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    शहर में था त्योहार जैसा माहौल, एक झलक पाने को दौड़ पड़े थे लोग; जब 5 साल पहले लुधियाना आए थे एक्टर धर्मेंद्र

    Updated: Mon, 24 Nov 2025 02:22 PM (IST)

    साढ़े पांच साल पहले धर्मेंद्र जब लुधियाना आए, तो शहर में त्योहार जैसा माहौल था। उन्हें 'नूर-ए-साहिर अवार्ड' से सम्मानित किया गया। धर्मेंद्र के प्रशंसक उनकी एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़े। उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद किया और अपनी पहली मोहब्बत 'हमीदा' का भी जिक्र किया, जिससे पूरा हॉल भावुक हो गया। धर्मेंद्र का लुधियाना प्रेम अटूट है।

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    साढ़े पांच साल पहले जब ही-मैन धर्मेंद्र अपने जन्मस्थान लुधियाना आए तो शहर का माहौल त्योहार जैसा था (फाइल फोटो)

    राधिका कपूर, लुधियाना। साढ़े पांच साल पहले जब ही-मैन धर्मेंद्र अपने जन्मस्थान लुधियाना आए तो शहर का माहौल किसी त्योहार से कम नहीं था।

    नेहरू सिद्धांत केंद्र ट्रस्ट द्वारा आयोजित किशोर कुमार नाइट में मुख्य अतिथि बने धर्मेंद्र को ‘नूर-ए-साहिर अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। जिस मिट्टी में जन्म लिया, वहां आने की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी। प्रशंसक भी कहां चूकने वाले थे, जिस हीरो ने पर्दे पर करोड़ों दिल जीते, उसकी एक झलक के लिए 7 मार्च 2020 को लुधियाना उमड़ पड़ा था।

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    कार्यक्रम के दौरान धर्मेंद्र ने अपने बचपन की उन गलियों को फिर से जिया, जिनसे उनके सपनों ने उड़ान भरी थी। उन्होंने बताया कि बद्दोवाल के सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए शरारतें करना, दोस्तों के संग टांगे पर बैठकर घंटाघर होते हुए फिल्म देखने जाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था।

    फिल्म खत्म होने के बाद वहां आस-पास आम के पेड़ों के नीचे आराम भी कर लेते। घर आकर पिता से डांट के तौर पर लंबी सोटी भी खाने को मिल जाती थी। लुधियाना के मिनर्वा सिनेमा में दलीप कुमार की ‘शहीद’ देखने के बाद ही फिल्मों की दुनिया में आने का सपना उनके मन में जन्मा था।

    उसी शाम धर्मेंद्र ने अपनी स्कूली मोहब्बत ‘हमीदा’ का जिक्र कर पूरा हाल भावुक कर दिया। आठवीं कक्षा की हमीदा, जो चुपचाप उनकी कॉपी में सवाल हल कर देती और उंगलियों का वह हल्का-सा स्पर्श, जिसका अर्थ उन्हें बहुत बाद में समझ आया।

    बंटवारे के बाद हमीदा पाकिस्तान चली गई और यह मासूम प्रेम उनकी यादों में एक मीठी चुभन बनकर रह गया। ‘मासूम कदम… तू तां जिंदगी न भूलेगा’ कहकर उन्होंने भीतर छिपे दर्द को भी साझा किया।

    लुधियाना से दूर रहते हुए भी शहर उनके दिल से कभी दूर नहीं हुआ। एक बार उन्होंने रेखी सिनेमा की वीरान तस्वीर साझा करते हुए लिखा था- ‘यह सन्नाटा… दिल उदास कर गया।’ धर्मेंद्र का लुधियाना प्रेम यूं ही नहीं था, यह वही शहर था जिसने उन्हें बचपन, सपने और पहली धड़कनें दी थीं।