प्रकृति की अवतार हैं मां पार्वती : स्वामी विवेकानंद महाराज
। स्वामी विवेकानंद जी महाराज ने शिव-पार्वती की कथा व पार्वती के अन्नपूर्णा बनने की कथा के आध्यात्मिक व प्रकृति तथा मानव जीवन से संबंध के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया।

जागरण संवाददाता.मोगा
गीता भवन में चल रहे सर्वधर्म समभाव सम्मेलन व श्री शिव पुराण कथा के अंतिम दिन हरिद्वार से पहुंचे स्वामी विवेकानंद जी महाराज ने शिव-पार्वती की कथा व पार्वती के अन्नपूर्णा बनने की कथा के आध्यात्मिक व प्रकृति तथा मानव जीवन से संबंध के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया। महादेव ने पहले सती से किया था विवाह
स्वामी विवेदानंद जी महाराज ने कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने सबसे पहले सती से विवाह किया था। भगवान शिव का यह विवाह बड़ी जटिल परिस्थितियों में हुआ था। सती के पिता दक्ष भगवान शिव से अपने पुत्री का विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन ब्रह्मा जी के कहने पर यह विवाह संपन्न हो गया। एक दिन राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान कर दिया जिससे नाराज होकर माता सती ने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया। इस घटना के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए। उधर माता सती ने हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। बाद में तारकासुर नामक राक्षक के मारने के लिए देवताओं की विनती पर भगवान शिव पार्वती जी से विवाह करने के लिए राजी हुए।
कैलाश को त्याग दिया था
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि जब भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ और वे पहली बार कैलाश आयीं तो उन्हें पता चला कि सभी शिव गण (कैलाश में रहने वाले भगवान शिव के भक्त) उनके जीवन जीने और उनके आनंद में रहने के आदी थे। किसी को अपना ध्यान नहीं था। देवी पार्वती ने उन सबके लिए रसोई स्थापित की। भोजन बनाने लगीं तो सभी गणों व शिव ने कहा उन्हें भोजन की जरूरत नहीं वे तो कच्चे कंद, मूल फल खाते हैं। इस पर देवी पार्वती स्थान त्याग कर चली गईं।
करुणा के सागर हैं शिव
स्वामी जी ने कहा कि देवी पार्वती प्रकृति (सृष्टि) की अवतार हैं। उन सभी चीजों को प्रकट करती हैं जिन्हें हम देख सकते हैं, सूंघ सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। जैसे ही वे वहाँ से चली गयीं, पके हुए भोजन की सुगंध ने कैलाश को पार करना शुरू कर दिया, जिससे सभी गण भूख अनुभव करने लगे। भगवान शिव करुणा के सागर हैं। उनके भक्त भूखे थे, वे देवी पार्वती की खोज में कैलाश से बाहर गए संपूर्ण सृष्टि की खोज के बाद, भगवान ने काशी में देवी को पाया। विश्वनाथ (धरती के भगवान) का रूप लेते हुए, वह देवी पार्वती के पास गए और अपने भक्तों के लिए भोजन मांगा। इस प्रकार उन्होंने देवी अन्नपूर्णा का रूप ले लिया। कथा से पहले सुबह पंचकुंडीय यज्ञ का आयोजन किया गया। इसके लिए गीता भवन की यज्ञशाला में विशाल हवन कुंड तैयार किए गए थे। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञ को आहुतियां दी गईं।
संतों की भावपूर्ण विदाई
ट्रस्ट के सदस्यों ने देश भर के विभिन्न स्थानों से पहुंचे संतों की कथा के समापन पर भावपूर्ण विदाई दी। सभी को वस्त्र व दक्षिणा के रूप में उन्हें चेक प्रदान कर अगले साल दोबारा आने के विनम्र आग्रह के साथ उन्हें विदा किया गया। गीता भवन ट्रस्ट के इतिहास में पहली बार सभी प्रकार के भुगतान चेक से करने की परंपरा शुरू की गई है, ताकि गीता भवन का कामकाज पूरी पारदर्शिता के साथ चल सके।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।