पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब में तीन वर्ष से रणजीत सिंह बांट रहे नीम, पीपल व बरगद की त्रिवेणी
गांव भारू के पूर्व सरपंच कुलबीर सिंह ने कहा कि रणजीत सिंह के प्रयासों से प्रेरित होकर आसपास के गांवों के लोग भी पौधे लेने आते हैं। उन्हें लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा है। वह निशुल्क पौधे बांट कर मानवता की सेवा कर रहे हैं।

सुभाष चंद्र, श्री मुक्तसर साहिब: जब सड़क का विस्तार होता है, तो कई बार पेड़ भी काटे जाते हैं। यदि साथ-साथ नए पौधे लगाए जाते रहें तो लंबे समय में ही सही, इस नुकसान की भरपाई की जा सकती है। ऐसी ही कोशिश में लगे हैं पंजाब में श्री मुक्तसर साहिब के रणजीत सिंह। यहां के गिद्दड़बाहा में बठिंडा-श्रीगंगानगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर नर्सरी चलाने वाले रणजीत सिंह पिछले तीन वर्षों से फोरलेन होने के चलते कटे हजारों पेड़ों की भरपाई के लिए नीम, पीपल और बरगद के पेड़ों की त्रिवेणी बांट रहे हैं। उन्होंने इसे पौधों का लंगर नाम दिया है। वह अब तक 50 हजार से ज्यादा पौधे बांट चुके हैं। कहते हैं, 'वाहेगुरु ने सेवा करने का सामर्थ्य दिया है, इसलिए पौधों के लंगर की सेवा जारी है और आगे भी जारी रहेगी।
रणजीत सिंह बताते हैं कि तीन वर्ष पहले बठिंडा-श्रीगंगानगर राष्ट्रीय राजमार्ग को बठिंडा से मलोट तक फोरलेन करने का काम शुरू हुआ था। सड़क के किनारे हजारों की संख्या में बड़े-बड़े पेड़ लगे थे, लेकिन इन्हें काटना पड़ा। इससे यह मार्ग उजाड़ लगने लगा। पर्यावरण को इससे हो रहे नुकसान का सोचकर गहरी ठेस पहुंची। उनके मन में आया कि क्यों न इस नुकसान की भरपाई का प्रयास शुरू किया जाए। इसी क्रम में उन्होंने सड़क के दोनों ओर पौधे लगाने की मुहिम शुरू की। वह खुद नर्सरी चलाते हैं, इसलिए अधिक दिक्कत नहीं आई। पौधे देने को तो वह तैयार थे, लेकिन पौधे स्वीकार कर रोपने वालों को भी तैयार करना एक अहम काम था। इसके लिए उन्होंने पंचायतों के प्रतिनिधियों व आम लोगों से बात कर नीम, पीपल और बरगद के पौधों की त्रिवेणी बांटने का काम शुरू किया। यह काम तीन साल से लगातार जारी है।
एक त्रिवेणी पर खर्च होते हैं 80 रुपये
रणजीत सिंह के अनुसार नीम, पीपल और बरगद के तीन पौधों की एक त्रिवेणी तैयार करने पर उनके 80 रुपये खर्च होते हैं। अब तक वह करीब 16 हजार से ज्यादा त्रिवेणियां बांट चुके हैं। इस पर लगभग 12 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। वह कहते हैं, 'अपनी नर्सरी की कमाई से जो मुनाफा होता है, उसका कुछ हिस्सा इस काम पर खर्च कर देता हूं। वैसे भी गुरुओं ने कमाई का दसवां हिस्सा दान करने की बात कही है।' यह त्रिवेणियां फोरलेन के किनारे व आसपास के गांवों में लगाई जा रही हैं। पंचायत, धर्मशाला, स्कूल, अस्पताल, श्मशानघाट या धार्मिक स्थलों की जमीन पर यह पौधे लगाए जाते हैं। वह गांवों के युवाओं को प्रेरित भी कर रहे हैं कि वह इस मुहिम से जुड़ कर इसे आगे बढ़ाएं और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें। गांव के क्षेत्र के कई गांवों के युवा तो उससे दस-दस बार त्रिवेणियां ले जा चुके हैं। रणजीत नर्सरी में आने वाले लोगों को भी त्रिवेणी देने की कोशिश करते हैं, ताकि वे इसे किसी सार्वजनिक जगह पर लगा सकें। रणजीत कहते हैं कि विकास के साथ स्वच्छ पर्यावरण का होना भी बहुत जरूरी है।
पीपल, नीम और बरगद ही क्यों
रणजीत सिंह बताते हैं कि इन तीनों का धार्मिक व औषधीय महत्व बहुत अधिक है। ज्यादाती नर्सरियों में सजावटी पौधे ही मिलते हैं, लेकिन पीपल, बरगद और नीम के पौधे मुश्किल से मिलते हैं। वन विभाग की नर्सरियों में भी यह कम ही मिलते हैं। इन्हें अन्य पौधों की तुलना में संभालना और तैयार करना मुश्किल होता है। पीपल हमें सर्वाधिक आक्सीजन देता है। इसमें कई औषधीय गुण हैं। इसी तरह नीम व बरगद में भी ढेरों औषधीय गुण हैं। दूसरी बात यह है कि बरगद और पीपल के पेड़ लंबे समय तक टिके रहते हैं।
लोगों का भी मिल रहा सहयोग
गांव भारू के पूर्व सरपंच कुलबीर सिंह ने कहा कि रणजीत सिंह के प्रयासों से प्रेरित होकर आसपास के गांवों के लोग भी पौधे लेने आते हैं। उन्हें लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा है। वह नि:शुल्क पौधे बांट कर मानवता की सेवा कर रहे हैं। गांव हुसनर के पर्यावरण प्रेमी मोहन सिंह ने बताया कि रणजीत सिंह की मेहनत से लोग पर्यावरण को लेकर काफी जागरूक हुए हैं। उनके प्रयास से क्षेत्र में हरियाली बची हुई है।
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