Punjab Grain Tender Scam: कोर्ट ने पूर्व मंत्री आशु की जमानत याचिका पर आदेश आरक्षित रखा, 9 सितंबर को होगा फैसला
Punjab Grain Lifting Scam अदालत ने एक कथित ट्रांसपोर्ट टेंडर अलाट्मेंट भ्रष्टाचार मामले में पूर्व खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु की जमानत याचिका पर आज डेढ़ घंटे से अधिक समय तक दलीलें सुनने के बाद आदेश 9 सितंबर तक आरक्षित रख लिया।

जागरण संवाददाता, लुधियाना। Punjab Grain Lifting Scam: अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ अजीत अत्री की अदालत ने एक कथित ट्रांसपोर्ट टेंडर अलाट्मेंट भ्रष्टाचार मामले में पूर्व खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु की जमानत याचिका पर आज डेढ़ घंटे से अधिक समय तक दलीलें सुनने के बाद आदेश 9 सितंबर तक आरक्षित रख लिया। आशु 22 अगस्त से हिरासत में है। वह करीब 9 दिनों तक पुलिस हिरासत में रहे। इसके बाद सीजेएम सुमित मक्कड़ ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया। पहले आशु को लुधियाना सेंट्रल जेल में शिफ्ट किया गया था। लेकिन सुरक्षा कारणों से उन्हें उसी शाम पटियाला जेल में शिफ्ट कर दिया गया।
अभियोजन पक्ष ने आज उन्हें इस दलील के साथ जमानत देने का विरोध किया कि जांच अभी शुरुआती चरण में है और अगर जमानत पर रिहा किया जाता है तो आरोपी इसमें बाधा डाल सकते हैं। शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले एक निजी वकील ने आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता को विभिन्न व्यक्तियों के माध्यम से धमकियां दी जा रही थीं, जिसके संबंध में वे पहले ही अधिकारियों को एक लिखित आवेदन दे चुके हैं।
पूर्व डीएसपी बलविंदर सिंह सेखों ने अदालत की अनुमति से बोलते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने आशु पर कई और आरोप भी लगाए। दूसरी ओर, बचाव पक्ष के वकीलों ने इस मामले में पूर्व डीएसपी के बोलने पर कड़ा ऐतराज जताया और कहा की उनका इस केस से कोई लेना देना ही नहीं। जिससे कोर्ट रूम में तीखी नोकझोंक हुई।
बचाव पक्ष के वकीलों ने दलील दी कि लंबे पुलिस रिमांड के दौरान, न तो कोई कथित रिश्वत की रकम बरामद की गई और न ही कोई आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किया गया। यह पूरा मामला केवल राजनीतिक प्रतिशोध के कारण पूर्व मंत्री को किसी अपराध के साथ जोड़ने वाले किसी सबूत के बिना हवा में धारणाओं और अनुमानों पर आधारित है। इसके अलावा, ट्रांसपोर्ट टेंडर अलाट्मेंट पालिसी को तत्कालीन मुख्यमंत्री पंजाब की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद द्वारा पास किया गया था। उक्त परिवहन पालिसी को रिट याचिका दायर करके पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी और उसे खारिज कर दिया गया था। अब विजिलेंस ब्यूरो कैसे दावा कर सकता है कि पालिसी वैध नहीं गलत है।
इसके अलावा पालिसी में बदलाव से सरकारी खजाने को कोई नुकसान नहीं हुआ है। बल्कि ट्रांसपोर्टरों को पिछले वर्षों की तुलना में 17-18 प्रतिशत कम राशि का भुगतान किया गया। इससे तो सरकारी खजाने में फायदा ही हुआ। ट्रांसपोर्ट टेंडर अलाट्मेंट कमेटी की अध्यक्षता मंत्री द्वारा नहीं की गई थी, बल्कि जिला प्रशासन द्वारा की गयी जिसमें एफसीआइ के एक प्रतिनिधि को भी शामिल किया गया था, जो केंद्र सरकार के नियंत्रण में आता है।
शुरुआत में विजिलेंस ब्यूरो ने ठेकेदार तेलू राम के खिलाफ मामला दर्ज किया, जिन्होंने कथित तौर पर गलत तौर पर टेंडर हासिल किए। इसके बाद, विजिलेंस ब्यूरो ने दावा किया है कि पूछताछ के दौरान तेलू राम ने कबूल किया कि उप निदेशक आरके सिंगला और पंकज मीनू मल्होत्रा ने आशु के नाम पर उनसे रिश्वत ली है। अगर किसी ने किसी के नाम पर कोई धनराशि ली भी हो तो जिसने धनराशि ना मांगी और ना ही ली उसको कैसे कसूरवार ठहराया जा सकता है।
किन अदालती कार्यवाही के दौरान, तेलू राम अपने कथित बयान से मुकर गए और कहा कि वह पूर्व मंत्री से कभी नहीं मिले। बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि उन्होंने यह भी कहा कि वह वही लिख रहे व साइन कर रहे हैं जो विजिलेंस ब्यूरो के कहते हैं क्योंकि वह उनकी हिरासत में है।
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