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    लुधियानाः दिल के मर्ज को दूर कर मासूमों को नई जिंदगी दे रहे बलबीर

    By Nandlal SharmaEdited By:
    Updated: Tue, 10 Jul 2018 06:00 AM (IST)

    बलबीर कहते हैं कि हृदय रोग विशेषज्ञों के अनुसार हमारे देश में हर साल दो लाख बच्चे दिल की बीमारियों के साथ पैदा होते है।

    गारमेंट्स सेक्टर की नामी कंपनी के मालिक बलबीर कुमार अरोड़ा दिल में छेद की बीमारी से जूझ रहे बच्चों के लिए किसी 'मसीहा' से कम नहीं है। गुरदेव नगर में रहने वाले 63 वर्षीय बलबीर अरोड़ा ने हैव-ए-हार्ट फाउंडेशन लुधियाना के जरिए गरीब बच्चों की हार्ट सर्जरी करवाकर उनकी जिंदगी बदल दी।

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    चार साल पहले वर्ष 2013 में बलबीर कुमार अरोड़ा ने अपने उद्योगपति दोस्तों संजीव जैन, योगेश राय, अमित गुप्ता, सन्नी भल्ला, अमित गुप्ता, नीरज सूद, मनीश कपूर के साथ मिलकर 11 जनवरी 2013 में हैव ए हार्ट फाउंडेशन लुधियाना का गठन किया था। संस्था के गठन की प्रेरणा उन्हें अपने दोस्त मनु चतलानी से मिली। मनु हैव-ए-हार्ट फाउंडेशन बैंगलोर के संस्थापक है।

    मनु भी हृदय रोगियों का निशुल्क इलाज करवाते है। बलबीर अरोड़ा का इंडस्ट्रियल यूनिट लुधियाना में जालंधर बाईपास पर है। उन्होंने अपने कॉरपोरेट ऑफिस के एक हिस्से में फाउंडेशन का ऑफिस बना रखा है। यहां बलबीर अरोड़ा खुद हृदय रोग से पीड़ित बच्चों के अभिभावकों के दुख दर्द को सुनते हैं। जिसमें उनकी मदद करती है को-आर्डिनेटर हेमा। मानवता की सेवा को लेकर इनके समर्पण ने लुधियाना को विश्व मानचित्र पर नई पहचान दिला दी है।

    जब बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आती है तो मिलता है सुकून
    बलबीर अरोड़ा कहते हैं कि उनकी संस्था दिल से दिल के रोगों पर काम कर रही है। दिल में छेद से पीड़ित मासूमों की निशुल्क हार्ट सर्जरी करवाने के बाद जब वह सामान्य जिंदगी जीते हैं, तो बड़ा सकून मिलता है। क्योंकि बहुत कम लोग ही दिल में छेद से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए काम कर रहे हैं। बलबीर कहते हैं कि परिवार और हैव-ए-हार्ट फाउंडेशन से जुड़े सदस्यों की बदौलत ही मानवता की सेवा का मिशन लगातार आगे बढ़ रहा है।

    पाकिस्तान के ब्लू बेबी के इलाज में की मदद

    पाकिस्तान के पेशावर का नौ वर्षीय अहमद डबल इनलेट लेफ्ट वेंट्रीकल नामक दिल की बीमारी से पीड़ित था। इस कारण उसे ब्लू बेबी के नाम से जाना जाना था। इस बीमारी में शरीर नीला पड़ जाता है। पाकिस्तान के तमाम बड़े अस्पतालों ने अहमद का इलाज करने में असमर्थता जाहिर कर दी। फिर किसी रिश्तेदार ने अहमद के पिता को लुधियाना के एसपीएस अस्पताल के बारे में बताया। जिसके बाद अहमद और उसके पिता जुलाई 2016 में लुधियाना पहुंचे, तो हैव-ए-हार्ट फाउंडेशन ने अहमद के इलाज में आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाई। बेटे के सफल ऑपरेशन के बाद अहमद के पिता अब्दुल ने फाउंडेशन के सदस्यों को 'मसीहा' कहा।

    वर्ष 2013 में शुरू हुआ मिशन, 150 हृदय रोगियों की करवाई सर्जरी
    बलबीर कुमार अरोड़ा के अनुसार हैव-ए-हार्ट फाउंडेशन के गठन के बाद से अब तक पंजाब, हिमाचल और जम्मू कश्मीर से आएं 150 हृदय रोगियों की सर्जरी करवाई जा चुकी है। इनमें एक माह से एक साल के पंद्रह बच्चों, डेढ़ साल से पांच साल के 39 बच्चे, साढ़े पांच साल से दस साल के 30 बच्चे, साढ़े दस साल से पंद्रह के 24 बच्चे, पंद्रह से बीस साल की आयु के 14 किशोरों की हृदय में छेद की सर्जरी करवाई। इसके अलावा 30 साल से अधिक आयु के ऐसे लोगों की दिल में छेद की सर्जरी करवाई, जिन पर परिवार आश्रित था।

    फंड की कमी की कई बार बनी चुनौती
    बलबीर कहते हैं कि हार्ट सर्जरी काफी महंगी होती है। एक सर्जरी पर करीब दो से तीन लाख रुपये का खर्च आ जाता है। कई बार दिल में छेद के साथ अन्य तरह की पेचिदगियां होने पर दो बार भी सर्जरी करनी पड़ती है। ऐसे में इलाज का खर्च बढ़ जाता है। कई बार फंड की कमी की चुनौती भी आती है। लेकिन, जैसे तैसे पैसे जुटाकर बच्चों का इलाज करवाया जाता है। किसी रोगी का इलाज शहर के निजी अस्पतालों में अगर संभव नहीं होता, तो उसे दूसरे राज्यों के अस्पतालों में इलाज के लिए भेजते हैं।

    रिसोर्स होते तो और अधिक हार्ट सर्जरी होती
    बलबीर कहते हैं कि हृदय रोग विशेषज्ञों के अनुसार हमारे देश में हर साल दो लाख बच्चे दिल की बीमारियों के साथ पैदा होते है। इनमें से पचास प्रतिशत बच्चों की हालात ऐसी होती है कि उन्हें पहले साल ही सर्जरी और इलाज की जरूरत होती है। यहीं नहीं दस प्रतिशत बच्चों की मौत दिल की बीमारियों की वजह से होती है।

    वे कहते हैं कि यदि उनके पास और अधिक रिसोर्स होते तो और ज्यादा बच्चों की सर्जरी होती। अभी तो फिलहाल सीमित साधनों के बीच जितने पैसे एकत्र होते हैं, उतने में सर्जरी करवा रहे हैं। वे कहते हैं कि गवर्नमेंट को चाहिए कि जो एनजीओ लोगों को निशुल्क इलाज उपलब्ध करवाती है, उन्हें स्पोर्ट करें।

    बलबीर कुमार अरोड़ा कहते हैं कि जिंदगी वही है, जो दूसरों के काम आए, अपने लिए तो हर शख्स जी लेता है। हर किसी को जिंदगी बचाने के लिए आगे आना चाहिए। शादी विवाह और अन्य अवसरों पर हम लोग लाखों करोड़ों रूपये एक दिन में खर्च कर देते हैं, यहीं धन हम यदि किसी की जिंदगी बचाने में खर्च करें तो देश में लोग बीमारी की वजह से दम तोड़ने के लिए मजबूर नहीं होंगे।

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