साहित्य दिवाकर सुरेंद्र मुनि की दीक्षा जयंती पर गुणगान सभा
सच्चा गुरु कोई मिलता नहीं। सब अधूरे है। मैं कहता हूं पूरे गुरु को मत ढूंढ़ो। तुम स्वयं पूरे पूरे शिष्य बन जाओ गुरु स्वयं पूरा मिल जाएगा। किसी को गुरु मत बनाओ स्वयं शिष्य बन जाओ। गुरु पहले मिटाता है फिर बनाता है। वह पहले अहं की इमारत को ढहाता है और फिर प्रभु प्रसाद को बनाता है।

संस, लुधियाना : सच्चा गुरु कोई मिलता नहीं। सब अधूरे है। मैं कहता हूं: पूरे गुरु को मत ढूंढ़ो। तुम स्वयं पूरे पूरे शिष्य बन जाओ, गुरु स्वयं पूरा मिल जाएगा। किसी को गुरु मत बनाओ, स्वयं शिष्य बन जाओ। गुरु पहले मिटाता है, फिर बनाता है। वह पहले अहं की इमारत को ढहाता है और फिर प्रभु प्रसाद को बनाता है। भक्त और शिष्य में बड़ा फर्क होता है। जो गुरु को याद करे, वह शिष्य है। शिष्य होना जीवन की एक बड़ी घटना है। यह उक्त विचार श्रमण संघीय डा. राजेंद्र मुनि ने सुरेंद्र मुनि महाराज की 35वीं पावन दीक्षा व वैरागी जैनम जैन के तिलक रस्म के दौरान व्यक्त किए। सर्वप्रथम नवकार मंत्र का उच्चारण हुआ। इस अवसर पर श्रमण संघीय सलाहकार श्री दिनेश मुनि ने गुरु और शिष्य के संबंध में कहा कि शिष्य गुरु के तन का ख्याल रखे और गुरु शिष्य के मन का ख्याल रखे। उन्होंने कहा कि गुण ग्राही व्यक्ति कम गुणी में भी गुण ग्रहण करता है। गुण दष्टि के तीन रूप हैं- खुशी, स्तुति और ग्रहणा दूसरे के गुण दर्शन ये उच्च गौर बंध होता है। द्वेष दर्शन से नीच गौत्र का बंध होता है। गुण देखोगे तो सबके चहेते, प्यारे बनोगे ओर दोष देखोगे तो धीरे-2 सबसे कट जाओगे। आपका स्थायी सम्मान नहीं रहेगा। गुणी को देख जलो मत, खुशी मनाओ। इस अवसर पर आए श्रावक श्राविकाओं ने वंदना कर आशीर्वाद लिया। इस दौरान वैरागी जैनम जैन के तिलक रस्म निभाई गई। इस अवसर पर एस एस जैन सभा सिविल लाइंस सभाध्यक्ष अरिदमन जैन, सीनियर उपाध्यक्ष सुभाष जैन महावीर, महामंत्री प्रमोद जैन, जितेंद्र जैन श्रमण जी यार्न, रविदर जैन भ्राता आदि सदस्यों ने गुरुदेव ठाणा -5 से आशीर्वाद लिया।
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