पंजाब में जब आतंकवाद का दौर चरम पर था, उस दौर में लिखी पुस्तक 'लहू का एक मौसम' के लिए राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित हो चुके सत्यप्रकाश उप्पल कहते हैं कि पिता आदर्श अध्यापक ही नहीं थे, उनके खुद के जीवन के सुधारक भी थे। पिता से मिले संस्कारों के चलते ही वह आर्य समाज से जुड़े। चारों वेदों को पढ़ा, उनका मर्म समझा और हाल ही में चारों वेदों का यज्ञ महापारायण किया।

साहित्यकार और लेखक सत्य प्रकाश उप्पल का कहना है कि पिता आज भी उनके विचारों में जिंदा है।

पिता मास्टर हरबंस लाल भूषण ने उन्हें हमेशा अच्छी शिक्षा व संस्कार ही नहीं दिए बल्कि एक अच्छा इंसान बनने के लिए भी प्रेरित करते रहे। इस सोच के साथ उन्होंने अपनी चर्चित कविता 'मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा मेरा पिता' भी लिखी। आतंकवाद के दौर में जब कोई कुछ बोलने का साहस नहीं जुटा पाता था, उस दौर में आतंकवाद पर खुलकर लिखने का साहस पिता से ही मिला था। आज में जो कुछ भी हूं, अपने पिता के दिए संस्कारों व प्रेरणा के कारण ही हूं।

पिता से सीखा, दुनिया में डंका बजायाः विनोद शर्मा

साल 2006 में जूनियर एशियन शतरंज चैंपियनशिप में तेहरान में छह में से पांच गोल्ड मेडल भारत को दिलाने वाले अंतरराष्ट्रीय शतरंज कोच विनोद शर्मा की सफलता में पिता पं. संतराम शास्त्री का बहुत महत्व है। विनोद शर्मा कहते हैं कि आज वह जो कुछ भी हैं पिता की बदौलत ही हैं। शतरंज भी पिता से ही सीखी थी। संस्कृत के प्रकांड विद्वान पिता पं. संतलाल शास्त्री ने चारों वेदों की प्रमुख ऋचाओं को सरल संस्कृति भाषा में अनुवाद करने के साथ ही उनकी हिंदी व्याख्या कर वेदों को आम जन तक पहुंचाने का काम किया था। पिता से बचपन में संस्कृत के मंत्र सीखे थे। जो आज भी उनकी जिंदगी का हिस्सा बने हुए हैं।

कोच विनोद शर्मा के पिता शतरंज खेलते थे। उन्हीं प्रेरणा लेकर वह आज अंतरराष्ट्रीय शतरंज कोच बने हैं।

अध्यापक पिता को जब भी मौका मिलता था, तो अपने साथियों के साथ देसी शतरंज खेलते थे। पिता के साथ बैठकर वह उन्हें शतरंज खेलते हुए देखते थे। बस पिता की प्रेरणा से ही उन्होंने शतरंज को अपने जीवन में अपनाया। पहले खुद खिलाड़ी के रूप में स्कूल ओलंपियाड में शतरंज को शामिल कराने के लिए काफी संघर्ष किया। बाद में कोच के रूप में उन्हें मौका मिला, तो दो अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भारत को वो सफलता दिलाई जो उससे पहले कभी भारत को नहीं मिली थी, जिसमें तेहरान की यादों को वह कभी नहीं भूल सकते। ये सब पिता से मिले संस्कारों व प्रेरणा से ही संभव हो सका।

 

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