वंदना नरक के बंधन को तोड़ देती है : साध्वी पुनीतयशा
प्रवचनदक्षा साध्वी पुनीतयशा म.सा. ने प्रवचन में फरमाया कि छठा कर्तव्य वंदना है।

संस, लुधियाना : श्री आत्मानन्द जैन सभा लुधियाना के तत्वावधान में श्री आत्मानन्द जैन महासमिति द्वारा आयोजित आत्म-लक्षी चातुर्मास के अंतर्गत श्रीमति मोहनदेई ओसवाल हॉल, श्री आत्म-वल्लभ जैन उपाश्रय, पुराना बा•ार में वर्तमान गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी शांत स्वभावी विदुषी साध्वी संपत म.सा. की सुशिष्याएं सरल स्वभावी साध्वी चन्द्रयशा म.सा., प्रवचनदक्षा साध्वी पुनीतयशा म.सा. ने प्रवचन में फरमाया कि छठा कर्तव्य वंदना है। वंदना पाप निकंदना। वंदना करने से नीच गोत्र कर्म कटता है और उच्च गोत्र कर्म का बंधन होता है। तीन खण्ड के राजा होते हुये भी श्री कृष्ण महाराज ने परमात्मा को तो वंदन किया ही किया साथ में जितने भी मुनिराज थे सभी को एक-एक करके वंदन किया। अठारह ह•ार साधु भगवंतों को वंदन किया। वंदन तीन प्रकार के होते हैं-
1. फेटा वंदन : यह वंदन कहीं भी किया जा सकता है। विहार में, सड़क पर, जहां भी साधु-साध्वी भगवंतों के दर्शन हों यह वंदना करनी चाहिये। दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर यह वंदन किया जाता है। लेकिन परमात्मा के समक्ष मंदिर जी में साधु-साध्वी जी को यह वंदन नहीं करना चाहिये।
2. थोभ वंदन (छोभ वंदन): इसमें दो खमासमण देते हैं। जैसे कोई दूत राजा के पास संदेश देने जाता है तो राजा को दो बार प्रणाम करता है। एक शुरू में एक वापिस आते वक्त। व्यवहारिक रूप में ऐसे किया जाता है। जब राजा को दो बार प्रणाम किया जाता है तो इसलिये गुरु भगवंतों के पास भी दो बार वंदन करते हैं। जब गुरु महाराज किसी धर्म कार्य में व्यस्त हों, आहार कर रहे हों, पानी वापर रहे हों या रास्ते में चल रहे हों तो यह वंदन नहीं करना चाहिये।
3. द्वादशावर्त्त वंदन : बारह प्रकार के आवर्त्त लेकर जो हम वंदन करते हैं उसे द्वादशावर्त वंदन कहते हैं। पदस्थ साधु, आचार्य भगवंत को ही द्वादशावर्त्त वंदन किया जाता है।
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