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    पर्व शब्द का अर्थ है परम पवित्र दिवस, मिलकर इन्हें मनाएं

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 08 Sep 2021 06:33 AM (IST)

    पर्व दो प्रकार के होते है- लौकिक और लोकोत्तर। लौकिक पर्व का अर्थ होता है-हर्ष उल्लास और आमोद प्रमोद। वह शरीर की सीमा में बंद रहता है। लौकिक पर्व मनुष्य के शरीर का ही पोषण करता है उसके मन और आत्मा का नहीं।

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    पर्व शब्द का अर्थ है परम पवित्र दिवस, मिलकर इन्हें मनाएं

    कृष्ण गोपाल, लुधियाना : पर्व दो प्रकार के होते है- लौकिक और लोकोत्तर। लौकिक पर्व का अर्थ होता है-हर्ष, उल्लास और आमोद प्रमोद। वह शरीर की सीमा में बंद रहता है। लौकिक पर्व मनुष्य के शरीर का ही पोषण करता है, उसके मन और आत्मा का नहीं। इसके विपरीत लोकोत्तर पर्व शरीर की सीमाओं से ऊपर ज्योतिर्मय चेतना के दिव्य लोक में पहुंच कर मनुष्य को। आत्म-रत, आत्मा संलग्न और आत्म प्रिय बनता है। इस आठ दिवसीय पर्यूषण पर्व में हम सभी को धर्म की स्थापना, जप व तप के साथ करनी चाहिए।

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    जांचने और परखने का यह शुभ अवसर है पर्यूषण

    हजारी लाल जैन, विनय जैन, संजय जैन एमसंस, विनोद जैन ने कहा कि अष्ठ दिवसीय इस पवित्र पर्व में इस वर्ष में आपने क्या पाया, कितना खोया? यह सब जांचने और परखने का यह शुभ अवसर है। श्रमण संस्कृति और श्रमण विचार धारा में इस पर्व का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। पर्व शब्द का अर्थ है परम पवित्र दिवस। वैसे जो जीवन का प्रत्येक दिवस पवित्र होता है। परंतु आज का दिवस तो विशेष रुप से पवित्र है

    संवत्सरी एक अलौकिक पर्व

    नीतिन जैन, राजेश जैन बाबी, सीए राहुल जैन, मुनीष जैन ने कहा कि पर्व पर्यूषण में भगवान महावीर की इस देशना को आत्मसात करने का यत्न करे। जैन धर्म में क्षमापना पर्व को संवत्सरी पर्व की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। संवत्सरी एक आलौकिक पर्व है, जिसमें तप, त्याग, स्वाध्याय और विभिन्न अनुष्ठानों को प्रश्रय दिया जाता है। वीर पुरुष ही क्षमापना पर्व को मना सकता है। दंड देने की शक्ति रखने वाला यदि दूसरे को क्षमा कर देता है, वहीं महान होता है।

    दोष निवारण का संदेश देता है पर्यूषण

    रमेश जैन स्वास्तिक, विकास जैन, रिद्धि सागर जैन, हरीश जैन ने कहा आत्माराधना एवं स्व दोष दर्शन एवं उनके निवारण के महान संदेश लेकर पर्यूषण पर्व आए है। इन्हीं पर्व का महत्व है कि कुछ भी तप त्याग न करने वाले के मन में भी कुछ न कुछ सद्कर्म कर गुजरने के भाव मन में जगते है। जो लोग एक घंटे के लिए भोजन नहीं छोड़ पाते थे या एक पच के लिए चाय छोड़ नहीं सकते थे। वे लोग भी तेले-तेले, अठाईयां तक तप किया करते है। पाप को ढकना नहीं है, बल्कि उखाड़ कर फैंकना है।