.. तो पाकिस्तान उरी में घुसने की हिम्मत नहीं करता
'अगर सियासी रंग न होता संविधान की वर्दी पर तो आतंकी घटननाओं को कोई नादान नहीं करता. और सही वक्त सरेआम अफजल को फांसी दी होती तो मुंबई में घनघोर धमाके वो शैतान नहीं करता.
'अगर सियासी रंग न होता संविधान की वर्दी पर
तो आतंकी घटननाओं को कोई नादान नहीं करता.
और सही वक्त सरेआम अफजल को फांसी दी होती
तो मुंबई में घनघोर धमाके वो शैतान नहीं करता.
और एक शीश के बदले में यदि दस हमने काटे होते.
तो रणबीरों का वतन व्यर्थ में बलिदान नहीं करता
और दो चार दरिंदों की फांसी लाल किले पर हो जाती.
तो उरी में घुसने की हिम्मत पाकिस्तान नहीं करता..''।
यह पंक्तियां रविवार को वीर रस के कवि योगेन्द्र शर्मा ने जब भारतीय विद्या मंदिर किचलू नगर में आयोजित कवि सम्मेलन में पढ़ी तो ऑडिटोरियम में उपस्थित सैकड़ों शिक्षकों में जोश भर गया और तालियां गूंज उठी। वे यहीं नहीं रुके। उन्होंने ' हैवानों को प्रीत प्यार के गीत सुनाना बंद करो, धूर्त दरिंदों की बस्ती में आना-जाना बंद करो, अब तो उस कुत्ते की दुम से हाथ मिलाना बंद करो, क्षमादान दे देकर अपने शीश कटाना बंद करो, हरदम धोखे खाए हमने सैनिक भी कुर्बान हुए, शातिवार्ता छोड़ो दिल्ली शस्त्रों का संधान करो, सेना को आदेश थमा रणचंडी का आह्वान करो, जो आंख उठे भारत पे कसम राम की आंख फोड़ दो, ले नापाक इरादे जो हाथ उठे तो हाथ तोड़ दो, मातृभूमि पर घात बने बकरों को ऐसा झटका दो..। जैसे ही उन्होंने अपनी यह कविता समाप्त की तो पूरा ऑडिटोरियम काफी देर तक भारत माता की जय, भारत माता की जय से गूंजता रहा। ऑडिटोरियम में मौजूद हर शख्स की आंखों में पाकिस्तान के प्रति आक्रोश था। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक काव्य पाठ पढ़े।
उनके अलावा कवि सम्मेलन में भरतपुर राजस्थान से वरुण चतुर्वेदी, चेतना शर्मा, टूंडला से लटूरी लठ, धमेंद्र सोनी, जयपुर से किशोर कुमार सहित अन्य कवियों ने देश के वर्तमान हालात पर कटाक्ष किया और काव्य से सजी एक सुंदर शाम श्रोताओं को दी। कर सकता है तू, माना समंद्र है तेरी आंखों में..
बाल कवियों ने पहले कवि सम्मेलन की शुरुआत की। सबसे पहले आस्था भनोट ने कविता प्रस्तुत की। आस्था ने 'कर सकता है तू, माना समंद्र है तेरी आंखों में आंसुओं का, न खुदा बनकर खुद को साहिल पर ले जा सकता है तू, क्यों रोता है तू, क्यों बिलखता है तू, क्यों अपनी ही तलाश में क्यों भटकता है तू' कविता सुनाकर मुसीबत में हिम्मत न हारने का संदेश दिया। बेटी बचाओ बेटी बचाओ पर कविता पेश की
वहीं सात साल के अभिमन्यु ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर कविता 'सब कहते हैं घर की रानी, लेकिन मेरी दुखद कहानी सुनाई'। मीनल जैन ने बेटियों, नारी पर हो रहे अत्याचार विषय 'जब लड़कियों की नहीं, लड़कों की गलत निगाहों की आलोचना की जाए, जिस दिन अखबार निर्भया पर अत्याचार की खबरें न लाए, जिस दिन नारी में हर नारी में देवी का स्वरूप नजर आए, उस दिन मेरी प्यारी बहना इस देश में लौटकर आना' कविता से श्रोताओं के मन को तरंगित किया। पलक गुप्ता ने प्रस्तुति देकर तालियां बंटोरी
पलक गुप्ता ने 'जिंदगी एक पल है, जिसमें आज है न कल है, कहते हैं मुश्किल इस दुनिया में कुछ भी नहीं, फिर भी क्यों लोग अपने इरादे तोड़ देते हैं' की प्रस्तुति से तालियां बंटोरी। दूसरी तरफ मंच का संचालन कर रहे कवि किशोर ने भी एक से बढ़कर एक बेहतरीन कविताओं से श्रोताओं को बांधे रखा। उन्होंने जब कविता 'अपने को साज बताते हुए शर्म आती, खुद को आवाज बताते हुए शर्म आती है और जिस मुल्क में बेटियां अब भी प्रताड़ित होती हों, उस मुल्क को आजाद बताते हुए शर्म आती है' पंक्तियां पढ़ी, तो ऑडिटोरियम में तालियां गूंज उठी। हास्य कवि धमेंद्र सोनी ने देश की राजनीति व नेताओं पर व्यंग कसते हुए श्रोताओं को खूब हंसाया।