Kargil Vijay Diwas: बीस वर्ष पहले शहीद पंजाब के बलविंदर बने प्रेरणा, भतीजे के बाद और गांव का नौजवान बना सैनिक
फाजिल्का के गांव साबूआना के सूरमा बलविंदर सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान देश के लिए प्राण न्योछावर कर दिए थे। अब उनसे प्रेरणा लेकर उनके भतीजे और उनके घर के पास रहने वाले नौजवान हरजिंदर ने भारतीय सेना ज्वाइन की है।

जासं, फाजिल्का। पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध में बलविंदर सिंह को शहीद हुए भले ही 20 वर्ष से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन आज भी उनका बलिदान अन्य युवकाें को प्रेरणा देने का कार्य कर रही है। उनमें सेना में भर्ती होने का जोश भर रही है। पहले बलविंदर सिंह के भतीजे ने फौज में भर्ती होकर देश भक्ति का जज्बा दिखाया। वहीं अब शहीद बलविंदर सिंह के साथ की गली के रहने वाले हरजिंदर सिंह भी सेना में भर्ती हो गए हैं।
जागरण की टीम जब शहीद बलविंदर सिंह नगर में हरजिंदर सिंह के घर पहुची, तो घर में सैनिक के पिता ही दिखाई दिए। बातचीत में पिता बाज सिंह ने बताया कि हरजिंदर सिंह का एक भाई व दो बहनें हैं। उसे छोड़कर बाकी सब विवाहित हैं। हरजिंदर सबसे छोटा बेटा है। बाज सिंह ने बताया कि बड़े बेटे के ज्यादा पढ़े न होने और उसका ध्यान पशुपालन की तरफ होने के चलते उन्होंने छोटे बेटे हरजिंदर को फौज में भर्ती होने की सलाह दी।
उसकी प्रेरणा का एक ओर बढ़ा कारण शहीद बलविंदर सिंह भी रहे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में शहादत पाई थी। बाज सिंह ने बताया कि जब बलविंदर सिंह ने छोटी आयु में शहादत पाई, तब उसका परिवार साबूआना में रहता था। इसके बाद उन्होंने शहर में आकर घर बसाया। उनका घर साथ वाली गली में होने के कारण हर कोई बलविंदर सिंह की शहादत को जानता है।
फौज में भर्ती होने के लिए िकया ढाई महीने कठिन परिश्रम
छुटपन लेकर बड़े होने तक हरजिंदर को शहीद बलविंदर सिंह के बारे में बताया गया। उनसे प्रेरणा लेकर फौज में भर्ती के लिए हरजिंदर सिंह ने ढाई महीने तक कठिन परिश्रम किया। उसके बाद आखिरकार वह फौज में भर्ती होने में सफल रहा। उसके परिवार में कोई भी पहले फौज में भर्ती नहीं था, लेकिन उसे मान है कि उसके बेटे हरजिंदर फौज में रहकर देश की सेवा करने का मौका मिला।
भारतीय सरजमीं पर कब्जे का सपना देखते हुए कारगिल में घुसपैठ करने वाली पाकिस्तानी फौज व उसके पाले आतंकियों को भारतीय सेना ने 1999 में करारा जवाब देते हुए नाकों चने चबवाए थे। उस जंग में भारत ने भी अपने कई सपूतों को खोया था। उन्हीं में से एक थे फाजिल्का के गांव साबूआना के सूरमा बलविंदर सिंह। उन्होंने दुश्मनों से लड़ते हुए मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। तब बलविंदर सिंह मात्र 19 वर्ष के थे। बलविंदर के नक्शे कदम पर चलते हुए चार साल पहले ही उनका भतीजे जज सिंह ने भी फौज ज्वाइन की है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।