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जैनाचार्य श्री महाश्रमण ने 50 हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर रचा इतिहास

आज के भौतिक युग में जहां यातायात के इतने साधन हैं व्यवस्थाएं हैं फिर भी भारतीय ऋषि परंपरा को जीवित रखने के लिए ऐसे संत हैं जो जनोपकार के लिए निरंतर पदयात्रा कर इतिहास बना रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Jan 2021 07:26 PM (IST)Updated: Wed, 27 Jan 2021 07:26 PM (IST)
जैनाचार्य श्री महाश्रमण ने 50 हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर रचा इतिहास
जैनाचार्य श्री महाश्रमण ने 50 हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर रचा इतिहास

संस, लुधियाना : आज के भौतिक युग में जहां यातायात के इतने साधन हैं, व्यवस्थाएं हैं, फिर भी भारतीय ऋषि परंपरा को जीवित रखने के लिए ऐसे संत हैं जो जनोपकार के लिए निरंतर पदयात्रा कर इतिहास बना रहे हैं। ऐसे विरले संत व अहिंसा यात्रा के प्रणेता तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण। जिन्होंने पैदल यात्रा को ही अपना धर्म समझते हुए 50 हजार किमी. पैदल यात्रा कर एक नया इतिहास का सृजन किया है। चरैवेति-चरैवेति सूत्र के साथ गतिमान आचार्य श्री की यह 50 हजार किलोमीटर की यात्रा अपने आप में विलक्षण है। आंकड़ों पर गौर करें तो यह पदयात्रा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से 125 गुना ज्यादा बड़ी और पृथ्वी की परिधि से सवा गुना अधिक है। यदि कोई व्यक्ति इतनी पदयात्रा करे तो वह भारत के उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर अथवा पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर तक की 15 बार से ज्यादा यात्रा कर सकता है। संतों लेकर राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ने उनको इस समाजोत्थान कार्यों को लेकर नमन किया।

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भारत सहित अन्य पड़ोसी देशों में मानवता के उत्थान का महत्वपूर्ण कार्य

श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के पंजाब प्रांत प्रभारी कुलदीप जैन सुराणा ने बताया कि भारत के 23 राज्यों और नेपाल व भूटान में सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति की अलख जगाने वाले आचार्य श्री महाश्रमण जी की प्रेरणा से प्रभावित होकर करोड़ों लोग नशा मुक्त हो चुके हैं। राजधानी दिल्ली के लाल किले से सन 2014 में अहिंसा यात्रा का प्रारंभ करने वाले आचार्य श्री ने न केवल भारत, अपितु नेपाल, भूटान जैसे देशों में भी मानवता के उत्थान का महत्वपूर्ण कार्य किया है। आचार्य श्री देश के राष्ट्रपति भवन से लेकर गांवों की झोंपड़ी तक शांति का संदेश देने का कार्य कर रहे हैं।

12 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की

अहिंसा यात्रा के प्रारंभ से पूर्व भी जैनाचार्य महाश्रमण श्री ने स्वपरकल्याण के उद्देश्य से करीब 34 हजार किलोमीटर का पैदल सफर कर लिया था। 12 वर्ष की अल्पआयु में अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी के शिष्य के रूप में दीक्षित व प्रेक्षा प्रणेता आचार्य महाप्रज्ञ के उत्तराधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित आचार्य श्री महाश्रमण ने अब तक भारत के दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, असम, नागालैंड, मेघालय, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पांडिचेरी, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ राज्य व नेपाल व भूटान की पदयात्रा कर लोगों को सदाचार की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया।

कठोर तप से गुजरते है जैन संतजन

आचार्य श्री महाश्रमण अपनी पदयात्राओं के दौरान प्रतिदिन 15-20 किलोमीटर का सफर तय कर लेते हैं। जैन साधु की कठोर दिनचर्या का पालन और प्रात: चार बजे उठकर घंटों तक जप-ध्यान की साधना में लीन रहने वाले आचार्यश्री प्रतिदिन प्रवचन के माध्यम से भी जनता को संबोधित करते हैं। इसके साथ-साथ आचार्य श्री के सान्निध्य में सर्वधर्म सम्मेलनों, प्रबुद्ध वर्ग सहित विभिन्न वर्गाें की संगोष्ठियों आदि का आयोजन होता रहता है, जो समाज सुधार की दृष्टि में लाभप्रदायक सिद्ध होती है। आचार्य श्री के नेतृत्व में 750 से अधिक साधु-साध्वियां और हजारों कार्यकर्ता भी देश-विदेश में समाजोत्थान के महत्वपूर्ण कार्य में संलग्न हैं।

संतों व राजनेताओं ने सहभागिता दर्ज कराई

यात्रा दौरान जहां बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा, बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, स्वामी अवधेशानंद गिरि, स्वामी निरंजनानंद, मौलाना अरशद मदनी जैसे विभिन्न धर्मगुरुओं ने आचार्य श्री से मिलकर उनके जन-कल्याणकारी अभियान के प्रति समर्थन प्रस्तुत किया। वहीं राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रतिभा पाटिल, नेपाल की राष्ट्रपति विद्या भंडारी, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, पूर्व राष्ट्रपति रामवरण यादव, पूर्व प्रधानमंत्री सुशील कोइराला, मोहन भागवत, सुरेश भैया जोशी, अमित शाह, लालकृष्ण आडवाणी, पीयूष गोयल, राजनाथ सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पी चिदंबरम आदि अनेकों राजनेताओं ने भी आचार्य श्री के सान्निध्य में पहुंचे और उनके द्वारा किए जा रहे समाज उद्धार के महत्वपूर्ण कार्यों में अपनी भी सहभागिता दर्ज कराई।


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