पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की क्रांति, 'पीएल 942' जौ की नई किस्म कम पानी में देगी बंपर पैदावार; माल्ट उद्योग को मिलेगा बढ़ावा
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने जौ की नई किस्म 'पीएल 942' विकसित की है, जो कम पानी और खाद में भी अच्छी पैदावार देती है। यह शुष्क और नमक वाली जमीनों पर भी उगाई जा सकती है और रोगों से लड़ने में सक्षम है। यह किस्म धान-गेहूं चक्र से बाहर निकलने का एक बेहतर विकल्प है, जिससे जल संरक्षण और कृषि विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा। माल्ट उद्योग के लिए भी यह उत्तम है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों द्वारा विकसित ‘पीएल 942’ किस्म किसानों के लिए लाभकारी (प्रतीकात्मक फोटो)
आशा मेहता, लुधियाना। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने राज्य के किसानों को फसली विविधिकरण की दिशा में एक नया रास्ता दिखाया है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जौ की नई किस्म ‘पीएल 942’ विकसित की है, जो न केवल कम पानी और कम खाद में अच्छी पैदावार देती है, बल्कि शुष्क और नमक वाली जमीनों पर भी आसानी से उगाई जा सकती है।
इस किस्म की खासियत यह है कि यह रोगों के प्रति प्रतिरोधी है और किसानों को धान-गेहूं के चक्र से बाहर निकलने का लाभकारी विकल्प प्रदान करती है। पीएयू के अनुसार, ‘पीएल 942’ किस्म विशेष रूप से उन किसानों के लिए उपयोगी साबित होगी जो कम सिंचाई संसाधनों या कमजोर मिट्टी वाले क्षेत्रों में खेती करते हैं।
इस नई किस्म को पीएयू के प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स विभाग के व्हीट सेक्शन की जौ ब्रीडर डा. सिमरजीत कौर ने अपनी टीम के साथ विकसित किया है। इस टीम में डा. हरिराम, मनिंदर कौर, रचना डी भारद्वाज, लेनिका कश्यप, जसपाल कौर, बेअंत सिंह, विजय कुमार, विनीत कुमार और रितू बाला शामिल रहे।
इस किस्म में कम जल व पोषक तत्वों में भी अनुकूल विकास की क्षमता है। यह ड्राई और खारी जमीनों पर भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। डा. कौर के अनुसार, यह किस्म पंजाब के कृषि परिदृश्य में कम लागत और अधिक लाभ वाली खेती की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
‘पीएल 942’ का औसत उत्पादन 20.1 क्विंटल प्रति एकड़ दर्ज किया गया है, जो राज्य की मौजूदा जौ उपज से अधिक है। इसके पौधे का कद 101 सेंटीमीटर है और यह 146 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में पीली कुंगी, झुलस रोग और बंद कंगियारी जैसे रोगों के प्रति माडरेट रजिस्टेंस पाई गई है। डा. सिमरजीत कौर बताती हैं कि यदि फसल पर बीमारी का असर पड़ता भी है, तो इसका झाड़ और गुणवत्ता प्रभावित नहीं होते।
धान-गेहूं चक्र से बाहर निकलने का नया अवसर
पंजाब के किसान लंबे समय से धान-गेहूं की दोहरी फसली प्रणाली में उलझे हुए हैं, जिससे भूमिगत जलस्तर गिरने और मिट्टी की उर्वरता में कमी जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। ‘पीएल 942’ जैसी किस्में किसानों के लिए वैकल्पिक फसलों की नई संभावनाएं खोलती हैं। इससे न केवल जल संरक्षण संभव होगा बल्कि कृषि विविधिकरण को भी बल मिलेगा। डा. सिमरजीत कौर कहती हैं कि अगर किसान इस जौ किस्म को अपनाते हैं, तो वे कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। साथ ही, राज्य के कृषि तंत्र में संतुलन और स्थिरता आएगी।
पंजाब में वर्ष 2023-24 में कुल 5.14 हेक्टेयर क्षेत्र में जौ की खेती की गई थी, जिससे 3737 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हुई। वर्ष 2024-25 में क्षेत्र घटकर 4.8 हेक्टेयर रह गया, लेकिन उपज बढ़कर 3794 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ‘पीएल 942’ जैसी किस्मों को बड़े पैमाने पर अपनाया गया, तो राज्य में जौ उत्पादन और किसानों की आय दोनों में वृद्धि होगी।
‘पीएल 942’ किस्म को विशेष रूप से माल्ट इंडस्ट्री को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है। माल्ट एक अंकुरित अनाज उत्पाद है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से बीयर और व्हिस्की बनाने में किया जाता है। इस प्रक्रिया में जौ को पानी में भिगोकर अंकुरित किया जाता है और फिर गर्म हवा में सुखाया जाता है, जिससे उसका प्राकृतिक स्टार्च शर्करा में परिवर्तित हो जाता है।
इस किस्म में हाट वाटर एक्सट्रेक्ट की मात्रा 75.4 प्रतिशत और बीटा ग्लूकोन की मात्रा मात्र 4.8 प्रतिशत है, जो इसे माल्ट उत्पादन के लिए उत्तम बनाती है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में कार्यरत माल्ट कंपनियां अब कांट्रेक्ट फार्मिंग के माध्यम से किसानों से सीधे जुड़ सकती हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।