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    जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि महाराज की आधुनिक भारत के निर्माण में अहम भूमिका

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 01 Oct 2021 07:42 PM (IST)

    गुजरात प्रांत के बड़ौदरा नगर में कार्तिक शुक्ला द्वितीया (भाई दूज) को जन्मे जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी आधुनिक भारत की उन विभूतियों में से एक ...और पढ़ें

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    जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि महाराज की आधुनिक भारत के निर्माण में अहम भूमिका

    लुधियाना (वि.) : गुजरात प्रांत के बड़ौदरा नगर में कार्तिक शुक्ला द्वितीया (भाई दूज) को जन्मे जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी आधुनिक भारत की उन विभूतियों में से एक थे। जिन्होंने उसके निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने देश की अखंडता, एकता, विश्वमैत्री और मानवता के लिए अपना जीवन समर्पित किया। वह एक साथ उपदेशक, कवि एवं संत थे तथा ज्ञान, भक्ति और कर्म की साकार प्रतिमा थे। जैन दर्शन के अनुसार वे सम्यकज्ञान, दर्शन और चरित्र रूपी रत्नत्रयी के आराधक थे। उनके पिता श्रेष्ठ दीपचन्द भाई बड़े धार्मिक संस्कार वाले थे तथा उनकी माता इच्छाबाई धर्मपरायण एवं कोमल स्वभाव की नारी थी।

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    जैनाचार्य श्री विजय वल्लभ सुरीश्वरजी भारतीय संत परम्परा के एक दिव्य रत्न थे। जिन्होंने अधिक से अधिक लोगों की भलाई करने के लिए एवं उनको सुखी बनाने के लिए आजीवन प्रयास किए। उन्होंने विद्यालय खोले, राष्ट्र सेवा की और हिन्दू मुस्लिम एकता की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किए। जिसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, जम्मू कश्मीर तथा समग्र भारत के विभिन्न राज्यों की पद यात्राएं की। उन्होंने अपनी वाणी से भारत की जनता में भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग पैदा किया। उनका स्वप्न था कि देश के नागरिक देश की महान् संस्कृति के अनुसार सबके प्रति प्रेम और सौहार्द भाव रखें और अपने उज्ज्वल चरित्र से राष्ट्र की अखंडता और एकता की रक्षा करते हुए 'वसुधैव कुटुंबक' समस्त जगत एक परिवार है, की कल्पना को साकार करें। वे भारतीय संस्कृति का मेरुदंड अहिसा और प्रेम को मानते थे। उनकी नजर में जातिमद, अस्पृश्यता, साम्प्रदायिक भेदभाव और धार्मिक कट्टरता का भारतीय संस्कृति में कोई स्थान नहीं है। उन्होंने राष्ट्र धर्म को विशेष महत्त्व दिया और हिन्दू मुस्लिम एवं समस्त संप्रदायों की एकता का अथक प्रयास किया।

    आचार्य देव का जीवन दीपक सन् 1954 वि.सं. 2011 आसोज वदि 10 ( गुजराती सं. (2010, भाद्रपद 10) मंगलवार को रात में पुष्य नक्षत्र में अर्हत् नमोच्चारण करते हुए मुम्बई में बुझ गया। वे अंतिम समय में ज्ञान ध्यान में लीन प्रशाल मुद्रा में शोभित थे। इस धरती पर इस दिव्य आत्मा में असंख्य जीवों का उद्धार किया था। पूज्य गुरुदेव का अंतिम संस्कार आसोज वदि 11 को सम्पन्न किया गया था। इसीलिए उनकी पुण्यतिथि प्रति वर्ष इस दिन जयंती महोत्सव के रूप में देश विदेश में मनाई जाती है। पूज्य गुरुदेव का समाधि मंदिर भायखला (मुम्बई) के श्री आदीश्वर जैन मंदिर के भव्य-प्रांगण में स्थित है। दिल्ली में स्थित करनाल रोड पर उनका भव्य स्मारक एक दर्शनीय स्थल बन गया है। ऐसे लुधियाना में भी सिविल लाइन, बसंत रोड, पर उनका समाधि मंदिर विराजमान है। अत: मेरा समस्त जैन श्रीसंघ से आग्रह है कि महाराज जी की पुण्यतिथि पर अपने-अपने शहरों में स्थित जैन मंदिरो में गुरु वल्लभ जी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित करें एवं पूजा अर्चना का आयोजन करें ताकि उनके द्वारा दी गई शिक्षा तथा बताये हुए मार्ग को गति मिल सकें

    हे गुरुदेव! हम पर कृपा करना जिससे सचिदानन्द परमात्मा के रूपामृत से हमारी आँखे भीगी रहें। - कोमल कुमार जैन

    चेयरमैन, ड्यूक फैशंस (इंडिया) लिमिटेड, लुधियाना

    एफसीपी, जीतो (जैन इंटरनेशनल ट्रेड आर्गेनाइजेशन)