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बचपन में जहां दादा के साथ छुट्टियों में आते थे भगत सिंह, उस गांव में शपथ लेंगे भगवंत मान, यहां पढ़ें खटकड़ कलां का इतिहास

पंजाब के मनोनीत सीएम भगवंत मान मुख्यमंत्री पद की शपथ वहां लेंगे जहां बचपन में शहीद भगत सिंह अपने दादा के साथ आते थे। प्लेग फैलने के कारण भगत सिंह का परिवार खटकड़ कलां से लायलपुर चला गया था।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 14 Mar 2022 08:12 PM (IST)Updated: Tue, 15 Mar 2022 08:11 AM (IST)
बचपन में जहां दादा के साथ छुट्टियों में आते थे भगत सिंह, उस गांव में शपथ लेंगे भगवंत मान, यहां पढ़ें खटकड़ कलां का इतिहास
शहीद भगत सिंह के पैतृक गांव में शपथ लेंगे भगवंत मान। सांकेतिक फोटो

भूपेंदर सिंह भाटिया, लुधियाना। पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की ऐतिहासिक जीत के बाद शहीद-ए-आजम भगत सिंह का नवांशहर स्थित पैतृक गांव खटकड़ कलां एक बार फिर चर्चा में आ गया है। नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री भगवंत मान 16 मार्च को यहीं शपथ लेने जा रहे हैं।

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खटकड़ कलां में शहीद भगत सिंह का पुश्तैनी मकान आज भी मौजूद है, जिसकी देखभाल पुरातत्व विभाग करता है। इसी के साथ पंजाब सरकार ने यहां एक विशाल स्मारक व म्यूजियम का निर्माण भी किया है। यह स्मारक 11 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।

भगत सिंह का जन्म लायलपुर (अब पाकिस्तान के फैसलाबाद के बंगा) में हुआ और उनकी परवरिश भी वहीं हुई, लेकिन वह अपने दादा अर्जुन सिंह के साथ बचपन में छुट्टियों में पैतृक गांव खटकड़ कलां आया करते थे।

भगत सिंह के छोटे भाई कुलबीर सिंह के पोते यादविंदर सिंह बताते हैं, 'खटकड़ कलां में प्लेग फैलने के कारण ब्रिटिश सरकार ने गांव के लोगों को लायलपुर में जमीन आवंटित की थी, ताकि वे वहां खेती कर अपने परिवार का पालन कर सकें।' प्लेग के कारण ही भगत सिंह का परिवार खटकड़ कलां छोड़कर लायलपुर चला गया था।

भगत सिंह का परिवार शुरू से ही अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ लड़ता रहा। उनके दादा अर्जुन सिंह आर्य समाज के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनके तीन बेटे किशन सिंह, अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह भी आजादी के आंदोलन में शामिल रहे। अजीत सिंह को 'पगड़ी संभाल जट्टा' लहर के लिए जाना जाता है।

भगत सिंह के पिता किशन सिंह के तीन बेटे थे। भगत सिंह, कुलबीर सिंह और कुलतार सिंह। भगत सिंह जब जेल में थे और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, तो उन्होंने अपनी मां विद्यावती (पंजाब माता) को पत्र लिखा था, 'मेरी लाश लेने के लिए आप मत आना। भाई कुलबीर सिंह को भेज देना, क्योंकि आप मेरी लाश देखकर रो पड़ोगी।' कुलबीर सिंह बाद में फिरोजपुर से विधायक बने और फिर दिल्ली में बस गए। भगत सिंह की माता विद्यावती भी बेटे कुलबीर के साथ रहने लगीं और वहीं उनका निधन भी हुआ।

खटगढ़ बना खटकड़ कलां

खटकड़ कलां का इतिहास भी रोचक है। भगत सिंह के परदादा फतेह सिंह के पूर्वज अमृतसर स्थित नारली में रहते थे। वह एक बार अपने परिवार के किसी सदस्य की अस्थियां विसर्जित करने के लिए हरिद्वार जा रहे थे, तो जालंधर में एक जमींदार की सराय में रुके थे।

जमींदार ने अपनी बेटी की शादी फतेह सिंह के परिवार में तय कर दी। जमींदार ने उन्हें दहेज (खट) में काफी जमीन दी। जिस जगह यह जमीन दी गई, उसे अब खटकड़ कलां कहा जाता है। भगत सिंह की बहन अमर कौर के 77 वर्षीय बेटे प्रो. जगमोहन सिंह कहते हैं, 'उस समय कहा जाता था- 'की खट्टया। यानी क्या कमाया।

हमारे बुजुर्ग कहते थे 'गढ़ खट्टया।' यानी जमीन कमाई। इसी वजह से इस जगह का नाम खटगढ़ हुआ, जिसे बाद में खटकड़ कलां कहा जाने लगा।' बंगा के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में संस्कृत के अध्यापक रहे वयोवृद्ध पंडित राम मूर्ति शास्त्री भी कहते हैं कि यह जमीन भगत सिंह के परिवार को दहेज में मिली थी।

भगत सिंह के परदादा ने बनवाया था मौजूदा मकान

खटकड़ कलां में रहने वाले शहीद भगत सिंह के परदादा फतेह सिंह ने 1885 में यहां घर का निर्माण किया। इसे दीवान खाना कहा जाता था। इसका निर्माण इस उद्देश्य से करवाया गया था, ताकि आने-जाने वाले लोग यहां रुक सके। लोगों ने जब पूछा कि यह क्यों बनवा रहे हैं, तो उनका कहना था कि हुकूमतें तो आती-जाती रहेंगी, लेकिन लोगों के लिए कोई ठिकाना तो होना चाहिए।

यादविंदर सिंह बताते हैं कि इसी स्थान छत पर दो कमरें हैं। जब भगत सिंह खटकड़ कलां आते थे, तो उनमें से एक कमरे में रहते थे। अब इस पूरे मकान को हेरिटेज घोषित दिया गया है। भगत सिंह का ननिहाल गढ़शंकर (होशियारपुर) के पास मोरांवाली में है, जहां उनकी माता विद्यावती की यादगार है।

कैसे पड़ा भगत सिंह नाम?

यादविंदर सिंह के अनुसार जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ, उसी दिन उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह की बर्मा जेल से रिहाई हुई। भगत सिंह की दादी का कहना था कि यह बहुत भागां वाला (भाग्यशाली) है। इसके जन्म पर पिता और चाचा की रिहाई हुई है, इसलिए इसका नाम भगत सिंह रखा जाए।

भगत सिंह से उनकी बहन अमर कौर को बहुत प्यार था। जब भगत सिंह जेल में कैद थे, तो उन्होंने अपने हाथ से उनकी रिहाई वाली दुआ का रुमाल तैयार किया था, जो आज भी उनके भांजे प्रो. जगमोहन सिंह के पास है।

अंग्रेजों के बसाए 3490 चक में से एक था लायलपुर का बंगा

आइएएस अधिकारी आरके कौशिक के अनुसार खटकड़ कलां छोड़ कर लायलपुर जाने के पीछे दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि 1849 में अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जे के बाद चिनाब, झेलम नदी के आसपास के जंगलों को साफ करवाकर 3490 चक (गांव) बसाए, ताकि यहां ज्यादा से ज्यादा अनाज पैदा करके अपने देश व अन्य देशों में उनके कब्जे वाली कालोनियों में आपूर्ति की जा सके।

तब सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि इन चक में बसाया किए जाए। तब अंग्रेजों ने पंजाब में खेती करने वाली जातियों जिनमें जट्ट सिख, राजपूत, सैणी कंबोज, डोगरा आदि को 1600-1600 चक वाले दो जिलों मिंटगुमरी और लायलपुर में बसाया। लोगों को बसाने के इरादे से होशियारपुर की बंगा तहसील के गांव खटकड़ कलां (अब नवांशहर में) के संधू जट्ट गोत्र के परिवार को 104 चक (बंगा, लायलपुर) में बसाया गया।

तब भगत सिंह के परदादा व दादा खटकड़ कलां से 104 चक चले गए। वह होशियारपुर की बंगा तहसील से गए थे, इसलिए वहां भी उन्होंने अपने चक के साथ बंगा शब्द जोड़ा। भगत सिंह वहीं पर पैदा हुए, लेकिन वह अपने दादा अर्जुन सिंह के साथ अक्सर खटकड़ कलां भी आते रहते थे।

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पंजाब की नई सरकार ने एक अच्छी सोच के साथ काम शुरू किया है। उम्मीद है कि वह शहीद भगत सिंह के सपनों का राष्ट्र बनाने में अहम योगदान करेगी। -प्रो. जगमोहन सिंह (शहीद भगत सिंह के भांजे)

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शहीद भगत सिंह के जिस सपने को पूरा करने के लिए लोगों ने भगवंत मान को चुना है। उम्मीद है कि कि वह उन्हें साकार करेंगे। -यादविंदर सिंह (शहीद भगत सिंह के भाई के पोते) 

इनपुट: जगदीश, बंगा (नवांशहर)


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