चंडीगढ़ रोड पर बिना रुके दौड़ेगी एंबुलेंस, हर सिग्नल होगा ग्रीन; कॉरिडोर तैयार
लुधियाना के चंडीगढ़ रोड पर एंबुलेंस बिना रुके दौड़ सकेंगी, क्योंकि ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया गया है। इस कोरिडोर के बनने से एंबुलेंस के लिए सभी सिग्नल ग ...और पढ़ें

प्रतीकात्मक तस्वीर
गगनदीप रत्न, लुधियाना। अब ट्रैफिक जाम किसी की जान नहीं ले पाएगा। जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे मरीजों के लिए लुधियाना ट्रैफिक पुलिस शहर को एक बड़ी सौगात देने जा रही है। चंडीगढ़ रोड पर ग्रीन कोरिडोर तैयार किया जा रहा है, जिससे आपात स्थिति में एंबुलेंस बिना रुके, बिना ब्रेक लगाए और बिना एक सेकेंड गंवाए मरीज को अस्पताल तक पहुंचा सकेगी।
सीपी स्वपन शर्मा के निर्देश पर एडीसीपी ट्रैफिक की अगुवाई में रूट मैप तैयार किया जा रहा है। रोड इंस्पेक्शन पूरा हो चुका है और अब फाइनल रूट सिलेक्शन का काम अंतिम चरण में है। इस सिस्टम के लागू होने के बाद मरीजों को अस्पताल पहुंचाने का समय 60 फीसदी तक कम हो जाएगा। योजना को नववर्ष में लागू करने की तैयारी है।
दो कंट्रोल रूम बनेंगे, पांच मुलाजिमों की टीम करेगी आपरेट
प्रथम चरण में ग्रीन कोरिडोर के लिए दो कंट्रोल रूम तैयार किए जाएंगे। एक नगर निगम के जोन डी में और दूसरा पुलिस कंट्रोल रूम में। यहां पर पांच मुलाजिमों की टीम बैठेगी। उनका काम एंबुलेंस के चलने से पहले उन्हें रूट बताना, दूसरे का काम कंट्रोल रूम से ग्रीन कोरिडोर की ट्रैफिक लाइट को एक बटन से ग्रीन करना, तीसरे का काम एंबुलेंस चालक और ट्रैफिक पुलिस में तालमेल बनाना, चौथे का काम अगर किसी रास्ते पर ट्रैफिक जाम लग जाता है तो विकल्प रास्ते को तैयार कर एंबुलेंस को निकालना और पांचवे का काम एंबुलेंस शुरू से लेकर अस्पताल पहुंचने तक की पूरी रिपोर्ट अधिकारियों को बनाकर देना।
ग्रीन कोरिडोर क्या होता है?
ग्रीन कोरिडोर एक ऐसा विशेष मार्ग होता है जहां ट्रैफिक पुलिस सड़क के सामान्य यातायात को रोककर, संकेतों को हर जगह ग्रीन कर देती है ताकि मरीज या मानव अंगों को ले जाने वाली एंबुलेंस सबसे तेज़ और बाधा-मुक्त यात्रा कर सके।
इसका उद्देश्य है कि गंभीर मरीजों या अंगों की ट्रांसप्लांट प्रक्रिया में बीते हर मिनट कीमती हो। दिल्ली, बेंगलूरु, पुणे, मुंबई में 200 से ज्यादा ग्रीन कोरिडोर बने हैं। पंजाब में मोहाली में ग्रीन कोरिडोर बनाया गया था। अब लुधियाना में दूसरा ग्रीन कोरिडोर बनेगा।
यह कैसे काम करता है?
जब किसी अस्पताल से सूचना मिलती है कि एक आपात वाहन (जैसे मरीज या अंग ले जाने वाली एंबुलेंस) निकल रहा है, तब ट्रैफिक पुलिस तुरंत एक टीम तैयार करती है। एंबुलेंस को पहले रूट बता दिया जाता है कि वो किस रूट से आएं, ड्राइवर कंट्रोल रूम के जरिए पुलिस के उस रूट से कनेक्ट रहेंगे, जहां से एंबुलेंस ने निकलना होता है। इसके प्रमुख चरण इस प्रकार हैं।
- रूट का चयन: सबसे कम जाम और सबसे सीधा रास्ता चुना जाता है।
- ट्रैफिक सिग्नल नियंत्रण: सभी मुख्य सिग्नलों को मेन्युअली या सेंट्रल कंट्रोल से ग्रीन कर दिया जाता है, ताकि रास्ता पूरी तरह खुला रहे।
- पायलट वाहन: पुलिस वाहन एंबुलेंस के आगे-पीछे चलते हैं और बाकी वाहनों को हटाते हैं।
- लगातार संपर्क: अस्पताल, ट्रैफिक नियंत्रण कक्ष और एंबुलेंस के बीच लगातार संचार बनाए रखा जाता है ताकि मार्ग में कोई बाधा न आए।
इससे क्या फ़ायदा होता है?
- मरीज को जल्दी इलाज मिले
- गंभीर परिस्थितियों में रोगी को असमय पहुंचाने से उनकी जान बच सकती है।
- अंग ट्रांसप्लांट में सफल परिणाम बढ़े
- ताजे अंग की समय पर डिलीवरी से सफलता की संभावना बढ़ती है।
- समय की बचत: ग्रीन कोरिडोर ट्रैफिक समय को 60% या उससे अधिक तक कम कर देता है। उदाहरण के लिए अगर अस्पताल में पहुंचने में 25 मिनट का समय लगता है तो वो कम करके 12 से 13 मिनट कर देगा।
दूसरे राज्यों में मरीजों की बचाई जान के कई उदाहरण
केस 1
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने इस साल कई ग्रीन कोरिडोर बनाकर मरीजों को समय पर इलाज दिलाया है। उदाहरण के तौर पर इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से एम्स तक 18 किमी की दूरी केवल 15 मिनट में पूरी कराई गई, जबकि आमतौर पर इसी दूरी के लिए जाम में 35 मिनट से अधिक लगते हैं।
केस 2
पुणे में 2024 में एक मरीज का लीवर ट्रांसप्लांट किया गया था। उसके लिए लीवर को लेकर जाने के लिए एक एंबुलेंस को ग्रीन कोरिडोर के रास्ते पर भेजा गया था। जिसने अस्पताल तक पहुंचने में 9 मिनट का समय लिया था। जबकि पहले 18 से 19 मिनट का समय लगता था।

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