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    पर्यूषण का अर्थ है आत्मा के समीप निवास करना

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 19 Aug 2020 01:37 AM (IST)

    जैन मान्यतानुसार पर्यूषण चातुर्मासीय साधना का पर्व है।

    पर्यूषण का अर्थ है आत्मा के समीप निवास करना

    संस, लुधियाना : जैन मान्यतानुसार पर्यूषण चातुर्मासीय साधना का पर्व है। जैनों के कल्पसूत्र आगम में लिखा है, आषाढ़ चातुर्मास के आरंभ से एक मास और 20 रात्रि व्यतीत होने और 70 दिन शेष रहने पर भगवान महावीर ने पर्व पर्यूषण की आराधना की। पर्यूषण शब्द का अर्थ है-आत्म के समीप निवास करना। इसका अभिप्राय है आध्यात्मिक जगत से स्वयं को जोड़ना। पर्व स्वयं को निखरने की ओर प्रेरित करता है। खुद का चितन और निखार आने, सुनने और लिखने में जितना सरल प्रतीत होता है, उतना ही यह कठिन है। आधुनिक युग की प्रतिस्पर्धा में जीवन वैमनस्यों से भरा है। इस पर्व की विशेषता पर जैन बुद्धिजीवियों ने अपने अपने विचार रखे। महेश गोयल, कोमल कुमार जैन डयूक, विनोद जैन (सीएचई) ने कहा कि भगवान महावीर ने कहा कि हे जीव। पर्व पर्यूषण इसी स्वाभाविकता की ओर हमें अग्रसर करता है। आओ भगवान महावीर की इस देशना को आत्मसात करने का यत्न करें। जैन धर्म में क्षमापना पर्व को संवत्सरी पर्व की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। एक वर्ष के बाद आने के कारण इसे संवत्सरी कहा जाता है। यह एक आलौकिक पर्व है, जिसमें तप, त्याग, स्वाध्याय व विभिन्न अनुष्ठानों को प्रश्रय दिया जाता है।

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    क्षमा वीरों का आभूषण है

    संजीव जैन (सीए), सतपाल जैन, श्रेणिक जैन ने कहा कि क्षमा वीरस्य भूषणम अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है, कायरों का नहीं। क्षमा व्यक्ति की होती है और राष्ट्र की भी। कमजोर आदमी शक्तिशाली को कैसे क्षमा कर सकता है। उसी तरह एक कमजोर राष्ट्र शक्तिशाली शत्रु राष्ट्र को क्षमा कैसे कर सकता है, उसकी यह क्षमा विवशता होगी, स्वाभिमान नहीं। यह तो वैसे ही होगा, जैसे एक मरियल आदमी पहलवान से कहे कि जाओ मैं तुम्हें क्षमा करता हूं।

    माफ करने वाला महान

    संजय जैन (इंद्रा), भूषण जैन, संजय जैन (निशा) ने कहा कि जैन धर्म में क्षमापना पर्व को संवत्सरी पर्व की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। वीर पुरुष ही क्षमापना पर्व को मना सकता है। दंड देने की शक्ति रखने वाला यदि दूसरे को क्षमा कर देता है, वहीं महान होता है। इस पर्व को जैनों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, अपितु इसे राष्ट्रव्यापी रुप देना चाहिए। इसी तरह यह पर्व भी हमें जीवन का लेखा-जोखा करने का अवसर देता है।

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