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    8 साल के बच्चे को दोस्तों से लगी चिट्टे की लत, अपने ही घर में करने लगा चोरी; हफ्ते में कई बार लेता था इंजेक्शन

    Updated: Sun, 02 Mar 2025 11:33 AM (IST)

    लुधियाना में बच्चों में नशे की लत तेजी से बढ़ रही है। गलत संगत और आसान उपलब्धता के कारण कम उम्र के बच्चे भी नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं। हाल ही में एक आठ वर्षीय बच्चे और एक 12 वर्षीय बच्ची के नशे के आदी होने के मामले सामने आए हैं। इन बच्चों को नशा छुड़ाने के लिए कपूरथला के नशा मुक्ति केंद्र में भेजा गया है।

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    लुधियाना में 8 साल के बच्चे को लगी चिट्टे की लत (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    आशा मेहता, लुधियाना। खेलने-पढ़ने की उम्र में बच्चे नशे की जद में आने लग गए हैं। गलत संगत में पड़कर नशे का सेवन करने लगे हैं। ऐसे ही कुछ मामले जिले के नशा छुड़ाओ केंद्र में आए हैं। जहां एक आठ वर्ष के बच्चे को दोस्तों से चिट्टे की लत लगी और यह लत इतनी खतरनाक स्तर तक पहुंच गई कि वह अपने ही घर में चोरी करने लगा।

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    पैसे न मिलने पर अभिभावकों के साथ अभद्र व्यवहार और तोड़फोड़ करने लगा। टिब्बा रोड निवासी इस आठ वर्ष के बच्चे के व्यवहार में अचानक बदलाव आने से अभिभावकों का संदेह बढ़ा तो वह उसे नशा छुड़ाओ केंद्र में लेकर पहुंचे।

    बच्चे के हाथ पर दिखा इंजेक्शन का निशान

    जांच के दौरान बच्चे के हाथों पर इंजेक्शन लेने के निशान देखकर जब हिस्ट्री ली गई तो उसने बताया कि वह छह महीने से चिट्टे का नशा कर रहा था। यह नशा उसे अपने दोस्तों से मिलता था। सप्ताह में दो से तीन बार चिट्टे का इंजेक्शन लगता था। दो इंजेक्शन की डोज लेने के लिए एक हजार से पंद्रह सौ रुपये देने पड़ते थे।

    बच्चा निम्न वर्गीय परिवार से संबंधित है। माता पिता दोनों ही लेबर का काम करते हैं। चिट्टा लेने की बात सामने आते ही बच्चे को कपूरथला के नव किरण केंद्र में भेज दिया गया। वहां 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए नशा मुक्ति केंद्र है।

    12 वर्षीय बच्ची परिचित के संपर्क में करने लगी चिट्टे का नशा

    ऐसा ही एक और मामला शिमलापुरी से आया। 12 वर्षीय एक बच्ची अपने एक परिचित के संपर्क में आकर चिट्टे के इंजेक्शन लगाने लगी। परिचित बच्ची के घर के करीब ही रहता था। बच्ची को चिट्टे की ऐसी लत लगी कि वह खुद भी इंजेक्शन लगाने लगी। इस बच्ची के माता-पिता फैक्ट्री में काम करते हैं।

    नशे का इंजेक्श लगाने से बच्ची के हाथ और शरीर के दूसरे हिस्सों पर जब गहरे निशान हो गए और खून रिसने लगाा तो परिवार उसे सिविल अस्पताल में लेकर पहुंचा। जहां डाक्टरों ने जांच करके उसे नशा छुड़ाओ केंद्र भेज दिया।

    केंद्र में जब मनोचिकित्सकों ने बच्ची से पूछा तो सारी बात बताई। बच्ची ने जो बताया, उसे सुनकर मनोचिकित्सकों के पैरों तले जमीन खिसक गई। उक्त बच्ची को भी कपूरथला के नशा मुक्ति केंद्र में भेज दिया गया है।

    इलाज को आने वाले पांच प्रतिशत बच्चे

    सिविल अस्पताल के नशा छुड़ाओं केंद्र के मनोचिकित्सक डा. अरविंद गाोयल के मुताबिक, नशे की गिरफ्त में आकर इलाज के लिए आने वाले सौ मरीजों में से पांच मरीज 18 वर्ष से कम उम्र वाले होते हैं। इसमें ज्यादातर 14 से 18 साल की उम्र के बीच के होते हैं।

    डॉ. गोयल के मुताबिक, इलाज को आने वालों में 70 प्रतिशत चिट्टे वाले मरीज होते हैं, जबकि 20 प्रतिशत मरीज गांजा व 10 प्रतिशत मरीज दूसरे नशा सेवन करने वाले होते हैं।

    बच्चों पर लगातार नजर रखें अभिभावक

    मनोचिकित्सक डॉ. अरविंद गोयल के मुताबिक, बच्चों का नशे की गिरफ्त में आना चिंता की बात है। कारण, अभिभावकों के पास बच्चों के लिए वक्त नहीं है। इंटरनेट मीडिया के जमाने में बड़ों से लेकर छोटे तक सबके पास मोबाइल फोन व इंटरनेट है।

    बच्चे इंटरनेट मीडिया पर क्या देखते हैं और क्या नहीं, इस पर अभिभावकों की नजर नहीं रहती। जबकि अभिभावक बच्चों की नियमित रूप से निगरानी करें। बच्चों को नशे से बचाने के लिए अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। रेगुलर चेक होना जरूरी हैं।

    जेब, बैग, कपड़े, कमरे और अलमारी की जांच करें कि कहीं उसमें कुछ है तो नहीं, बच्चे को पैसे कम दें और उसकी संगत का भी रखें ध्यान रखें। कम उम्र के बच्चों को फोन देने से बचना चाहिए। जब बच्चे के व्यवहार में अचानक बदलाव आए तो उसे अनदेखा नहीं करना चाहिए।

    जब भी बच्चे का व्यवहार बदले तो उसे गंभीरता से लें। किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करें। हालांकि, अभिभावक इस बात को मानने को तैयार नहीं होते कि उनका बच्चा नशा नहीं कर सकता है, लेकिन जब उन्हें पता चलता है, तब तक बहुत देर हो जाती है।

    नशा करने वालों के लक्षण, अनदेखा न करें

    • अचानक व्यवहार में बदलाव आना
    • परिवार के सदस्यों से दूर-दूर रहना
    • पढ़ाई में मन न लगना या कमजोर होना
    • शरीर में कहीं निशान महसूस होना या चेहरा व होंठ काले पड़ना
    • बेहोश या अचेत अवस्था में पहुंच जाना

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