पीएयू ने चने की नई किस्म ‘पीबीजी-10’ तैयार की, पैदावार बढ़ने से किसानों को होगा फायदा
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) ने चने की नई किस्म 'पीबीजी-10' विकसित की है, जो अधिक उपज और उच्च प्रोटीन प्रदान करती है। 12 वर्षों के शोध के बाद विकसित यह किस्म फसल विविधीकरण को बढ़ावा देगी और किसानों की आय में वृद्धि करेगी। इसमें चाननी रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता है और मशीनों से कटाई भी आसान है, जिससे श्रम लागत कम होगी।
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पीएयू की नई सौगात, तैयार की चने की नई किस्म 'पीबीजी-10'।
आशा मेहता, लुधियाना। पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) ने किसानों के लिए चने की नई किस्म ‘पीबीजी-10’ तैयार की है। यह किस्म न सिर्फ पोषण की दृष्टि से श्रेष्ठ है, बल्कि खेती की आर्थिकता को भी मजबूत बनाने वाली है।
यूनिवर्सिटी के प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स विभाग ने इंटरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फार द सेमी एरिड ट्रापिक्स (आइसीआरआइसैट) हैदराबाद के सहयोग से 12 वर्ष की शोध और फील्ड ट्रायल के बाद इस किस्म को विकसित किया है। यह किस्म फसल विविधीकरण को गति देने के साथ किसानों की आय बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
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पीबीजी-10 चने की किस्म।
पीबीजी-10 की सबसे बड़ी बात इसका उच्च प्रोटीन है। इसमें 21.63 प्रतिशत प्रोटीन है, जोकि पारंपरिक किस्मों में 19-20 प्रतिशत ही होता है। इस किस्म के दाने भी बड़े हैं। 100 दानों का वजन 25.9 ग्राम है, जो कि पुरानी किस्मों (14–15 ग्राम) की तुलना में काफी अधिक है। उत्पादन के मामले में भी पीबीजी-10 शानदार है।
फील्ड ट्रायल में इसकी औसत उपज प्रति एकड़ 8.6 क्विंटल दर्ज की गई, जो पंजाब की मौजूदा किस्मों से लगभग दोगुनी है। इससे सीधे तौर पर किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी। किसान इसकी बिजाई 25 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच करें तो करीब 150 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। पानी की कम जरूरत के कारण यह सिंचाई संसाधनों के दबाव वाले इलाकों के लिए भी उपयोगी है।
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खेत में लगी पीबीजी-10 चने की फसल।
पीबीजी-10 को तैयार करने वाली टीम में मुख्य रूप से डॉ. शायला बिन्द्रा, डॉ. सर्बजीत सिंह, डॉ. इंद्रजीत सिंह, गुरइकबाल सिंह, हरप्रीत कौर, उपासना रानी, रविंदर सिंह, गौरव कुमार तगगड़, पूनम शर्मा और हरप्रीत कौर ओबराय शामिल हैं। इनमें से कई वैज्ञानिक अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

डॉ. शायला बिंद्रा।
डॉ. शायला बताती हैं कि चने की फसल को कई रोग प्रभावित करते हैं, जिनमें सबसे गंभीर है चाननी रोग, जो सर्दियों में धुंध, बादल और लगातार नमी की स्थिति में फैलता है। एक समय पंजाब में 2.5 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में चना बोया जाता था, जो इसी बीमारी के कारण धीरे-धीरे घटता गया। पीबीजी-10 इस समस्या को हल करती है। इस किस्म में चाननी रोग के अलावा भूरा साड़ा और उखेड़ा के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता पाई गई है।
मशीन से होगी कटाई, श्रम लागत बचेगी
पारंपरिक किस्मों के साथ एक बड़ी दिक्कत यह भी रही कि पौधे झुक जाते थे या जमीन पर फैल जाते थे, जिससे कटाई लागत भरी हो जाती थी। नई किस्म में पौधे सीधे व मजबूत हैं। इनकी कटाई हार्वेस्टर जैसी मशीनों से भी आसानी से की जा सकती है। इसका लाभ है कि किसान मजदूरों पर निर्भरता कम कर सकते हैं, कटाई जल्दी कर सकते हैं और लागत में बचत हो जाती है।
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पंजाब कृषि विश्वविद्यालय।
मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में मददगार
चने की जड़ों पर राइजोबियम बैक्टीरिया द्वारा नोड्यूल्स बनते हैं जो मिट्टी में प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन स्थायी (फिक्स) करते हैं। इससे न सिर्फ अगली फसल को खाद मिलने में मदद मिलती है, बल्कि रासायनिक उर्वरकों की जरूरत भी घटती है। कई क्षेत्रों में उर्वरा शक्ति घटने की समस्या बढ़ रही है। ऐसे में पीबीजी-10 जैसी किस्में कृषि संतुलन और पर्यावरण संरक्षण दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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