लुधियाना में छठ के दूसरे दिन खरना पूजन, गुड़ की खीर संग श्रद्धालुओं ने लिया संयम का संकल्प
लुधियाना में छठ पूजा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने खरना पूजा की। व्रतियों ने पूरे दिन उपवास रखा और शाम को छठी मैया के लिए प्रसाद बनाया। गुड़ की खीर विशेष रूप से तैयार की गई। पूजा के बाद प्रसाद बांटा गया। खरना आत्मिक शुद्धता और संयम का प्रतीक है।

लुधियाना में छठ पूजा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने खरना पूजा की (फाइल फोटो)
डीएल डान, लुधियाना। लोक आस्था का महापर्व श्री छठ पूजा के दूसरे दिन रविवार को श्रद्धालुओं ने पूरे पवित्रता और नियमों के साथ खरना पूजा संपन्न की। लुधियाना सहित आसपास के इलाकों में रहने वाले बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों ने अपने घरों और घाटों पर विधि-विधान से यह पूजा की। इस दिन व्रती (उपवास करने वाले) पूरे दिन निराहार रहकर शाम को खरना का प्रसाद तैयार करते हैं और माता छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
खरना का दिन व्रतियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रती जल तक ग्रहण नहीं करते। माना जाता है कि इस व्रत में पवित्रता, संयम और श्रद्धा सबसे आवश्यक है।
दिनभर घर की सफाई की जाती है और पूजा स्थल को गंगाजल या नहर के पवित्र जल से शुद्ध किया जाता है। शाम होते ही व्रती स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं। शाम को मिट्टी या पीतल के चूल्हे पर लकड़ी या आम की सूखी लकड़ी से खरना का प्रसाद बनाया जाता है।
इस प्रसाद में गुड़ की खीर, पुरी और केला विशेष रूप से शामिल होते हैं। यह सब प्रसाद पूरी तरह शुद्ध वातावरण में, बिना लहसुन-प्याज के, अत्यंत सावधानी से तैयार किया जाता है।
खरना की खीर खासतौर पर चावल, दूध और गुड़ से बनाई जाती है। गुड़ का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि इसे शुद्ध और सात्त्विक माना गया है। जब खीर तैयार हो जाती है, तो उसे मिट्टी या कांसे के बर्तन में रखकर पूजा स्थल पर रखा जाता है। इसके साथ केले, गन्ने के टुकड़े, ठेकुआ और तुलसी के पत्ते भी चढ़ाए जाते हैं।
व्रती पहले छठी मैया की आराधना करते हैं और दीप प्रज्वलित कर पूजन आरंभ करते हैं। इसके बाद खरना प्रसाद को सबसे पहले भगवान सूर्य और माता छठी को अर्पित किया जाता है। इस समय “छठी मइया के गीत” गाए जाते हैं, जिनसे वातावरण भक्तिमय हो उठता है।
पूजा के पश्चात व्रती सबसे पहले खुद प्रसाद ग्रहण करते हैं इसे “पारण” कहा जाता है। खरना के बाद व्रती अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं, जिसमें वे न तो भोजन करते हैं और न ही जल ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को परिवार, मित्रों और पड़ोसियों में बांटा जाता है, जिससे एकता और भाईचारे का भाव प्रकट होता है।
खरना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आत्मिक शुद्धता, संयम और आत्मसंयम का प्रतीक है। व्रती मानते हैं कि इस दिन का उपवास और पूजा छठी मैया को प्रसन्न करती है और परिवार में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का वरदान देती है।
लुधियाना के विभिन्न इलाकों शेरपुर, बस्ती जोधेवाल, फोकल प्वाइंट, दुगरी और ग्यासपुरा में श्रद्धालुओं ने अपने घरों में और सामूहिक रूप से खरना पूजा का आयोजन किया। हर घर में शाम को दीपक जलाए गए, छठ गीत गूंजे और भक्तों ने “जय छठी मइया” के जयकारे लगाए।
इस अवसर पर महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा धारण की, तो पुरुषों ने पूजा में सहयोग किया। बच्चे भी प्रसाद तैयार करने और दीप सजाने में उत्साह से जुड़े रहे। कई जगहों पर समितियों द्वारा सामूहिक खरना का आयोजन किया गया, जहां सैकड़ों श्रद्धालुओं ने मिलकर माता छठी की आराधना की।
इस प्रकार श्री छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना पूजा श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता के साथ संपन्न हुआ। श्रद्धालुओं ने संकल्प लिया कि आने वाले दो दिन संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य में भी वे पूरी निष्ठा के साथ व्रत का पालन करेंगे और छठी मैया से अपने परिवार और समाज की खुशहाली की कामना करेंगे।
व्रती सीमा देवी ने कहा कि खरना पूजा छठ पर्व का सबसे भावनात्मक क्षण होता है। इस दिन हम छठी मैया से अपने परिवार की सुख-शांति और समाज की तरक्की की कामना करते हैं। यह पर्व हमें संयम, सेवा और श्रद्धा का संदेश देता है।

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