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    पराली न जलाएं किसानः किन्नू में मलचिंग से बढ़ी खेती में पैदावार, PAU लुधियाना के शाेध में खुलासा

    By Asha Rani Edited By: Vipin Kumar
    Updated: Tue, 04 Oct 2022 08:07 AM (IST)

    PAU Ludhiana Reasearch किसानाें काे पराली में आग नहीं लगानी चाहिए। पीएयू ने लुधियाना और अबोहर में किन्नू के बागों में परीक्षण कर पाया कि जिन जगहों पर किन्नू में मलचिंग की गई वहां उपज कई गुना बढ़ गई।

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    PAU Ludhiana Reasearch: पराली कुदरत की एक बहुत बड़ी नियामत है। (फाइल फाेटाे)

    आशा मेहता, लुधियाना। PAU Ludhiana Reasearch: बेकार समझ कर जिस पराली को किसान आग के हवाले कर देते हैं, वह बड़े काम की है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के अलग-अलग विभाग अपने शोधों में साबित कर चुके हैं कि पराली कुदरत की एक बहुत बड़ी नियामत है। पीएयू के भूमि विभाग व फसल विज्ञान विभाग की ओर से लंबे समय तक किए गए तजुर्बों से यह पहले ही परिणाम सामने आ चुका है कि यदि धान की कटाई के बाद पराली को गेहूं बीजने से 3 सप्ताह पहले खेतों में दबा या मिला दिया जाए या फिर खेत में ही जोत दिया जाए तो गेहूं के उत्पादन में वृद्धि होती है और खेत में जैविक कार्बन, फासफोरस,पोटास व डीहाईड्रोजीनियस में वृद्धि होने से भौतिक गुण अच्छे हो जाते हैं।

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    मलचिंग से बढ़ सकता है उत्पादन

    अब विश्वविद्यालय के फल विज्ञान विभाग ने भी पराली काे लेकर बड़ी शोध की है। विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर किन्नू की खेती के दौरान पराली को मलचिंग के तौर पर इस्तेमाल किया जाए, तो इससे पांच से दस प्रतिशत तक उपज बढ़ जाती है। यहीं नहीं, क्वालिटी में भी सुधार आता है। विभाग के हैड डा. एचएस रत्तनपाल कहते हैं कि अगर किन्नू वाले खेतों में गीली पराली की मलचिंग (पराली को कुतर कर) कर दी जाए, तो इससे किन्नू के पेड़ को कई तरह के लाभ मिलते हैं।

    लुधियाना और अबोहर में किन्नू के बागों में परीक्षण

    पीएयू ने लुधियाना और अबोहर में किन्नू के बागों में यह परीक्षण किया। उन्होंने कहा कि हमने पाया कि जिन जगहों पर किन्नू में मलचिंग की गई, वहां एक तो पराली गल कर इन पौधों को प्राकृतिक खाद उपलब्ध करवाती है, दूसरा जितने हिस्से को पराली से ढका जाता है, वहां खरपतवार (नदीन) नहीं उगते। इससे गर्मियों में खेतों का तापमान भी स्थिर बना रहता है।

    उत्पादन में पांच से दस प्रतिशत की बढ़ोतरी

    फ्रूट ड्राप की समस्या कम हो जाती है और किन्नू की क्वालिटी में भी सुधार आता है। देखा गया है कि ऐसा करने पर किन्नू में मिठास बढ़ जाती है, जबकि खटास में कमी आती है। बड़ी बात रही कि उत्पादन में पांच से दस प्रतिशत की बढ़ोतरी भी देखी गई। फलों की उपज और किन्नू फलों की गुणवत्ता के आंकड़े भी दर्ज किए गए। मासिक अंतराल पर नमी की बचत, खरपतवारों की संख्या और सूखे वजन के आंकड़े दर्ज किए गए। उन्होंने कहा कि दिसंबर में प्रति एकड़ तीन टन पराली का इस्तेमाल किया गया।