कई तरह की बीमारियों से बचाएगी यह मक्की, PAU लुधियाना ने 10 वर्ष के शोध के बाद तैयार की नई किस्म PMH13
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) लुधियाना ने मक्की की खास किस्म तैयार की है। यह कई रोगों से लड़ने में सक्षम है। दस वर्ष के शोध के बाद यह किस्म तैयार हुई है। वैज्ञानिकों ने इस किस्म का नाम PMH13 दिया है।
लुधियाना [आशा मेहता]। मक्की मीठी और पौष्टिक हो। उत्पादन भी ज्यादा मिले। कीड़ों से बचाने के लिए केमिकल का छिड़काव न करना पड़े तो किसानो की तो बल्ले-बल्ले ही है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (Punjab Agricultural University PAU) के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स डिपार्टमेंट (Plant Breeding and Genetics Department) ने दस साल की शोध के बाद इन्हीं विशेषताओं वाली नई हाईब्रिड मक्की पीएमएच13 (New Hybrid Makki PMH13) तैयार की है। PAU वैज्ञानिकों ने इसके लिए दो इनब्रेड लाइनों (जनक लाइनों) एलएम 27 और एलएम 17 का इस्तेमाल किया है।
मक्की सेक्शन के इंचार्ज व प्रिंसिपल मेज ब्रीडर डा. जसबीर सिंह चावला ने PMH13 की तुलना मक्की की दो अन्य बेहतरीन हाइब्रिड से की। इसमें से एक PAU द्वारा विकसित हाईब्रिड पीएमएच वन और दूसरी प्राइवेट कंपनी की हाईब्रिड मक्की पी 3396 रही। मक्की की नई किस्म PMH13 की पैदावर प्रति एकड़ 24 क्विंटल है, जबकि पीएमएच वन और हाईब्रिड पी 3396 की पैदावार 22 क्विंटल है।
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पौष्टिक तत्वों से भरपूर है PMH13
डा. चावला कहते हैं कि PMH13 में बीटा कैरोटीन 3.88 पीपीएम है, जबकि पीएमएच वन में 3.05 पीपीएम और प्राइवेट कंपनी के हाईब्रिड पी 3396 में 3.23 पीपीएम है। नई हाइब्रिड में आयल तत्व 4.73%, पीएमएच वन में 4.52% और पी 3396 में 4.54% है। इसमें प्रोटीन की मात्रा भी सबसे अधिक 9.98% मिली, जबकि पीएमएचवन में 9.95 और पी 3396 में 9.41% है।
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PMH13 में स्टार्च 65.69%, पीएमएच वन में 65.17% और पी 3396 में 65.96% है। बीटा कैरोटीन कई तरह की बीमारियों से बचाने में सहायक है, जबकि प्रोटीन के कई फायदे हैं। प्रोटीन से मांसपेशियों व इम्यून सिस्टम को मजबूती मिलती है। यही नहीं, प्रोटीन हृदय व फेफड़े के ऊतकों को भी स्वस्थ रखता है।
रोगों से लड़ने में सक्षम
डा. चावला कहते हैं कि तना छेदक सूंडी के हमले से मक्की की फसल को काफी नुकसान होता है। इसके अलावा मक्की को पत्ता झुलस रोग का सामना करना पड़ता है। दोनों बीमारियों पर काबू पाने के लिए किसानों को अलग-अलग तरह के केमिकल स्प्रे का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे किसानों का खर्च बढ़ जाता है। PMH13 दोनों रोगों का मुकाबला करने में सक्षम है। इससे केमिकल स्प्रे का खर्च भी बचेगा।
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पानी भी लगता है कम
डा. चावला कहते हैं कि धान रोपने से पकने तक करीब 150 से 160 सेंटीमीटर पानी, जबकि मक्की को केवल 40 से 50 सेंटीमीटर पानी की जरूरत होती है। मक्की को कुल चार से छह सिंचाई की, जबकि धान को 20 से 22 सिंचाई की जरूरत होती है। मक्की का वेस्ट सूखे चारे के तौर पर प्रयोग हो सकता है। धान के वेस्ट को जलाने से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या होती है। फीड इंडस्ट्री में भी मक्की की काफी खपत है। मक्की की स्टार्च, एथनोल, कास्टमेटिक और पेपर इंडस्ट्री में भी भारी डिमांड है। वैज्ञानिकों का कहना कि इस नई किस्म से किसानों की आय बढ़ेगी।
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