फेसबुक और वाट्सएप बना रहे ‘स्क्रीन डिपेंडेंट डिसआर्डर’ का शिकार
इंटरनेट वैवाहिक जीवन में खलनायक की भूमिका निभा रहा है। यहां आने वाले अधिकतर मामलों में इंटरनेट और मोबाइल के ही रोल सामने आ रहे हैं।
लुधियाना [राजन कैंथ]। दो साल पहले आरुषि (काल्पनिक नाम) की शादी संपन्न परिवार में हुई। उसके सास-ससुर, ननद व देवर विदेश में बसे हुए हैं। पति का शहर में अच्छा खासा कारोबार है। शादी के बाद दोनों हनीमून के लिए मलेशिया घूम कर आए। हंसीखुशी के माहौल में सब कुछ सामान्य चल रहा था। शादी को अभी डेढ़ साल ही पूरे हुए थे कि दोनों के रिश्तों में कड़वाहट भर गई। नौबत तलाक तक जा पहुंची।
दोनों पक्षों को सुनने और कांसलिंग करने के बाद वूमेन सेल ने दोनों के तलाक की रिपोर्ट बना कर आगे भेज दी। सेल को जांच में पता चला कि शादी के बाद आरुषि के सास-ससुर, ननद व देवर वापस विदेश लौट गए थे। हनीमून से लौट कर पति ने बिजनेस संभाल लिया और वह अपने ऑफिस जाने लगा।
आरुषि दिन भर घर में अकेली रहती। पहले पहले तो ठीक रहा। बाद में वहां का अकेलापन उसे काटने लगा। समय बिताने के लिए उसने एक-दो सहेलियों के साथ बाहर भी जाना शुरू किया, मगर बात वहीं की वहीं रही। हर ओर से हार कर उसने अपना ध्यान इंटरनेट पर लगाना शुरू कर दिया। अब वह अपना ज्यादातर समय फेसबुक और वाट्सएप पर बिताने लगी।
वह इंटरनेट पर इतनी बिजी हो गई कि कई बार उसे पति के घर लौटने का भी पता न चलता। पहले तो पति ने भी उसकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए उसे नहीं टोका। इंटरनेट के आकर्षण में फंसी आरुषि के पास पति के लिए वक्त नहीं रह गया। पति के सामने होने पर भी वह इंटरनेट और मोबाइल में ही व्यस्त रहने लगी। घर में उस दिन हंगामा हो गया, जब पति ने अपने मोबाइल पर आरुषि का एक युवक के साथ वायरल हुआ वीडियो देखा। वीडियो वायरल होने की खबर लगते ही परिवार और रिश्तेदारों में तूफान मच गया। मारपीट के बाद नौबत पुलिस थाने जाने तक आ गई। इसके बाद मामला थाना वूमेन सेल भेज दिया गया।
इंटरनेट वैवाहिक जीवन में खलनायक की भूमिका निभा रहा है। यहां आने वाले अधिकतर मामलों में इंटरनेट और मोबाइल के ही रोल सामने आ रहे हैं। अगस्त में हमारे पास नई पुरानी कुल 1355 शिकायतें थीं। इनमें से 588 शिकायतों का निपटारा कर दिया गया और 767 पेंडिंग हैं। कुल मिला कर देखा जाए तो पति-पत्नी के बीच अनबन के 40 फीसद से ज्यादा मामलों में मोबाइल और इंटरनेट कारण बन रहे हैं।
-दारोगा किरण ठाकुर, थाना वूमेन सेल
इस बीमारी को स्क्रीन डिपेंडेंट डिसआर्डर (एसडीडी) कहा जाता है। जो लोग टीवी, लैपटॉप और फोन पर ज्यादा एक्टिव हैं, वे ज्यादा आहत हैं। ऐसे लोग वर्चुअल वल्र्ड यानी आभासी दुनिया में जीने लगते हैं, जहां उन्हें कोई नहीं जानता। वे वहां झूठ बोल सकते हैं। फर्जी फोटो भेज सकते हैं। झूठे लोगों पर विश्वास करते हैं। फिर वे उसी संसार पर डिपेंडेंट (निर्भर) होने लगते हैं। जिन लोगों की पर्सनल लाइफ में मुश्किलें आती हैं, वे उससे उबरना चाहते हैं। उन्हें यह एक आसान तरीका लगता है। वे जितना उसके अंदर जाते हैं, उतना फंसते चले जाते हैं। जो लोग ज्यादा स्टेबल नहीं होते और डिपेंडिंग नेचर के होते हैं, वे उसमें जल्दी फंसते हैं। ऐसे हालात में उन्हें अपनों की मदद जरूर लेनी चाहिए।
-डॉ. रविंदर काला, मनोचिकित्सक