प्रवासियों की पीड़ा: निवाले का संकट बढ़ा, छत छिनने का भी था डर, आखिर छोड़ा पंजाब
पंजाब की औद्योगिक राजधानी लुधियाना से करीब चार लाख प्रवासी कामगार वापस अपने राज्य चले गए हैं। लॉकडाउन में उनके समक्ष निवाले के संकट के संग छत छिनने का डर पैदा हो गया था।
लुधियाना, [डीएल डॉन]। पंजाब की आर्थिक व औद्याेगिक राजधानी माने जाने वाले लुधियाना में 12 से 14 लाख श्रमिक दूसरे राज्यों से आकर काम करते हैं, यहां अपने सपने बुनते हैं। लेकिन, कोरोना काल में वे ऐसी हालत में पहुंच गए उनका यहां से मोहभंग कर दिया। दो माह तक श्रमिकों के समक्ष रोजी-रोटी के साथ साथ छत छिनने का संकट मंडराता रहा। निवाले के संकट गहराया और मकान मालिकों के रवैये से सिर से छत छिन जाने का डर बढ़ गया तो उन्होंने यहां से अपने राज्य लौटना शुरू कर दिया। अब तक चार लाख से ज्यादा प्रवासी कामगार लुधियाना से जा चुके हैं।
चार लाख से ज्यादा श्रमिकों को छोडऩा पड़ा लुधियाना
कोरोना के कारण कर्फ्यू व लॉकडाउन लागू होने लाखों कामगारों का रोजगार छिन गया। उनके लिए रोजी रोटी के लाले रहे और घर भी छिन गया और वे तपती गर्मी में खुले में रातें गुजारने को मजबूर हो गए। विकट परिस्थितियों से हताश श्रमिकों ने परदेस में रहने की बजाए अपने गांवों को लौटने की ठान ली। इसके बाद शुरू हो गया लाखों की संख्या में श्रमिकों के पलायन का सिलसिला। कोई पैदल निकला, कोई साइकिल पर, जैसा साधन मिला ठोकरें खाते हुए वापस निकल पड़े। एक ही मकसद था, किसी तरह अपने गांव पहुंच जाएं। सरकार ने भी इसके लिए इंतजाम किया। मुफ्त में ट्रेन एवं बसें उपलब्ध कराई। 23 दिनों चार लाख से अधिक श्रमिक अपने घर लौट चुके हैं।
मकान मालिकों ने किया किराये के लिए तंग, नहीं मिला राशन
श्रमिकों की शिकायत थी कि सरकारी राशन नहीं मिला। भूख ने परेशान किया तो यहां से जाने का मन बनाना पड़ा। आंकड़ों के अनुसार लुधियाना से रोजाना 15 हजार से अधिक श्रमिक पलायन कर रहे हैं। यदि पलायन की रफ्तार यही रही तो आने वाले वक्त में पंजाब के समक्ष श्रमिकों का जबरदस्त टोटा रहेगा।
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दो वक्त की रोटी भी न जुटा सके
आपदा की इस घड़ी में सरकार की ओर से जारी दस किलो आटा, दो किलो दाल, दो किलो चीनी का पैकिंग पैकेट छह विधानसभा क्षेत्रों में भेजी गई। इसके बावजूद श्रमिक दो वक्त की रोटी के लिए भी भटकते रहे। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अनुसार करीब दो लाख पैकेट बांटे गए है, लेकिन श्रमिकों की संख्या के अनुपात में यह बहुत कम हैं।
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किराया नहीं देने पर घर खाली करने का दबाव
बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले और ढंडारी खुर्द के एक बेहड़े में कमरा किराये पर लेकर रहने वाली संगीता कुमार, पूजा सिंह, मालती देवी, सतेंद्र, मुनिलाल, कमल प्रसाद आदि ने कहा कि वह वापस जाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं। उनको अब बस प्रशासन के एसएमएस का इंतजार है। बेहड़ा मालिक किराये के लिए लगातार दबाव बना रहा है। काम न होने के कारण वह किराया देने में असमर्थ हैं। तीन माह से काम बंद होने के कारण बड़ी मुश्किल से एक वक्त रोटी खाकर गुजारा कर रहे हैं, ऐसे में किराया कहां से दें। जल्द ही पंजाब छोड़ देंगे।
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पैसा और राशन दोनों खत्म हुए तो छोड़ा लुधियाना
कुछ दिन पहले बिहार के जिला सीतामढ़ी के परिहार ब्लाक लौटे विनोद शाह और उपेंद्र भी इन्हीं परिस्थितियों से दो चार हुए तो शहर छोड़कर जाने के आलावा उनके पास भी कोई चारा नहीं था। मुनिलाल और कमल प्रसाद ने बताया कि उनके पास पैसा खत्म हो गया था, राशन भी नहीं था। ना खाने को कुछ था और न ही कमरे का किराया देने के लिए पैसा। जैसे ही उन्हेंं ट्रेन जाने का संदेश (एसएमएस) आया तो वह तुरंत कमरा खाली कर घर वापसी के लिए निकल गए।
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