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    पराली के प्रदूषण से 48 साल में 1.06 घंटा कम हुआ पंजाब में धूप का समय, पीएयू के अध्ययन में हुआ खुलासा

    By Kamlesh BhattEdited By:
    Updated: Tue, 23 Nov 2021 11:27 AM (IST)

    पंजाब में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का असर धूप पर भी पड़ रहा है। पीएयू लुधियाना के अध्ययन में सामने आया है कि राज्य में पिछले 48 वर्षों में धूप के समय में एक घंटे 6 मिनट की कमी आई है।

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    लुधियाना में प्रदूषण के कारण सतलुज पुल साफ नहीं दिख रहा। सूर्य की लालिमा मध्यम है। फाइल फोटो: कुलदीप काला

    राजीव शर्मा, लुधियाना। पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण सूरज की किरणों को धरती पर पहुंचने नहीं दे रहा। इसका असर यह हुआ है कि धूप की अवधि कम होती जा रही है। पंजाब में पिछले 48 वर्ष मेंं धूप की अवधि एक घंटा छह मिनट कम हो चुकी है। धरती के ऊपर वायुमंडल में नमी व प्रदूषण बढ़ने के कारण जो परत जम रही है वह धरती को धूप से वंचित रख रही है।

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    नमी व पराली से धुएं से बन रहा स्माग

    यह निष्कर्ष पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के जलवायु परिवर्तन और कृषि मौसम विज्ञान विभाग की ओर किए गए अध्ययन का है। पीएयू के अध्ययन में सामने आया है कि खरीफ सीजन में धान की पैदावार के दौरान वातावरण में नमी काफी अधिक रहती है। बाद में धान की पराली जलाने से प्रदूषण भी अधिक होता है। नमी व पराली के धुएं के मिश्रण से बनने वाला स्माग धरती पर सूर्य की रोशनी को ठीक से पहुंचने नहीं दे रहा। यही कारण है कि सूर्योदय व सूर्यास्त के समय में कोई अंतर न आने के बावजूद धरती को मिलने वाली धूप की अवधि में कमी आ गई है। खरीफ के सीजन में पहले औसतन साढ़े नौ घंटे धूप खिलती थी जो अब आठ घंटे चौबीस मिनट हो गई है।

    लुधियाना में फिरोजपुर रोड पर शाम को ही स्माग के कारण पूरी तरह अंधेरा छा जाता है। जागरण

    1970 से 2018 तक का अध्ययन

    जलवायु परिवर्तन और कृषि मौसम विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डा. प्रभजोत कौर सिद्धू ने बताया कि यह अध्ययन वर्ष 1970 से लेकर वर्ष 2018 तक किया गया है। इसमें यह भी पाया गया है कि धूप की अवधि में कमी सितंबर से लेकर नवंबर तक और जनवरी के दौरान दर्ज की गई है। राज्य में मोनो क्राप पालिसी (एकल कृषि पद्धति) के तहत एक खेत में एक निश्चित समय पर एक ही प्रकार की फसल उगाई जाती है। एक ही प्रकार की फसल उगाने से वातावरण में नमी की मात्रा में काफी इजाफा हुआ है।

    वहीं, पराली जलाने के कारण प्रदूषण में वृद्धि हुई है। जब सूर्य से अल्ट्रावायलट किरणें नाइट्रोजन आक्साइड के साथ वातावरण में पहुंचती हैं तो फोटो केमिकल स्माग की परत बनती है। यह वातावरण में कोहरे की शक्ल ले लेती है और सूर्य की किरणों को रोकती है। ऐसी स्थिति सुबह एवं दोपहर के वक्त अधिक रहती है। पंजाब के घनी आबादी वाले शहरों में इसका प्रभाव अधिक देखा जा रहा है। आजकल मालवा क्षेत्र के गांवों में भी घना स्माग देखा जा रहा है। इस समय हवा की रफ्तार काफी कम रहती है। ऐसे में स्माग की परत एक ही जगह पर टिकी रहती है।

    रात के तापमान में भी हुई वृद्धि

    अध्ययन में यह भी सामने आया है कि पिछले करीब पांच दशक में पंजाब में रात के न्यूनतम तापमान में भी एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। राज्य में अब रात के वक्त वार्षिक औसत तापमान पंद्रह से सोलह डिग्री सेल्सियस रहता है। सर्दी में यह आठ डिग्री सेल्सियस और गर्मी में 21 से 23 डिग्री सेल्सियस रहता है। वर्ष 1970 में रात का औसत तापमान एक डिग्री सेल्सियस कम था। कृषि एवं औद्योगिकीकरण के चलते न्यूनतम तापमान में वृद्धि हो रही है।

    सनशाइन रिकार्डर के जरिये किया अध्ययन

    सनशाइन रिकार्डर सूर्य की धरती पर पहुंच रही किरणों का हिसाब-किताब रखता है। यह लुधियाना में पीएयू व बल्लोवाल और बठिंडा में लगा है। सनशाइन रिकार्डर में धूप की अवधि की गणना बर्निंग कार्ड के जरिये की जाती है।

    किसान भी मानते दुष्प्रभाव होता है

    पराली न जलाने वाले लुधियाना के गांव करोड़ के सरपंच जसवीर सिंह ग्रेवाल का कहना है कि पराली के धुएं से बनने वाले स्माग के कारण फसलों पर बुरा असर पड़ता है। इससे उनका विकास प्रभावित होता है। सही फसल के लिए लगातार धूप होना काफी जरूरी है। वहीं, गांव कूमकलां के जसप्रीत के अनुसार मालवा क्षेत्र की कपास बेल्ट में स्माग के कारण धूप कम लगने से इसके फूल में नमी देर तक रहती है, जो बीमारी की वजह है।

    फसल के उत्पादन में आएगी कमी

    कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डा. बलदेव सिंह नार्थ का कहना है कि यदि फसल को 100 दिन सूरज के प्रकाश की जरूरत है और यदि यह 90 दिन मिलेगी तो फसल की पैदावार पर असर पड़ेगा। फसल के लिए सूरज की रोशनी बहुत जरूरी है। इससे पौधे अपना भोजन तैयार करते हैं। कम धूप से फसल को बीमारियां, कीड़े लगने का खतरा होगा। फसल समय पर तैयार नहीं होगी।

    डाक्टर बोले-हड्डियां होंगी कमजोर

    लुधियाना के दयानंद मेडिकल कालेज (डीएमसी) अस्पताल के आर्थोपेडिक्स विभाग के प्रमुख डा. हरपाल सिंह सेलही ने बताया कि कम धूप का सबसे ज्यादा असर हड्डियों पर पड़ेगा। फेफड़ों के कैंसर जैसे रोग बढ़ेंगे। प्रदूषण से होने वाली बीमारियां भी बढ़ेंगी। हड्डियों व मांसपेशियों को मजबूत रखने के लिए जरूरी विटामिन डी सूरज के प्रकाश से मिलता है। इसकी कमी को सप्लीमेंट्स की मदद से दूर किया जा सकता है। त्वचा पर इसका खास प्रभाव नहीं पड़ेगा।